नूपुर शर्मा मामले के बाद दिख गया मुस्लिम राष्ट्रों का दोहरा चरित्र!
आर्थिक तौर पर संपन्न अरब राष्ट्रों ने कभी भी गरीब मुस्लिम राष्ट्रों को ऊपर उठाने के लिए कुछ विशेष नहीं किया, इनके लिए ये गरीब मुस्लिम देश सस्ते मजदूर पाने का माध्यम ही बनकर रह गए हैं. ऐसे में भारत के खिलाफ इनका विरोध केवल दिखावा भर ही है.
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बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने धर्म विशेष के खिलाफ जो विवादित बयान दिया है, वो कही से जायज नहीं ठहराया जा सकता. भारत जैसे देश में जहां हज़ार सालों से हिन्दू और मुस्लिम साथ साथ रहते चले आ रहें हैं वहां इन जैसे बयानों के लिए कत्तई कोई जगह नहीं है. ये न केवल हमारी सामाजिक एकता, बल्कि देश की समरसता के भी खिलाफ है. यही कारण है कि बीजेपी ने नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल पर कार्यवाही करते हुए दोनों को पार्टी से निलंबित करने में देर नहीं की.
नूपुर शर्मा के बयान के बाद मुस्लिम देशों का भारत के प्रति रवैया हैरत में डालने वाला है
मुस्लिम देशों की भारत के अंदरूनी मामले में बेवजह दखलंदाजी
नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल पर कार्यवाही के बाद ये मामला यही ख़त्म हो जाना चाहिए था पर इसके बाद मुस्लिम देशों के तरफ से जो प्रतिक्रिया आयी, वो निश्चित तौर पर उनकी दोहरी मानसिकता को साबित करतीं हैं. मुस्लिम देश विशेष तौर पर कतर, कुवैत और ईरान ने इस मुद्दे पर भारतीय राजदूतों को तलब कर विरोध जताया, साथ ही कतर-कुवैत ने भारत सरकार से इस बयान पर माफी तक की मांग दी.
इतना ही नहीं, इस पर आगे बढ़ते हुए सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन और अन्य अरब देशों ने अपने सुपर स्टोर्स में इंडियन प्रोडक्ट्स को बैन कर दिया. मिस्र और क़तर ने तो भारत के गेहूँ को भी वापस लौटा दिया, साथ ही कुछ मुस्लिम देशों ने ज्यादा कीटनाशक होने का हवाला देकर भारत की चाय को भी वापस लौटा दिया.
57 मुस्लिम देशों के इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) ने भी इन विवाद में कूदते हुए सोशल मीडिया पोस्ट करके भारत में मुस्लमानों के खिलाफ हिंसा के मामले बढ़ने का आरोप लगाया.
आतंकवाद के खिलाफ बोलती बंद
आश्चर्य की बात है कि भारत के अंदुरुनी मामले में अपनी नाक घुसेड़ने वाले इन देशों ने कभी आंतकवाद के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाया, उल्टा क़तर जैसे मुस्लिम देशों ने तो तालिबान और ISIS जैसे आतंकवादी संगठन को एक अंतराष्ट्रीय मंच प्रदान किया. अफगानिस्तान में तालिबान का काबिज़ होना, वहां से भागते अफगानी लोग, ISIS का यजीदी लोगों विशेषकर महिलाओं पर अत्याचार, पाकिस्तान में शिया और अहमदिया लोगों पर होने वाले आंतकवादी हमले, ये सब वो घटनाएं हैं जिनपर इन मुस्लिम देशों के मुंह सिल जातें हैं.
अल्पसंख्यकों पर अत्याचार
ये इन देशों का दोगलापन ही है कि इन देशों ने अपने अपने देशों में कभी भी अल्पसंख्यकों के अधिकारों को मान्यता ही नहीं दी. मसलन पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर क्या क्या अत्याचार हो रहें हैं ये किसी से छिपा नहीं है. अरब देशों में वहां के अल्पसंख्यकों पर इस्लामिक कानून थोपे जातें हैं, मसलन ईरान में कोई भी बिना हिजाब के नहीं रह सकता, भले ही वो किसी भी धर्म को मानने वाला क्यों न हो.
2016 में भारतीय शूटर हिना सिंधु को तो हिजाब की अनिवार्यता के चलते ईरान में होने वाली शूटिंग इवेंट से अपना नाम तक वापस लेना पड़ा था. अरब देशों में आज भी रमजान के पाक महीनों में किसी भी अल्पसंख्यक के सार्वजनिक स्थान पर कुछ भी खाने पीने पीने को लेकर प्रतिबंध है जबकि ये उसके धार्मिक रीति का हिस्सा नहीं है.
मजदूरों पर अत्याचार
केवल धार्मिक स्तर पर नहीं, बल्कि मानवीय स्तर पर भी ये देश अत्याचार के अड्डे बने हुए हैं, दूसरे देशों से रोज़गार और नौकरी के लिए गए लोगों के साथ यहां कैसे कैसे अत्याचार होते आये हैं ये किसी से भी छिपा नहीं है. भारत के मजदूरों को वहां कैसी परिस्थितियों में काम करना पड़ता है, समय समय पर इसके वीडियो लोगों तक पहुंचते रहते हैं. भारत ने कई बार अरब देशों में भारतीय कामगारों के साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार का मुद्दा उठाया है.
चीन में मुस्लिमों पर अत्याचार पर चुप्पी
दुनिया में मुस्लिमों की रक्षा का दावा करने वाले इन देशों की बोलती 'उइगर' मुस्लिमों पर 'चीन' के अत्याचार पर बंद हो जाती है. चीन में डिटेंशन कैंपों में बंद लाखों 'उइगर' मुस्लिमों के साथ अमानवीय अत्याचार होता है, लेकिन इस पर सारे इस्लामिक मुल्कों के मुंह में दही जम जाता है. किसी की हिम्मत नहीं है कि चीन का 'शिनजियांग' क्षेत्र, जहां मुस्लिमों को कठोर यातनाएं दी जा रही हैं, उस पर सवाल कर सकें. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वहां के मुस्लिम नमाज अदा नहीं कर सकते.
वे कोई त्योहार नहीं मना सकते. टॉर्चर कैंप में उनके अंग निकालकर चीनियों में ट्रांसप्लांट किए जा रहे हैं, लेकिन इस पर 'ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज' संगठन मौन है. दरअसल, अधिकांश इस्लामिक देश, चीन के साथ या तो कारोबार में जुड़े हैं या उन्होंने चीन से आर्थिक मदद ली है. ऐसे में दोगली नीति वाले कई इस्लामिक देश, चीन से सीधी शत्रुता लेने का जोखिम नहीं उठा सकते.
कुल मिलाकर, इन देशों की नीति मुस्लिम हित पर नहीं, बल्कि अवसरवाद पर आधारित हैं, जो विभिन्न देशों और उनसे मिलने वाले आर्थिक और सामरिक हितों पर निर्भर करती है. इनमें से कई देशों ने हमेशा धर्म के नाम पर मुस्लिम युवाओं को भड़काकर अपना मतलब साधा है. इनमें हमेशा से मुस्लिम जगत का अगुवा बनने की होड़ मची रही है, जिसने मुस्लिम जगत में हमेशा अस्थिरिता ही पैदा की है.
आर्थिक तौर पर संपन्न अरब राष्ट्रों ने कभी भी गरीब मुस्लिम राष्ट्रों को ऊपर उठाने के लिए कुछ विशेष नहीं किया, इनके लिए ये गरीब मुस्लिम देश सस्ते मजदूर पाने का माध्यम ही बनकर रह गएँ हैं. ऐसे में भारत के खिलाफ इनका विरोध केवल दिखावा भर ही है.
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