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Updated: 26 जनवरी, 2019 01:45 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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गणतंत्र दिवस का टाइम है. क्या ऑफलाइन, क्या ऑनलाइन कहीं का भी रुख कर लें 'सेल' दिखाई देगी. यानी एक ऐसा मौका जब कई सारी कंपनियां एक जैसे दामों पर ,एक जैसा प्रोडक्ट बेच रहीं हैं. इन प्रोडक्ट्स में भी सिर्फ रंगों का फर्क है. ग्राहक कन्फ्यूज है. ग्राहक उतना ही कंफ्यूज है जितना उत्तर प्रदेश का मुसलमान वोटर. 2019 का चुनाव नजदीक है और ऐसे में उसे भाजपा को हराने के इतने विकल्प मिल गए हैं कि उसे समझ में नहीं आ रहा है कि वो किस पाले में आकर बैठे.

बात यदि उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुसलमानों की भागीदारी. या फिर ये कहें कि, वोट परसेंटेज की हो तो सूबे में मुसलमानों का 19. 3 के आस पास का वोट परसेंटेज है. चूंकि 2019 के चुनाव में सभी दल मोदी सरकार के खिलाफ लामबद्ध हैं. सभी दलों ने मोदी हटाओ का नारा दिया है तो ऐसे में मुसलमान इस बेचैनी में है कि वो अपना वोट किसे दे?

मुस्लिम, उत्तर प्रदेश, लोकसभा चुनाव 2019, चुनाव जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं उत्तर प्रदेश के मुसलमानों का कंफ्यूजन बढ़ता जा रहा है

ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में तमाम पुराने गिले शिकवे भुलाकर सपा-बसपा का गठबंधन हो गया है. ये दोनों ही पार्टियां टुकड़े-टुकड़े में मुसलमानों की रहनुमाई करती रही हैं. मुलायम सिंह तो कभी मुल्‍ला-मुलायम के नाम से कहलाना पसंद करते थे. जबकि परंपरागत रूप से दलित राजनीति करनेे वाली मायावती ने 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में सौ से ज्‍यादा सीटों पर मुस्लिम उम्‍मीदवार उतारकर अपने इरादे जता दिए. मुसलमानों के सामने सूबे में सबसे तगड़ा विकल्‍प तो सपा-बसपा की जोड़ी ही है, जो बीजेपी को फिलहाल चुनौती देती दिखती है. लेकिन एक सच यह भी है कि हिंदू वोटोंं के ध्रुवीकरण के डर से दोनों पार्टियां मुसलमानों से नजदीकी दिखाने से बच रही हैं.

लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन से बाहर कर दी गई कांग्रेस वैसे तो मुसलमानों की नजर से भी बाहर हो गई थी, लेकिन प्रियंका गांधी की एंट्री के साथ इस विकल्‍प की भी एंट्री हो गई है. पहले माना जा रहा था कि यूपी में सपा-बसपा के लिए कांग्रेस सहायक की ही भूमिका निभाएगी. लेकिन, ि‍प्रियंका को मैदान में उतार देने के साथ लग रहा है कि राहुल गांधी के इरादे कुछ और हैं. यूं भी यूपी का मुसलमान कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा है, और यदि पार्टी गंभीरता से अपना दावा पेश करे तो उसे दोबारा पंजे का बटन दबाने से गुरेज नहीं होगा.

सपा-बसपा और कांग्रेस के अलावा कुछ और समीकरण हैंं, जो अलग-अलग सीटों पर मुसलमानों का कन्‍फ्यूजन बढ़ा सकते हैंं. शिवपाल यादव की नई नवेली पार्टी प्रसपा यूपी में ओवैसी की एमआईएम से गठबंधन करने को बेताब है. ध्‍यान रहे सपा के कभी कर्ताधर्ता रहे शिवपाल की यूपी में जमीनी स्‍तर पर अपनी पैठ है. और ओवैसी का मुसलमानों में अपना कद. लोकसभा चुनाव में इन दोनों पार्टियों की यूपी में दावेदारी भले कमजोर दिखे, लेकिन इन्‍हें मिले मुसलमानों के मामूली वोट भी दूसरे गंभीर दावेदारों का खेल बिगाड़ सकते हैं. इन दोनों के अलावा अरविंद केजरीवाल और उनका दल आम आदमी पार्टी भी तो है. जब सब कोई मोदी विरोध में है तो मुसलमानों को ये समझ में बिल्कुल नहीं आ रहा है कि आखिर वो साथ दें तो किसका दें?

ध्यान रहे कि, पिछले 5 सालों में कभी गाय के नाम पर. तो कभी धर्म के नाम पर जैसी स्थिति मुसलमानों के साथ हुई है, उससे मुसलामानों के बीच डर का माहौल है. तमाम बातें ऐसी हो चुकी हैं जिनके अंतर्गत मुस्लिम अपने को असुरक्षित महसूस कर रहा है. इसके बाद रही गयी कसर सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरी कर दी है. योगी के चलते वो मुसलमान भी भाजपा से खार खाए बैठे हैं जिन्होंने पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भाजपा का साथ दिया था.

लेकिन, ऐसा नहीं है कि मुस्लिम वोटरों में बीजेपी के लिए कोई उम्‍मीद नहीं बची है. मोदी सरकार तमाम विरोधों और रुकावटों के बावजूद तीन तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं के साथ खड़ी है. सुप्रीम कोर्ट ने जब तीन तलाक को गैर-कानूनी करार दिया, तब इस पर कानून बनाने की जिम्‍मेदारी केंद्र सरकार पर डाली थी. मोदी सरकार ने इसे कानूनन अपराध बताते हुए संसद में बिल पेश किया, और इस अपराध पर सजा का प्रावधान रखा. लोकसभा तो यह बिल पास हो गया, लेकिन राज्‍य सभा में विपक्ष ने बहुमत के बल पर इसे पास नहीं होने दिया. बीजेपी को उम्‍मीद है कि मोदी सरकार के गंभीर प्रयासों को देखते हुए मुस्लिम महिलाएं कमल को चुनेंगी. क्‍योंकि उन्‍हें पता है कि तीन तलाक जैसे मुद्दे पर उनकी रहनुमाई करने का दम सिर्फ बीजेपी ही दिखा सकती है. 

मुस्लिम, उत्तर प्रदेश, लोकसभा चुनाव 2019, चुनाव मोदी सरकार भी मुस्लिम महिलाओं को खुश करने के तमाम जतन करती नजर आ रही है

ये कहना हमारेे लिए अतिश्योक्ति नहीं है कि अब देश की राजनीति उस मुकाम पर आ गई है जहां कांग्रेस, सपा, बसपा समेत लगभग सभी दलों ने मुसलमानों का नाम लेने से कन्नी काटनी शुरू कर दी है और उनसे दूरी बना ली है. बहरहाल, उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुसलमानों की भूमिका को नाकारा भी नहीं जा सकता. मुसलमान कन्फ्यूज है कि आखिर वो साथ दे तो किसका दे और किन शर्तों के साथ दे. इसकी वजह ये भी है कि दलों ने अब तक मुसलमान का साथ तो लिया. मगर बदले में उनके साथ कुछ विशेष नहीं किया. खैर चुनावों में मुसलमानों का रोल कितना रहेगा इसका जवाब हमें आने वाला वक़्त देगा. मगर जो वर्तमान है और जिस तरह के सियासी समीकरणों का निर्माण हो रहा है. साफ पता चल रहा है कि 2019 में होने वाला चुनाव न सिर्फ मजेदार होगा बल्कि भाजपा और मुसलमान दोनों के लिए महत्वपूर्ण रहेगा.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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