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Updated: 17 मार्च, 2020 04:32 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
  @RKSinha.Official
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निश्चित रूप से लोकतंत्र की प्राण और आत्मा है- वाद-विवाद और संवाद. बेशक, आपको किसी मसले पर राय रखने का भरपूर अधिकार है. लेकिन, इसके साथ ही, आपको उस राय को भी सुनना होगा जो आपकी राय से अलग होगी. हालांकि, यह सब कुछ मर्यादित तरीके से ही होगा. पर इधर कुछ वर्षों से भारत में अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ हो गया है कि देश के उच्चतम न्यायालय, चुनाव आयोग और संसद जैसी महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्थानों का अपमान और अनादर करना. उनके प्रति अविश्वास जताना और तथ्यों को तोड़-मरोड़कर जनता में भ्रम फैलाना. यह सब करने वालों में अपने को सामाजिक कार्यकर्ता कहने वाले पूर्व आईएएस अफसर हर्ष मंदर (Harsh Mander) लंबे समय से कुख्यात रहे हैं. पर इस बार तो वे बुरे फंस गए हैं. उच्चतम न्यायाल ने संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शनों (CAA protest) के दौरान नफरत भरा भाषण देने के आरोपों पर हर्ष मंदर से पिछले सप्ताह जवाब मांगा और अदालत के खिलाफ उनके बयान को लेकर कसकर फटकार लगाई. यह देर-सवेर होना ही था.

दरअसल मंदर के कथित नफरती भाषणों की जानकारी केंद्र सरकार ने प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ को दी थी. मंदर ने शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों के बीच में जाकर कहा था कि हमें सुप्रीम कोर्ट या संसद से अब कोई उम्मीद ही नहीं रह गई है. हमें सड़क पर उतरना ही होगा. जब वे अपना जहरीला भाषण दे रहे थे, तब उसे सैकड़ों की तादाद में मौजूद लोग उन्हें सुन रहे थे. हालांकि शाहीन बाग में इकट्ठे  लोग बार-बार कह भी रहे हैं कि वे संविधान की रक्षा के लिए आंदोलनरत हैं. पर अफसोस तब वहां पर मौजूद किसी भी शख्स ने मंदर के बेहद आपत्तिजनक भाषण का विरोध नहीं किया था. अब तो मंदर के उस भाषण के वीडियों सारे देश में वायरल भी हो रहे हैं. उनका चेहरा पूरी तरह बेनकाब हो चुका है.

Harsh Mander-Tista Shitalwadहर्ष मंदर और तिस्‍ता सितलवाड़ जैसों के भाषणों ने आग में घी का काम किया है.

जाहिर तौर पर मंदर की उच्चतम न्यायालय को लेकर की गई घोर आपत्तिजनक टिप्पणियों पर नोटिस लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा, “आप इस अदालत के बारे में यह सोचते हैं. आप इन आरोपों को देखिए और इन पर जवाब दीजिए.” उच्चतम न्यायलय ने यह भी कहा कि ‘हमें बताया गया है कि आपने इस अदालत के खिलाफ कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां की हैं. साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि वह हर उस व्यक्ति के बारे में जानना चाहती है जिन्होंने कानून के महत्व को कमतर करने की कोशिश की.

देश के किसी भी अन्य नागरिक की तरह हर्ष मंदर की  भी किसी प्रश्न पर अपनी व्यक्तिगत सोच हो सकती है. उसे वे कभी भी, कहीं भी खुलकर व्यक्त भी कर सकते हैं. वह राय जरूरी नहीं कि सबको पसंद आए. पर वे तो संसद से लेकर उच्चतम न्यायलय को ही कुछ नहीं समझ रहे. यह तो देश के किसी नागरिक द्वारा सही नहीं माना जा सकता है. मंदर संशोधित नागरिकता कानून (CAA) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) का विरोध कर रहे हैं. कह रहे हैं कि कि जब उन्हें एनआरसी के तहत अपने दस्तावेज जमा करने के लिए कहा जाएगा तो वह इससे भी इंकार कर देंगे. उनसे पूछा जाना चाहिए कि जब वे आईएएस का फार्म भर रहे थे तब उन्होंने इंकार क्यों नहीं  किया था I गौर करें कि अभी एनआरसी का  मसला ही नहीं आया है, पर वे एक खास वर्ग को इसका नाम लेकर भड़काने पर आमादा है. इसी ग़लतफ़हमी और दुर्भावना के चलते दिल्ली में भीषण दंगे भड़के. उन दंगों के पचास से ज्यादा लोग  शिकार हुए, हजारों घायल हो गए और अरबों रुपए की संपत्ति नष्ट हो गई. याद रखिए कि  हर्ष मंदर देश के उन कुछ कथित नामवर लोगों में थे, जो मुंबई बम धमाकों के गुनाहगार याक़ूब मेमन की फांसी रूकवाने के लिए भी जबर्दस्त अभियान चला रहे थे. क्यों? जब मेमन का गुनाह साबित हो गया था और उसे न्यायालय ने फांसी की सजा सुना दी थी तो मंदर का उसको लेकर इतना सहानुभूति का भाव क्यों पैदा हो रहा था? क्या कभी मंदर इस सवाल का ईमानदारी से जवाब देंगे  किउनके पीछे कौन लोग खड़े हैं जो उन्हें यह सब करने के लिए दाना-पानी देते हैं?

कुछ समय पहले अलीगढ़ मुसलमान यूनिवर्सिटी में सीएए के विरोध में जब हिंसा भड़की तो हर्ष मंदर ने एक एनजीओ  के माध्यम से उस हिंसा की रिपोर्ट तैयारी की. उनके रिपोर्ट के अनुसार अलीगढ़ मुसलमान यूनिवर्सिटी के दंगाई छात्र पूरी तरह से निर्दोष थे और अलीगढ़ में हुई हिंसा के लिए योगी सरकार और यूपी पुलिस ही पूरी तरह जिम्मेदार थी. मंदर ने उपर्युक्त रिपोर्ट को जारी करते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के कुलपति प्रो. तारिक मंसूर पर भी कई आरोप लगा दिए. कहा कि उप कुलपति ने समाजसेवियों की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी से मिलने तक से मना कर दिया था. हालांकि एएमयू प्रशासन ने स्पष्ट किया कि मंदर का वक्तव्य वास्तविकता के खिलाफ है. उस दिन कुलपति प्रो. तारिक मंसूर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में होने वाली सेंट्रल यूनिवर्सिटी वाइस चांसलर्स की एक कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए दिल्ली गए हुए थे. उनके कार्यालय को मुलाकात संबंधी कोई पत्र भी नहीं भेजा गया था. यानी मंदर का एक सूत्रीय काम अनर्गल आरोपबाजी करना ही है. वे उच्चतम न्यायालय से लेकर किसी विश्वविद्यालय के कुलपति की छवि को धूमिल करने में लगे रहते हैं जो उनके एजेंडे के पक्ष में न हो या उसपर सवाल खड़ा करे.

आपको याद होगा कि पिछले साल 10 दिसंबर को लोकसभा द्वारा सीएए बिल पास किए जाने के बाद हर्ष मंदर ने ट्विटर पर एक घोषणा की थी कि "मैं आधिकारिक तौर पर मुस्लिम धर्म को अपना लूंगा. फिर मैं एनआरसी के सामने कोई भी दस्तावेज जमा करने से इंकार कर दूंगा. आखिर मैं अपने लिए भी उसी सजा की मांग करूंगा जो दस्तावेज जमा न कर पाने वाले किसी मुस्लिम को मिलती यानी डिटेंसन सेंटर और नागरिकता खत्म करने की.” हालांकि मंदर ने अभी तक इस्लाम मजहब को स्वीकार नहीं किया है. अगर वे कर भी लेंगे तो क्या फर्क पड़ जाएगा. वे पहले से ही उन हजारों दिग्भ्रमित मुसलमानों की फौज में पहले से ही शरीक हैं.

दरअसल देश मंदर से लेकर तीस्ता सीतलवाड़ जैसों को गौर से देख रहा है. तीस्ता सीतलवाड का असली चेहरा देश के सामने काफी पहले से आ  चुका है. वह साल 2002 के गुजरात दंगों के पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की कथित तौर पर लड़ाई लड़ रही हैं. पर अब  सबको पता चल चुका है कि तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ 'सबरंग ट्रस्ट' को जो  विदेशी चंदा मिलता रहा है, उसका इस्तेमाल वह अपनी अय्याशी के लिए ही करती थीं. उसके बिल भी प्रकाशित हो गये हैं. पर वही तीस्ता अब शाहीन बाग में प्रकट हो गईं हैं. उन्हें वहां पर भी देखा गया है.  दरअसल देश को  मंदर और तीस्ता सीतलवाड़ जैसे सफेदपोश लोगों से सावधान रहना होगा.

लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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