पंजाब में नवजोत सिद्धू की जिद पूरी करते जाना कांग्रेस नेतृत्व का मुसीबत को न्योता
नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) खुद तो सिकंदर की तरह पंजाब में पार्टी के भीतर हर लड़ाई जीतते आ रहे हैं, लेकिन एडवोकेट जनरल एपीएस देओल (Advocate General APS Deol) को हटाये जाने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) रबर स्टांप बन गये हैं - और ये सिलसिल खत्म होता भी नहीं लगता है.
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नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) ने तो जैसे कांग्रेस आलाकमान की सबसे कमजोर नस ही पकड़ ली है. जैसे जैसे सिद्धू चाहते हैं, सोनिया गांधी और राहुल गाधी इशारों पर नाचते नजर आ रहे हैं - और ये सिलसिला फिलहाल तो खत्म होता भी नजर नहीं आ रहा है.
ऐसा भी नहीं लगता कि सिद्धू अपनी किसी बात पर ज्यादा देर तक टिके नजर आये हों. अक्सर तो वो अपने मन की करते लगते ही हैं, लेकिन लगता है जैसे सलाहकारों से मुलाकात होते ही नये सिरे से फॉर्म में लौट आते हैं और तत्काल प्रभाव से वो अपनी मानी हुई बातें भी संशोधित कर लेते हैं, जिन पर पहले वो रजामंदी जता चुके होते हैं - दिल्ली में कांग्रेस नेतृत्व से मुलाकात के बाद तो यही सुनने को मिला था कि सिद्धू आलाकमान की हर बात मानने को तैयार हैं, लेकिन चंडीगढ़ पहुंचते ही पूरी तरह पलट गये. बैठक चल ही रही थी कि बीच में ही उठ कर खड़े हो गये, 'कांग्रेस आलाकमान पहले तय कर ले कि उसे सिद्धू चाहिये या समझौता पसंद अफसर?'
अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए, सिद्धू इस्तीफा भी वैसे ही दे देते हैं जैसे महत्वपूर्ण बैठकों से भी अचानक उठ कर चल देते हैं. सिद्धू के हाव-भाव देख कर तो लगता है जैसे वो बॉलीवुड की फिल्मों में जेब में इस्तीफा लेकर चलने वाले राजकुमार को भी छोड़ देने की कोशिश में हों.
सिद्धू के बैठकों में बीच में ही उठ खड़े होने और कई बार तो बीच में ही बैठक छोड़ कर चल देने की नयी अदा पंजाब कांग्रेस और सरकार दोनों के लिए नयी मुसीबत बन रही है. कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद जब नया मुख्यमंत्री चुनने के लिए बैठक बुलायी गयी थी, कुछ ऐसा ही देखने को मिला था. विधायक दल के नेता के तौर पर जिन नामों पर चर्चा हुई एक भी सिद्धू को पसंद नहीं आये. फिर क्या था वो उठे और बैठक छोड़ कर चल दिये. हालांकि, बहुत समझाने-बुझाने पर लौट भी आये - लेकिन अब तो जो भी बैठकें होती हैं, मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भी निश्चिंत नहीं हो पाते कि सिद्धू मीटिंग खत्म होने तक बने रहेंगे या गुस्से में उठ कर बीच में ही निकल लेंगे. हाल में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) के साथ हुई सिद्धू और बाकी नेताओं की बैठक में भी ऐसा ही वाकया देखने को मिला था.
नवजोत सिंह सिद्धू के कहने पर सोनिया गांधी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह से इस्तीफा मांग लिया. सिद्धू के जिद पर अड़ जाने के बाद मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने एडवोकेट जनरल एपीएस देओल (Advocate General APS Deol) से इस्तीफा मांग लिया - और अब डीजीपी इकबालप्रीत सिंह सहोता भी को लेकर भी काउंटडाउन शुरू हो चुका है.
अब तो ये सवाल खड़ा होने लगा है कि क्या नवजोत सिंह सिद्धू इतने भर से ही मान जाएंगे - या कोई नया शिगूफा खड़ा कर फिर से आलाकमान को ललकार पड़ेंगे, '... वरना, ईंट से ईंट खड़का देंगे!'
'जित्थे चलेंगा, चलूंगी नाल तेरे...'
पंजाब कैबिनेट की जिस बैठक में महाधिवक्ता पद से एपीएस देओल का इस्तीफा मंजूर किया गया, उसके बाद मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी प्रेस कांफ्रेंस करने पंजाब कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू के साथ आये और सबसे पहले एक पंजाबी सॉन्ग की एक लाइन सुनायी - 'जित्थे चलेंगा, चलूंगी नाल तेरे, टिकटा दो ले लईं'.
सोनिया गांधी और राहुल गांधी की शह पाकर नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब में कांग्रेस को खतरनाक रास्ते पर ले जा रहे हैं
चरणजीत सिंह चन्नी ये गीत सुनाकर नवजोत सिंह सिद्धू को जीत की बधायी दे रहे थे या अपनी मजबूरी का इजहार, हिंदी अर्थ जान लेने के बाद समझने की कोशिश कीजिये - 'आप जहां जाएंगे, मैं भी साथ चलूंगा - दो टिकट ले लेना.'
फिर मुख्यमंत्री चन्नी ने मीडिया के जरिये जानकारी दी, 'पंजाब कैबिनेट ने एडवोकेट जनरल एपीएस देओल का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है.'
नवजोत सिंह सिद्धू ने इस्तीफा तो पंजाब की नयी सरकार में अपनी बातें नहीं मानने पर ही दिया था, लेकिन 15 अक्टूबर को दिल्ली में राहुल गांधी से मिलने के बाद कहा था कि 'मैंने सभी मुद्दे राहुल गांधी जी को बताये और वो सब हल हो गये हैं.' बैठक में मौजूद हरीश रावत ने सिद्धू की बातों को आगे बढ़ाया - 'सिद्धू ने कहा है कि उनके नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा हैं - और वे जो कहेंगे उसका पालन करेंगे... कांग्रेस पार्टी के लिए काम करना जारी रखेंगे.'
राहुल गांधी से मुलाकात हुए दो दिन भी नहीं बीते कि सिद्धू का नया पैंतरा सामने आया. सिद्धू ने सोनिया गांधी को पत्र लिखा और उसे ट्विटर पर शेयर भी कर दिया. सिद्धू की इस हरकत से सबको हैरानी भी हुई क्योंकि ठीक पहले ही सोनिया गांधी ने कांग्रेस कार्यकारिणी में साथी नेताओं से साफ तौर पर बोल दिया था कि वे उनसे मीडिया के जरिये बात करने की कोशिश न करें. सोनिया गांधी ने ये बात तो कांग्रेस G-23 नेताओं के लिए कही थी, क्योंकि कपिल सिब्बल पूछने लगे थे कि जब कांग्रेस के पास कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष है ही नहीं तो फैसले कौन ले रहा है? कपिल सिब्बल का ये सवाब भी पंजाब कांग्रेस में कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से किये गये बदलावों के मद्देनजर ही रहा.
फिर तो सिद्धू अड़ ही गये कि जब तक एपीएस देओल और डीजीपी को हटाया नहीं जाता तो वो कांग्रेस भवन अपने दफ्तर में नहीं जाएंगे - क्योंकि ये कांग्रेस और कार्यकर्ताओं की इज्जत का सवाल है. ऐसा भी नहीं कि सिद्धू ने दोनों नियुक्तियां हो जाने के बाद विरोध जताना शुरू किया हो, वो तो नियुक्तियों में अपने पसंदीदा उम्मीदवारों के नाम भी बता दिये थे - एडवोकेट जनरल की पोस्ट के लिए डीएस पटवालिया और डीजीपी के पद के लिए आईपीएस अफसर सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय, सिद्धू के पसंदीदा उम्मीदवार रहे, लेकिन मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने सिद्धू की सलाहियत की जरा भी परवाह नहीं की और अपने हिसाब से नियुक्तियां कर डालीं.
कहां सिद्धू ने सुनील जाखड़ और सुखजिंदर सिंह रंधावा को रिजेक्ट करने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी के नाम पर सहमति दी थी और कहां मुख्यमंत्री की नियुक्ति होते ही उनको कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह नजरअंदाज किया जाने लगा, भला सिद्धू ये सब कैसे बर्दाश्त कर पाते.
लेकिन एपीएस देओल को हटा दिये जाने और डीजीपी इकबालप्रीत सिंह पर तलवार लटका दिये जाने के बाद ये तो साफ हो गया है कि सिद्धू कांग्रेस नेतृत्व को अपने इशारों पर नचाने में न सिर्फ कामयाब हैं, बल्कि दिन पर दिन इस खेल में मजबूत भी होते जा रहे हैं.
सवाल ये है कि चरणजीत सिंह चन्नी को नियुक्तियों में सिद्धू को इग्नोर करने की हिम्मत कहां से आयी होगी? जाहिर है सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने ही चन्नी से अपनी मर्जी से सरकार चलाने को कहा होगा.
'तू जहां जहां चलेगा मेरा साया...' जैसा पंजाबी गीत सुनाने के बाद ये भी साफ हो गया है कि चरणजीत सिंह चन्नी के पास सिद्धू के आगे घुटने टेक देने के अलावा कोई और ऑप्शन है भी नहीं - क्या मालूम सिद्ध फिर से जिद पर अड़ गये कि कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलायी जाये और कांग्रेस नेतृत्व भी फटाफट तैयार हो जाये?
अगर चन्नी को जरा भी इल्म होता कि सिद्धू के दबाव में सोनिया गांधी कदम पीछे खींच सकते हैं, तो निश्चित तौर पर वो सिद्धू के मनमाफिक न सही पहले ही बीच का कोई रास्ता निकाले होते. ऐसा भी नहीं कि एडवोकेट जनरल को लेकर ये विरोध पंजाब में पहली बार देखने को मिल रहा हो.
कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरफ से नियुक्त अतुल नंदा पर भी ऐसे ही सवाल उठाये गये थे - और सवाल उठाने वाले डिप्टी सीएम सुखजिंदर सिंह रंधावा ही रहे, जो पहले सहकारिता मंत्री हुआ करते थे. एक केस में शिकस्त मिलने के बाद रंधावा ने अतुल नंदा को हटाने की मांग की थी. वैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के बाद अतुल नंदा ने खुद ही इस्तीफा दे दिया था.
अब तो ये भी देखना होगा कि नयी नियुक्तियां सिद्धू के मनमाफिक होती हैं, या चरणजीत सिंह चन्नी को कुछ शर्तों के साथ छूट मिलती है? ये जरूर है कि चन्नी ऐसे किसी को महाधिवक्ता बना कर मुसीबत मोल लेने से बचेंगे ही जिसे बेअदबी या ड्रग्स मामलों को लेकर निशाना बनाया जा सके.
हो सकता है, चन्नी को कांग्रेस नेतृत्व ऐसी नियुक्ति की सलाह दे जिस पर सिद्धू को ऐतराज न हो. हो सकता है नये सिरे से फजीहत से बचने के लिए चन्नी पहले ही सिद्धू की मंजूरी लेने की कोशिश करें - लेकिन तब क्या होगा जब सिद्धू विरोध के लिए कोई नया बहाना खोज लें और गांधी परिवार फिर से उनकी हां में हां मिलाने लगे?
सिद्धू के लिए तो जैसे कैप्टन, वैसे चन्नी!
हरीश रावत की बातों से तो लगता है वो सिद्धू समझा समझा कर थक ही नहीं गये थे, हार भी मान चुके थे, तभी तो एक बार बोले थे, 'सिद्धू साहब कभी कभी चौके की जगह छक्का जड़ देते हैं.' उत्तराखंड चुनाव में हरीश रावत की व्यस्तता और पंजाब में असफलता तो देखते हुए कांग्रेस नेतृत्व ने उनकी जगह मोर्चे पर हरीश चौधरी को लगाया. हरीश चौधरी ने सिद्धू और चन्नी के साथ मीटिंग की. कहते हैं बहुत समझाने बुझाने के बाद सिद्धू मान भी गये कि वो पंजाब की कांग्रेस सरकार के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं बोलेंगे, लेकिन ज्यादा देर नहीं लगे प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर चन्नी सरकार पर भी वैसे ही सवाल खड़े कर दिये जैसे कैप्टन सरकार पर किया करते थे.
दर्शानी घोड़ा तो बनने से रहे, लिहाजा सिद्धू ने पूछ लिया, 'ये 90 दिन की सरकार है... पंजाब के ड्रग्स और बेअदबी के दो बड़े मुद्दे पर इस सरकार ने 50 दिन में क्या किया?'
पहले भी तो कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार को लेकर सिद्धू के ऐसे ही सवाल हुआ करते थे. सिद्धू के सवालो का सिलसिला जल्दी खत्म भी तो नहीं होता. जब मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने 10 रुपये पेट्रोल और 5 रुपये डीजल सस्ता किया तो प्रेस कांफ्रेंस बुलायी और शुरू हो गये - 'क्या ये सब पांच साल दे पाओगे? बिजली समझौते रद्द किये बगैर सस्ती बिजली भी नहीं मिलेगी.' बिजली को लेकर सिद्धू की ये पुरानी डिमांड कांग्रेस की कैप्टन सरकार के गुजरे जमाने की ही है.
चन्नी सरकार की तरफ से तीन रुपये बिजली सस्ता करने के दिवाली के तोहफे पर भी सिद्धू वैसे ही उखड़े उखड़े नजर आये, 'ये सब झूठ और फरेब है - सरकार लॉलीपॉप दे रही है!'
नवजोत सिंह सिद्धू आखिर ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं? आखिर अपनी ही पार्टी की सरकार को बार बार भला बुरा बोल कर सिद्धू हीरो बन सकते हैं क्या?
कोई दो राय नहीं कि सिद्धू के मिशन कैप्टन हटाओ का मकसद तो खुद मुख्यमंत्री बनना ही रहा, लेकिन जब बात बनती नहीं लगी तो प्लान होल्ड करते हुए कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनने को राजी हो गये - लेकिन चरणजीत सिंह चन्नी तो सिद्धू के लिए दीवार बन कर ही खड़े हो गये.
अब तो लगता है कि सिद्धू की कांग्रेस के सत्ता में लौटने में उतनी दिलचस्पी नहीं रही, जितनी खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने में. फिर तो ये भी मान कर चलना चाहिये कि सिद्धू को कोई भी पार्टी मुख्यमंत्री बनाने के लिए सपोर्ट करे या सीएम की पोस्ट ऑफर करे तो कांग्रेस दफ्तर वो नहीं ही जाने वाले.
सोनिया गांधी और राहुल गांधी को भी शायद सिद्धू को लेकर सबसे ज्यादा उसी बात का डर लग रहा हो और वे सिद्धू के बोलने से पहले ही पंजाब में कांग्रेसियों को ताली ठोकने के लिए इशारे कर दे रहे हैं - लेकिन ऐसा भी तो नहीं कि चन्नी की तरह पंजाब में हर कांग्रेसी सिद्धू का साया बन जाने को तैयार हो गया हो.
एडवोकेट जनरल एपीएस देओल को हटाये जाने के बाद पंजाब कांग्रेस के दो बड़े नेताओं ने मोर्चा खोल दिया है - मनीष तिवारी और सुनील जाखड़. श्री आनंदपुर साहिब से सांसद मनीष तिवारी मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रह चुके हैं - और सुनील जाखड़, सिद्धू से ठीक पहले पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष.
कांग्रेस में अरसे से बगावत की आवाज बने हुए मनीष तिवारी का कहना है कि एडवोकेट जनरल के ऑफिस का राजनीतिकरण उसके संवैधानिक कामकाज को प्रभावित करता है. जाहिर है मनीष तिवारी के निशाने पर सिर्फ सिद्धू ही नहीं बल्कि गांधी परिवार भी है जिसकी मंजूरी से ये सब हो रहा है.
सुनील जाखड़ कहने लगे हैं, 'सक्षम लेकिन कथित तौर पर कंप्रोमाइज्ड अफसर को हटाने के बाद असली कंप्रोमाइज्ड चीफ मिनिस्टर का चेहरा बेनकाब हो गया है - वैसे ये सरकार है किसकी?'
The ouster of a competent yet 'allegedly' compromised officer has exposed a 'really' compromised CM. Giving rise to a pertinent question- Whose government is it Anyway ?(*Apologies to BBC's radio drama - Whose line is it Anyway)
— Sunil Jakhar (@sunilkjakhar) November 10, 2021
मनीष तिवारी का कहना है कि पंजाब के लगातार दो एडवोकेट जनरल अतुल नंदा और एपीएस देयोल राजनीति के चलते पंचिंग-बैग की तरफ इस्तेमाल किये गये. वकीलों को लेकर बार काउंसिल ऑफ इंडिया की गाइडलाइन पेश करते हुए मनीष तिवारी ने नवजोत सिंह सिद्धू को नसीहत भी दे डाली है - जो लोग एडवोकेट जनरल का विरोध कर रहे हैं, उनको ये भी समझ लेना चाहिये कि 'वकील किसी क्लाइंट से बंधा नहीं होता.'
1/3 the integrity of Constitutional functionaries.Both previous Advocate General’s of Punjab became punching bags in proxy political wars.Those who subvert the institution of AG’s office need to remember a lawyer is neither wedded to a client or a brief?? https://t.co/EKRe4sZhQA
— Manish Tewari (@ManishTewari) November 10, 2021
मनीष तिवारी की सलाह है कि आगे से बार काउंसिल के नियमों को ध्यान में रख कर ही एडवोकेट जनरल की नियुक्ति की जाये, लगे हाथ ये भी याद दिलाया है, 'एक वकील कोर्ट, ट्राइब्यूनल और अथॉरिटी के सामने कोई भी केस ले सकता है - और हां, वकील विशेष परिस्थितियों में केस लेने से इनकार भी कर सकता है.
कांग्रेस नेतृत्व भले ये दावा करता फिरे कि पंजाब को पहला दलित सीएम दिया है, लेकिन सिद्धू की हर जिद पूरी करने रे चक्कर में ये मैसेज भी जाने लगा है कि मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी सिर्फ रबर स्टांप बन कर रह गये हैं - और गांधी परिवार ने सिद्धू को मैंडेट दे रखा है कि रबर स्टांप को जहां चाहें, जैसे चाहें इस्तेमाल कर सकते हैं. मालूम नहीं सोनिया गांधी और राहुल गांधी को ऐसा क्यों नहीं लग रहा है कि वे सिद्धू की हर जीत के साथ कांग्रेस का हाथ हार की तरफ बढ़ा दे रहे हैं?
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