मोदी की विदेशी नीति के ए.बी.सी - अहमदाबाद, बनारस, चंडीगढ़
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे भारत यात्रा के लिए आए तो वे प्रधानमंत्री मोदी के साथ बनारस पहुंचे. फ्रांस्वा ओलांद के भारत दौरे का आगाज चंडीगढ़ से हुआ. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग दिल्ली से पहले अहमदाबाद पहुंचे. ये भारत की विदेश नीति का नया मिजाज है.
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अब भारत की विदेश नीति में दिल्ली और आगरा ही नहीं रहे हैं. अब इसमें अहमदाबाद, बनारस और चंडीगढ़ शामिल हैं. और भी कुछ शहर इस नीति का आने वाले वक्त में हिस्सा बने तो हैरान मत होइये. अब जरा फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसिस ओलांद की हालिया भारत यात्रा को देखिए. वे गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि थे. लेकिन वे दिल्ली से पहले चंड़ीगढ़ पहुंचे. ओलांद की सिटी ब्युटिफुल यानी चंड़ीगढ़ में आगवानी की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने. वहां पर भी विस्तार से दोनों देशों के बीच गुफ्तुगू हुई.
कुछ समय पहले जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे अपनी भारत यात्रा के लिए आए तो वे प्रधानमंत्री मोदी के साथ बनारस पहुंचे. दोनों ने गंगा आरती में शिरकत की. थोड़ा और पीछे चलते हैं. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपनी भारत यात्रा के समय पहले अहमदाबाद पहुंचे और उसके बाद दिल्ली. ये भारत की विदेश नीति का नया मिजाज है. मोदी सरकार के केन्द्र में सत्तारूढ़ होने के बाद दशकों से एक लीक पर रही विदेश नीति में नई जान फूंकने की हरचंद कोशिशों के रूप में इसे देखा जाना चाहिए.
फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के हालिया भारत दौरे का आगाज चंडीगढ़ से हुआ. इसकी एक खास वजह है. चंडीगढ़ के डिजाइनर लॉ कार्ब्युजियर फ्रांस के ही नागरिक थे. चंड़ीगढ़ की स्थापना के स्वर्ण वर्ष में उनका चंडीगढ़ का दौरा करना अपने आप में महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए. पंजाब और हरियाणा की संस्कृति को करीब से देखते हुए फ्रांस्वा ओलांद की मौजूदगी में भारत और फ्रांस के रिश्तों की नई इबारत लिखी गई. भारत-फ्रांस बिजनेस समिट में दोनों देशों के बीच कई करार हुए. चंडीगढ़, नागपुर, पुडुचेरी को फ्रांस स्मार्ट सिटी बनाएगा. वहीं फ्रांस ने अगले 3 सालों में भारत में 8 अरब डॉलर के निवेश का वादा किया है. दोनों देशों ने आतंकवाद पर एक जुट होने का इरादा जताया है.
चंडीगढ़ में चर्चा
चंडीगढ़ में भी फ्रांस के राष्ट्रपति के साथ मोदी की पसर्नल टच वाली डिप्लोमैसी नजर आई. चंडीगढ़ के बिजनेस समिट में फ्रांस-भारत के शिखर सीईओज ने शिरकत की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी समिट में शामिल हुए. और चंडीगढ़ के बाद भारत और फ्रांस के बीच खुशगवार माहौल में बातचीत दिल्ली में भी जारी रही. 13 समझौतों पर करार हुए. सबसे अहम डिफेंस डील राफेल लड़ाकू विमान पर भी मुहर लगी. भारत फ्रांस से 33 लड़ाकू विमान खरीदेगा. भारत हर हाल में इन लड़ाकू विमानों को खरीदना चाहता है. राफेल की जद में पूरा पाकिस्तान आ जाता है जिससे हमें पाकिस्तान पर काफी बढ़त मिल जाएगी.
वहीं जैतापुर न्यूक्लियर पावर प्लांट के विवाद को एक साल के भीतर सुलझाने की बात हुई है. भारत और फ्रांस के बीच, रेलवे, सोलर एनर्जी, स्मार्ट सिटी पर भी करार हुआ है.
बनारस में गंगा आरती
और कुछ हफ्ते पहले ही तो जापान के प्रधानमंत्री शिंजो को लेकर नरेन्द्र मोदी धर्मनगरी बनारस गए थे. दोनों ने दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती में भाग लिया. जापान भारत से भगवान गौतम बौद्ध के चलते अपने को भावनात्मक स्तर पर करीब पाता है. और गंगा सिर्फ एक नदी नहीं, भारतीय संस्कृति की वाहक भी है. इस लिहाज से जापान के प्रधानमंत्री के स्वागत में काशी में गंगा आरती का आयोजन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौलिक और व्यापक सोच का परिचय देती है. इस राजनयिक मुलाकात को सांस्कृतिक आदान प्रदान से निश्चित रूप से और भी ज्यादा सार्थक किया जा सकेगा. गंगा के रूप में एक बड़ा आयाम जोड़कर दोनों देशों के आपसी रिश्तों को और मजबूत करने की दिशा में यह ठोस पहल मानी जानी चाहिए.
बेशक, गंगा आरती महज पूजाविधि नहीं है. मोदी-आबे ने गंगा आरती मे भाग लेकर दुनिया में भारत की खोई हुई या यूं कहें कि तिरस्कृत हो चुके सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ने अपनी जगह बनाई. निर्विवाद रूप से हमारे यहां स्वाधीनता के बाद राजनैतिक सत्ता ने इस छवि को नजरअंदाज कर एक उपभोगी देश की छवि के रूप में भारत को दुनिया के सामने पेश किया था. उसमें संस्कृति के नाम पर ताज महल के मकबरे को ही खूब भुनाया गया. जब भी कोई राष्ट्राध्यक्ष या खास मेहमान भारत आया तो उसे ताज महल के दीदार करवा दिए गए. क्या ताज महल ही भारत है? कतई नहीं. गंगा आरती के बहाने गंगा की ब्रांडिंग तो सही माने में भारत के लिए आत्मगौरव का क्षण है. इस तरह की अनूठी पहल का स्वागत होना चाहिए.
और इसके साथ आबे के दौर के समय बुलेट ट्रेन को भारत में चलाने पर भी समझौता जापान के साथ हो गया. यानी गंगा आरती के साथ एक अहम करार भी हुआ. और अगर बात बुलेट ट्रेन को लेकर हुए ताजा करार की करें तो इसे भारतीय विदेश नीति की बड़ी सफलता के रूप में देखा जाना चाहिए.
बुलेट ट्रेन परियोजना विकसित भारत के एक सपने को साकार करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होने जा रही है. इस परियोजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए जापान के साथ जो करार हुआ है वह भी उत्साहित करने वाला है. दूसरे देशों को जिस दर पर जापान ऋण देता है उससे काफी कम दर पर भारत को मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए जरूरी राशि मुहैया कराने जा रहा है. ऋण वापसी की मियाद भी 25 वर्षों की जगह 50 वर्ष रखी गयी है.
गांधी, साबरमती और चीन
और इससे पहले चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत दौरे पर बारास्ता अहमदाबाद होते हुए दिल्ली पधारे. गुजरात दौरे के दौरान चीनी राष्ट्रपति ने नरेन्द्र मोदी के साथ महात्मा गांधी के ऐतिहासिक साबरमती आश्रम का भी दौरा किया. जिनपिंग इसमें स्थित बापू के मूल प्रवास स्थल हृदय कुंज में भी गए. दोनों नेताओं ने साबरमती नदी के किनारे मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट रिवरफ्रंट पर चहलकदमी करते हुए बातचीत भी की. वहीं पर शी जिनपिंग के सम्मान में रात्रिभोज का आयोजन भी किया गया. चीनी राष्ट्रपति के सम्मान में आयोजित रात्रिभोज में 100 से अधिक लजीज गुजराती व्यंजन परोसे गए. और लजीज भोजन के साथ दोनों देशों के बीच गंभीर मंथन भी आपसी और अंतरराष्ट्रीय मसलों पर. जिनपिंग के दौरे के महज दो घंटे के भीतर भारत-चीन के बीच तीन बड़े समझौते हुए. मोदी और जिनपिंग की मौजूदगी में चीन और गुजरात सरकार के बीच तीन समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. यही नहीं, चीनी राष्ट्रपति ने भारत के विनिर्माण और ढांचागत परियोजनाओं में अरबों डॉलर का निवेश करने की प्रतिबद्धता भी जताई. अहमदाबाद में ही दोनों देशों के बीच बिजनेस समिट भी हुआ. और चीनी राष्ट्रपति की भारत यात्रा समाप्त होने से पहले मोदी ने कहा कि भारत चीन से प्रगाढ़ संबंध चाहता है, लेकिन साथ ही ‘चिंता के मुद्दों’ पर प्रगति चाहता है. यानी भारत दोनों के बीच चल रहे सीमा विवाद का हल भी चाहते हैं.
दरअसल अपने प्रधानमंत्री पद के शपथग्रहण समारोह में नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से सभी पड़ोसी देशो के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया उससे संकेत मिल गए थे कि अब विदेश नीति का स्वरूप पहले वाला तो नहीं रहेगा. उसमें नई उर्जा आएगी. फिर मोदी ने अपने करीब-करीब सभी विदेशी दौरों के समय जिस तरह से उन देशों में बसे प्रवासी भारतीयों से मुलाकातें कीं उससे साफ हो गया कि अब पुराने ढीले-ढाले अंदाज में नहीं चलेगी देश की विदेश नीति.
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