'इंदिरा गांधी जैसा होगा मोदी का हाल...' सत्यपाल मलिक कहना यही चाह रहे थे!
राज्यपाल सत्यपाल मलिक (Satya Pal Malik) ने जातीय दंभ गैर-जिम्मेदाराना तरीके से न केवल प्रतिशोध में की गई हत्याओं की तारीफ की, बल्कि पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को भी एक तरह से धमकी भरी चेतावनी जारी करते दिखे. इतना ही नहीं, मलिक ने किसान आंदोलन के नाम पर भारतीय सेना में भी जाति और धर्म के नाम पर टुकड़े होने की संभावना जता डाली.
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भारत में लोगों की नसों में खून की जगह जाति और धर्म बहता है. उसमें भी मौका अगर चुनाव का हो, तो लोगों को अपार संभावनाएं भी नजर आने लगती हैं. और, राजनीति में इन संभावनाओं को भुनाने के लिए लोग भाषायी मर्यादा और शालीनता रत्ती भर भी मायने नहीं रखती है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भारतीय राजनीति में जाति के कॉकटेल के साथ भाषा का स्तर सबसे निचले स्तर तक गिर सकता है. यहां तक कि किसी संवैधानिक पद पर भी बैठा शख्स भी अपनी जाति के नाम पर लहालोट होकर कुछ भी बोलने से नहीं कतराता है. ऐसा ही कुछ करते हुए मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इसमें सत्यपाल मलिक अपने जातीय दंभ में उग्रता की हदें पार करते हुए संवैधानिक पद की भाषायी सीमा को तार-तार करते नजर आ रहे हैं. सत्यपाल मलिक की भाषा का स्तर 'बक्कल उतारने' की धमकी देने वाले किसान आंदोलन के नेता राकेश टिकैत के बराबरी का लगता है.
वायरल हो रहा वीडियो बीते महीने जयपुर में हुए एक कार्यक्रम ग्लोबल जाट समिट का है. जिसमें सत्यपाल मलिक कृषि कानूनों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई अपनी बातचीत का जिक्र कर रहे हैं. मलिक ने कहा- 'मैं उनसे (मोदी) मिलने गया था. मैंने उन्हें बताया- आप गलतफहमी में हैं. इन सिखों को हराया नहीं जा सकता. इनके गुरू के चारों बच्चे उनकी मौजूदगी में खत्म हो गए. लेकिन, उन्होंने सरेंडर नहीं किया था. ना इन जाटों को हराया जा सकता है. मैंने कहा कि दो काम बिल्कुल मत करना. एक तो इन पर बल प्रयोग मत करना, दूसरा इनको खाली हाथ मत भेजना, क्योंकि ये भूलते भी नहीं है.' दरअसल, इस लाइन के बाद सत्यपाल मलिक ने जो कुछ भी कहा है, सारा विवाद उसी शब्दावली और बयान पर उपजा है. मलिक ने अपने बयान में इंदिरा गांधी की हत्या, ऑपरेशन ब्लू स्टार की रूपरेखा तैयार करने वाले जनरल वैद्य और अंग्रेज अधिकारी डायर को लंदन में हत्या का जिक्र करते हुए एक तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी चेतावनी भरी भाषा का इस्तेमाल कर दिया. जातीय गर्व में भरे हुए सत्यपाल मलिक ने कहा कि सिखों और जाटों के धैर्य की परीक्षा मत लो.
This language, its delivery, I’m afraid, is totally unacceptable, more so because this man holds a high constitutional post. He is clearly threatening Modi here besides admiring retributive violence.I am stunned that a Governor can be so crass & boorish. pic.twitter.com/zIZqCt6PAh
— Anand Ranganathan (@ARanganathan72) November 22, 2021
एक तरह से राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने नरेंद्र मोदी को चेतावनी जारी कर दी थी कि अगर कृषि कानूनों को वापस नहीं लिया गया, तो इंदिरा गांधी, जनरल वैद्य की तरह ही उनकी भी हत्या हो सकती है. वैसे, सत्यपाल मलिक अपने जातीय दंभ में इतने पर ही रुक जाते, तो फिर भी ठीक था. लेकिन, मलिक ने अपने बयान में सेना के दो जनरल्स से बातचीत का हवाला देते हुए कहा कि किसान आंदोलन का असर भारत की सेनाओं पर भी पड़ रहा है. कुछ भी हो सकता है. आज आप ताकत में हो, घमंड में सब कर रहे हो. लेकिन, आपको पता नहीं है इसके क्या-क्या नतीजे हो सकते हैं.
जाति का भौंडा प्रदर्शन
आसान शब्दों में कहा जाए, तो राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जातीय दंभ गैर-जिम्मेदाराना तरीके से न केवल प्रतिशोध में की गई हत्याओं की तारीफ की, बल्कि पीएम नरेंद्र मोदी को भी एक तरह से धमकी भरी चेतावनी जारी करते दिखे. इतना ही नहीं, मलिक ने किसान आंदोलन के नाम पर भारतीय सेना में भी जाति और धर्म के नाम पर टुकड़े होने की संभावना जता डाली. वैसे, ये वीडियो कृषि कानूनों के वापस लिए जाने से पहले का है. लेकिन, ये जाट समिट के नाम पर सत्यपाल मलिक की ओर से जाति का भौंडा प्रदर्शन ही नजर आता है.
यह विडंबना ही है कि भारत में संवैधानिक पदों पर बैठा एक शख्स भी अपनी जाति के बंधन से ऊपर नहीं उठ पाता है. क्योंकि, भारतीयों में यह एक आम बात कही जा सकती है कि वे देश से पहले अपनी जाति के बारे में सोचते हैं. दैनिक भास्कर को दिए एक इंटरव्यू में सत्यपाल मलिक ने कहा था कि मैं चौधरी चरण सिंह जी का शिष्य रहा हूं. वे कहते थे कि अपने वर्ग (जाटों) के सवालों पर कभी समझौता मत करो. इस एक लाइन से ही साफ हो जाता है कि सत्यपाल मलिक कोई छोटे-मोटे जातिवादी शख्स नहीं हैं.
खैर, सत्यपाल मलिक की भाषा की बात की जाए, तो वो किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके जाट नेता राकेश टिकैत से बहुत ज्यादा अलग नजर नहीं आते हैं. वो अलग बात है कि राकेश टिकैत की भाषा में इसे 'बक्कल उतारना' कहा जाता है और सत्यपाल मलिक की भाषा में 'इंदिरा गांधी जैसा हाल होने की संभावना' जता दी जाती है. इन दोनों ही बातों में केवल शब्दों का ही फर्क है. एक की भाषा में स्थानीय पुट है और दूसरे की भाषा में जातीय दंभ के साथ जटिल उदाहरणों का एक लंबी फेहरिस्त है.
जातीय दंभ में भारतीय सेना पर भी प्रश्न चिन्ह लगाने से नहीं चूके सत्यपाल मलिक.
वहीं, चौंकाने वाली बात ये है कि जातीय दंभ से घिरे राज्यपाल सत्यपाल मलिक अपने एजेंडे को पूरा करने के लिए भारतीय सेना पर भी प्रश्न चिन्ह लगाने से नहीं चूके. क्योंकि, अगर भारतीय सेना में इस तरह की कोई भी संभावना होती, तो कई दशकों पहले ही तख्तापलट जैसी स्थितियां बन चुकी होंती और भारत में भी पाकिस्तान, म्यांमार जैसे देशों की तरह ही सैन्य शासन चल रहा होता. वैसे भारत में देश के ही खिलाफ शायद ही कभी भारतीय सेना युद्ध छेड़ेगी. वहीं, राकेश टिकैत के बयान भी तकरीबन मलिक के बयानों जैसे ही होते हैं. लेकिन, यहां अहम सवाल वही है कि क्या जातीय दंभ में क्या एक बड़े संवैधानिक पद पर बैठा कोई शख्स हत्याओं को न्यायोचित ठहरा सकता है? यहां बताना जरूरी है कि इंदिरा गांधी और जनरल वैद्य की हत्या सिखों के खिलाफ बल प्रयोग करने की वजह से नहीं की गई थी. बल्कि, अलगाववादी ताकतों के खिलाफ ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाने की वजह से खालिस्तानी आतंकवादियों ने इनकी हत्याएं की थीं.
जातिगत राजनीति ही मलिक की 'मालिक'
वैसे, यहां इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सत्यपाल मलिक का ये जाट प्रेम उनकी सक्रिय राजनीति में वापसी का संकेत हो सकती है. क्योंकि, अब तक आए कई चुनावी सर्वे में ये बात सामने आ चुकी है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है. और, अगर सत्यपाल मलिक के राजनीतिक सफर पर नजर डालेंगे, तो इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि वो राज्यपाल का पद छोड़कर विधायक बनने की कोशिश कर रहे हों. क्योंकि, किसान आंदोलन का शुरू से ही समर्थन कर रहे सत्यपाल मलिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पैदा हुए खांटी जाट नेता हैं. लोहिया के समाजवाद से प्रभावित होकर छात्र नेता के तौर शुरुआत करने वाले सत्यपाल मलिक ने 1974 में चौधरी चरण सिंह की छत्र-छाया में पहली बार विधायक चुने गए.
10 साल के अंदर ही जिस कांग्रेस के खिलाफ सत्यपाल मलिक ने अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी, उसी में शामिल होकर राज्यसभा सांसद बन गए. कांग्रेस को छोड़ने के बाद वो वीपी सिंह की सरकार में मंत्री भी रहे. मलिक ने 1996 में सपा के टिकट पर जाट बहुल अलीगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. लेकिन, हार गए थे. इसके बाद वे 2004 में भाजपा में शामिल हुए और आरएलडी नेता दिवंगत अजीत सिंह के खिलाफ बागपत से चुनाव लड़ा. लेकिन, हार गए. जिसके बाद वो भाजपा में बने रहे. दरअसल, अपने पूरे राजनीतिक जीवन में मलिक जाटों के इर्द-गिर्द ही बने रहे. 2014 में बिहार के राज्यपाल बनाए गए. फिर वो जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने. इसके बाद गोवा और अब मेघालय के राज्यपाल हैं.
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