गुजरात में सबसे बड़ा चैलेंज जातिवादी राजनीति !
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गुजरात की बीजेपी सरकार की इस जातिवादी परिस्थितियों से उबारने की एक आखिरी उम्मीद के तौर पर देखा जा रहा है.
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गुजरात के विकास पुरुष कहे जाने वाले नरेन्द्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री पद छोड़, देश का प्रधानमंत्री बने अभी ढाई साल का वक्त भी नहीं हुआ और गुजरात में जातिवादी राजनीति शुरु हो गई. नरेन्द्र मोदी के गुजरात छोड़ जाने के एक साल बाद ही पाटीदारों का आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन शुरु हो गया, जिसने पिछले डेढ साल से गुजरात में बीजेपी सरकार की नाक में दम कर रखा है. हद तो तब हो गई जब सूरत में पाटीदार अभिवादन समारोह में पाटीदारों ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का जमकर विरोध किया. यहां तक कि ढाई घंटे का ये कार्यक्रम महज 45 मिनिट में सिमट गया और ऐसा पहेली बार होगा कि मुख्यमंत्री का भाषण दो मिनट और अमित शाह का चार मिनिट में निपट गया हो.
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पाटीदारों ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का जमकर विरोध किया |
23 साल के एक लडके हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदारों ने आंदोलन शुरु किया तो आज यही आंदोलन गुजरात की बीजेपी सरकार के लिये मुसीबत का सबब बन चुका है. तो वहीं पाटीदार आंदोलन के साथ-साथ ही आया ओबीसी का महाव्यसन मुक्ति अभियान जिसने गुजरात की सरकारी शराबबंदी की पोल खोलकर रख दी. महज 24 साल के अल्पेश ठाकुर के नेतृत्व में शुरु हुए ओबीसी आंदोलन के तहत महिला और बच्चों के साथ मिलकर पुलिस और सरकार की मिलीभगत से चलने वाले गैरकानुनी शराब के ठेकों पर बडे पैमाने पर छापा मार उत्तर गुजरात में शराब के ठेकों को बंद करवाया.
इतना ही नहीं जिस तरह महिलाएं सरकार के विरोध में शराब के ठेके बंद करवाने निकलीं उसने सरकारी मशीनरी पर ही सवाल खडे कर दिए. गांधी के गुजरात में दारुबंदी के बावजूद 2001 में जहरीली शराब पीकर 145 लोगों कि मौत हुई थी, तो हाल ही में सूरत में जहरीली शराब पीकर अब तक 22 लोगों की मौत हो चुकी है, जिसके चलते कहीं न कहीं सरकार एक बार फिर बेकफुट पर आ गई है.
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तो वहीं ऊना में हुए दलितों पर हमले के बाद गुजरात में दलित आंदोलन शुरु हुआ जिसमें दलितों ने समान हक और जमीन की मांग के साथ मृत जानवर न उठाने का फैसला किया. ये आंदोलन भी युवा दलित नेता जिग्नेश मेवानी के नेतृत्व में शुरु हुआ है, जिसने सभी दलितों को लामबंद कर सरकार के खिलाफ खडा कर दिया है.
अब तक नरेन्द्र मोदी जहां विकास की और आनंदीबेन पटेल गतिशील गुजरात की बातें करते थे, वहीं सरकार अब विकास के काम से हटकर जातिवादी राजनीति से निपटने मे लगी है.
अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गुजरात की आखिरी उम्मीद के तौर पर देखा जा रहा है |
दरअसल गुजरात में 2017 में चुनाव होने हैं, ऐसे में सरकार अब अलग-अलग जातियों के लोगों से मिल अपनी राजनीति को बचाने में लगी है. शिक्षा मंत्री भुपेन्द्र सिंह चुडासमा और गृह राज्यमंत्री प्रदीपसिंह जाडेजा ने जहां क्षत्रीय अभिवादन समारोह में हिस्सा लेकर क्षत्रीय समाज को मनाने में जुटे तो वहीं आज मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने ट्वीट कर जानकारी दी कि उन्होंने प्रजापति (मिट्टी का काम करने वाले) और नायक समाज के लोगों से मुलाकात की. वहीं दूसरे मंत्री भी सचिवालय में काम कम और अलग-अलग समाज के लोगों से मिलने में लगे हैं ताकि जो समाज सरकार के साथ है वो सरकार के साथ बना रहे.
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गुजरात की बीजेपी सरकार की इस जातिवादी परिस्थितियों से उबारने की एक आखिरी उम्मीद के तौर पर देखा जा रहा है. 17 तारीख को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्मदिन है और वो अपना जन्मदिन गुजरात में मनाने वाले हैं. दिन की शुरुआत अपनी माताजी हीरा बा के पैर छूकर आर्शीवाद लेकर दाहोद के लिमखेडा में जल आपूर्ती योजना का उद्धाटन करेंगे. फिर दोपहर को दक्षिण गुजरात के नवसारी में एक साथ 11000 विकलांगों को किट देंगे. तो ऐसे में माना यही जा रहा है कि चुनाव नजदीक होने और जातिवादी राजनीति से उनके अपने गृहराज्य में बैकफुट पर आई बीजेपी को फायदा दिलाने के लिये वो ज्यादातर वक्त गुजरात में ही बिताने की योजना बना रहे हैं.
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