यूपी में मुलायम-कांग्रेस गठबंधन बिहार जैसे नतीजे की गारंटी नहीं
ये गठबंधन भले ही कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच होने जा रहा हो, लेकिन बैकड्रॉप में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की मौजूदगी को भला कोई दरकिनार कैसे कर सकता है?
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यूपी में भी महागठबंधन की संभावना बढ़ती दिखाई देने लगी है. प्रशांत किशोर(पीके) की एंट्री से इसमें थोड़ी गंभीरता भी आ चुकी है. पीके का ऐसी किसी कोशिश में शामिल होना नतीजे की गारंटी तो नहीं, लेकिन इतना जरूर है कि बातें हवा में तो नहीं ही होंगी.
बड़ा सवाल ये है कि क्या इस गठबंधन से बीजेपी और मायावती की सेहत पर कोई फर्क पड़ेगा भी या नहीं?
गठबंधन किसके लिए?
पिछले हफ्ते जब शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के जलसे का न्योता लेकर केसी त्यागी के घर पहुंचे तो वहां पीके पहले से मौजूद थे, ऐसी खबर आई भी थी. हालांकि, बाहर निकल कर शिवपाल ने बड़े ही भोलेपन से कह दिया कि वो होंगे! 'मैं तो पहचानता नहीं.' सही बात है - और पीके को शिवपाल के लिए पहचानना जरूरी भी नहीं है.
शिवपाल भले ही पीके को अब भी न पहचान पायें, लेकिन उन्हें तो शिवपाल के आने की खबर पहले ही लग चुकी थी - तब चर्चा ये भी रही. साथ ही, साफ भी हो गया था कि पंचमेल की कोई खिचड़ी पक तो जरूर रही है - अब वो जायकेदार बनेगी भी या अधपकी रह जाएगी कोई कैसे कह सकता है? खैर, अब तो खुद मुलायम सिंह की भी पीके से मुलाकात हो चुकी है - और इस मीटिंग में उनके परम प्रिय अमर सिंह भी साथ रहे. शिवपाल पीके को अब भी पहचान पायें ऐसा तो नहीं लगता.
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वैसे देखा जाये तो पीके के लिए ये सब बायें हाथ का खेल है - ऐसी कोशिशें उन्होंने तरुण गोगोई और बदरुद्दीन अजमल को लेकर भी नीतीश कुमार के कहने पर की थी. बात नहीं बनी, उससे क्या मतलब. यहां तक कि बिहार चुनाव के दौरान भी पीके ने नीतीश और लालू के बीच कई बार बीच बचाव किया - हर बार कामयाबी मिले ये कोई जरूरी तो नहीं.
बिहार में महागठबंधन बनने में पीके का कोई खास रोल नहीं रहा - सलाहियत अगर कोई मायने नहीं रखती तो. हां, उसके बाद गठबंधन बनाये रखने में उन्होंने महती भूमिका जरूर निभायी.
गठबंधन के सहारे, चाहे जहां बन जाये... |
यूपी में कांग्रेस के लिए वो पहले से ही चुनाव प्रचार का काम कर रहे हैं. लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि अब वो नीतीश के लिए कोई काम नहीं करते या करेंगे - आखिर वो बिहार सरकार के सलाहकार भी तो हैं.
किसका फायदा, किसका नुकसान
यूपी में महागठबंधन खड़ा हो पाएगा, ये बात कोई भी दावे के साथ नहीं कह सकता. पीके भी नहीं. अगर गठबंधन हो जाता है तो पीके को क्रेडिट मिल सकता है, लेकिन नहीं हो पाता है तो उन पर कोई असर नहीं पड़नेवाला.
अब सवाल ये है कि प्रस्तावित गठबंधन सबसे अहम किसके लिए है? गठबंधन को लेकर पीके की मंशा क्या है? निश्चित रूप से पीके जब कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं तो जब भी चाहेंगे उसी का फायदा चाहेंगे. लेकिन अगर इसमें नीतीश का कोई स्वार्थ टकराया तो क्या वो उसे नजरअंदाज कर पाएंगे? ये तो हर कोई जानता है कि कांग्रेस नेता गठबंधन को लेकर अरसे से प्रयास कर रहे हैं. मायावती के साथ तो बात पक्की तक होने की बात चल रही थी - लेकिन सीटों पर जाकर मामला अटक गया. एक बात और भी थी - मायावती चुनाव से पहले किसी को इसका आभास तक नहीं होने देना चाहती थीं. गठबंधन की ताजा कोशिश में खास बात ये है कि पहल उसी समाजवादी पार्टी की ओर से हुई है जो बिहार के अलाएंस से अलग हो गई थी. यूपी में मुलायम सिंह यादव ऐसा शायद ही सोचते अगर घर परिवार में कलह नहीं मची होती.
गठबंधन को लेकर साफ तौर पर एक बात देखी या बताई जा रही है वो है - बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना. यहां तक तो ठीक है, लेकिन अगर इस रास्ते में हितों का टकराव हुआ तो क्या होगा?
ये गठबंधन भले ही कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच होने जा रहा हो, लेकिन बैकड्रॉप में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की मौजूदगी को भला कोई दरकिनार कैसे कर सकता है?
लालू खुले और जाहिर तौर पर मुलायम के साथ हैं - और नीतीश स्वाभाविक रूप से कांग्रेस के साथ. ये दोनों ही फ्रंटफुट पर खेलते भले न नजर आएं लेकिन अगर चाहें तो किसी भी मोड़ पर खेल बिगाड़ने का पूरा माद्दा रखते हैं. शायद वैसे ही जैसे बिहार की तोहमत शिवपाल ने राम गोपाल यादव पर मढ़ दी है.
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गठबंधन का ये मामला इस लेवल तक शायद ही पहुंचा पाता अगर समाजवादी पार्टी में इतनी उठापटक नहीं हुई होती. या फिर, मायावती मुस्लिम वोट बैंक को बीएसपी से जोड़ने के लिए तमाम हथकंडे नहीं अपनायी होतीं. गठबंधन को लेकर समाजवादी पार्टी का एक्टिव होना और किसी बात की ओर भले न इशारा करे - ये तो बता ही रहा है कि मुलायम को मुस्लिम वोट बैंक के हाथ से निकलने का खतरा सताने लगा है.
बीजेपी के लिए ऐसा कोई भी गठबंधन तभी खतरा हो सकता है जब ये सुनिश्चित करने में सक्षम हो कि मुस्लिम वोट नहीं बंटेगा. जहां तक मायावती के लिए गठबंधन की भूमिका का सवाल है तो वो इस बात पर निर्भर करता है कि गठबंधन बीजेपी को कितना डैमेज करता है. सारी बातों का लब्बो लुआब ये है कि कांग्रेस से हाथ मिला कर मुलायम सिंह यादव, बीजेपी और मायावती को किस हद तक नुकसान पहुंचा पाते हैं - यूपी का ये गठबंधन बिहार जैसे नतीजे की गारंटी तो नहीं दे पाएगा.
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