Modi Biopic review: ब्लॉकबस्टर ने विवेक ओबेरॉय की किस्मत के रिकॉर्ड तोड़े
इस फिल्म की कहानी को पर्दे पर देखा जाए या हकीकत में, वो बदल नहीं सकती. हां फिल्म में Narendra Modi नहीं बल्कि उनका किरदार निभाने वाले Vivek Oberoi हैं. लेकिन चेहरा चाहे कोई भी हो नरेंद्र मोदी सिर्फ एक हैं.
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'जीतने में मजा तब आता है जब सब आपके हारने की उम्मीद करते हैं.' ये उस फिल्म का डायलॉग है जिसकी रिलीज़ रोकने के लिए विपक्ष ने ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया था. चुनाव आयोग ने फिल्म को 23 मई से पहले रिलीज होने नहीं दिया. क्योंकि ये फिल्म चुनावों को प्रभावित कर सकती थी. प्रधानमंत्री मोदी की biopic PM narendra Modi भले ही रिलीज़ हो गई है लेकिन ये फिल्म पूरा देश पहले ही देख चुका है. 23 मई को 17वें लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी की जीत के साथ इस फिल्म का सुपरहिट होना भी तय हो गया था.
फिल्म PM Modi की बायोपिक है लिहाजा इसमें मोदी के जीवन के हर अच्छे और बुरे पलों को संजोया गया है. मोदी के जीवन की वो महत्वपूर्ण बातें जिन्होंने उनकी जिंदगी बदल दी, सब सिलसिलेवार तरीके से इस फिल्म में रखी गई हैं.
मोदी की जीत फिल्म के हिट होने का संकेत देती है
मोदी का बचपन जब वो ट्रेन में सीट सीट जाकर चाय बेचा करते थे. तब भी तिरंगे के लिए सम्मान कम नहीं था. फिर ऐसा क्या हुआ कि मोदी अपनी मां से बड़े होकर सन्यासी बनने की बात करते हैं. कैसे बर्फीले पहाड़ों पर तप करने वाला मोदी अचानक भारत के लिए अपना जीवन समर्पित करने का प्रण लेता है और आरएसएस से जुड़ जाता है. वहां झाड़ू लगाता है, टॉयलेट साफ करता है, चाय पिलाता है. और एक कठिन और अनुशासित जीवन जीता है.
पीएम नरेंद्र मोदी का राजनीतिक जीवन जितना सबके सामने रहा, लोगों में उतनी ही जिज्ञासा उनके उस जीवन को जानने में है जो राजनीति में आने से पहले था. यानी उनका बचपन और उनकी युवावस्था के संघर्ष. और इस बात को जानने में भी लोगों की रुचि रही कि मोदी ऐसी किस बात से प्रभावित हुए कि उन्होंने देश की सेवा के लिए न सिर्फ अपने परिवार का बल्कि अपनी पत्नी का भी त्याग कर दिया था. राजनीतिक विरोधियों ने उनकी इसी बात को मुद्दा बनाकर उनकी छवि भी खराब करनी चाही. उनके लिए यहां तक कह दिया था कि जो शख्स अपनी पत्नी का ख्याल नहीं रख सका वो देश की महिलाओं के बारे में क्या सोचेगा. लेकिन मोदी का उनकी मां से गहरा रिश्ता मोदी की उन भावनाओं को भी दिखाता है जो महिला सम्मान और स्नेह से लबरेज हैं.
लेकिन मोदी विरोधी राजनीति में मोदी की मां को भी बीच में लाने से नहीं चूके
हालांकि मोदी इस बात का जवाब कई इंटरव्यू में दे चुके हैं कि वो सिर्फ कुछ ही घंटे सोकर कैसे लगातार काम करते रहते हैं. इस बात का जिक्र इस फिल्म में भी किया गया है. जिसमें नरेंद्र मोदी ने कहा कि 'आखों में देश के लिए इतने सपने हैं कि नींद के लिए कोई जगह ही नहीं.'
Loksabha election 2014 और 2019 में जीत हासिल करने का श्रेय सिर्फ मोदी को नहीं बल्कि राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले Amit Shah को भी जाता है. इन चुनावों में अमित शाह की मेहनत को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता. अमित शाह की रणनीति और मोदी का प्रभावशाली व्यक्तित्व इन दोनों ने मिलकर देश को नए भारत का भरोसा दिलाया. दर्शक असल जीवन में जाने न जानें लेकिन फिल्म के माध्यम से ये जरूर जान जाएंगे कि अमित शाह से मोदी की मुलाकात कब और कैसे हुई और ये दोनों एकसाथ किसलिए आए.
फिल्म में मोदी की भूमिका विवेक ओबेरॉय निभा रहे हैं
मोदी गुजरात की राजनीति में किस तरह आए और कैसे उन्होंने लोगों में अपनी जगह बनाई. ये सब हम सभी जानते भी हैं और फिल्म में भी दिखाया है. साथ ही गोधरा कांड और गुजरात दंगों का सच भी लोगों के सामने होगा, जिसे लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को क्या कुछ नहीं झेलना पड़ा था.
एक दशक तक भारत की सत्ता कांग्रेस के हाथों में थी. इस दौरान काफी कुछ ऐसा हुआ जो लोगों के सामने तो आया लेकिन छनकर. सत्तासीन पार्टी की वो बातें जो सिर्फ विपक्ष में रही भारतीय जनता पार्टी जानती थी वो इस बायोपिक के जरिए जानने को मिलेंगी.
इसके बाद किस तरह मोदी ने भारत की मुक्ति के लिए बनारस को चुना और 2014 में बनारस से नामांकन दाखिल किया. और जीत हासिल की. 2014 की जीत से कहीं बेहतर थी 2019 की जीत क्योंकि मोदी पर किया हुआ लोगों का भरोसा अब और पक्का हो गया था. अपने 5 सालों के कार्यकाल में मोदी ने देश की जनता के सामने एक ऐसी सरकार का उदाहरण पेश किया जो भ्रष्टाचार से मुक्त थी. अनुशासित थी. इसके साथ साथ भारत की कमान जिस शख्स के हाथो में थी वो दुश्मन देश के घर में घुसकर जवाब देने ता माद्दा भी रखता है. पाकिस्तान पर की गई दो सर्जिकल स्ट्राइक ने मोदी पर लोगों के भरोसे को और मजबूत किया.
यही इस फिल्म की कहानी है, जिसे भले ही पर्दे पर देखा जाए या हकीकत में वो बदल नहीं सकती. हां फिल्म में मोदी नहीं बल्कि उनका किरदार निभाने वाले Vivek Oberoi हैं. लेकिन चेहरा चाहे कोई भी हो नरेंद्र मोदी सिर्फ एक हैं. फिल्म के रिलीज होने से पहले असली मोदी ने जनता का फैसला सुना दिया और दूसरी बार भी जीत हासिल की. ये जीत इस बात का सबूत भी है कि मोदी की बायोपिक चाहे चुनाव से पहले रिलीज होती या चुनाव के बाद जीत मोदी की ही होनी थी.
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