कांग्रेस अध्यक्ष का नहीं पता - लेकिन दिल्ली में सिद्धू की चर्चा खूब है!
नया कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने से पहले दिल्ली PCC को लेकर चर्चा शुरू हो गयी है. जैसे कांग्रेस अध्यक्ष की रेस में प्रियंका गांधी आगे हैं वैसे ही दिल्ली में नवजोत सिंह सिद्धू - लेकिन क्या वो पंजाब छोड़ने के राजी होंगे?
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दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 2020 की तैयारी शुरू कर दी है. दिल्लीवालों को 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का फैसला लागू करने के साथ ही अरविंद केजरीवाल विधानसभा चुनाव के प्रचार में एक तरीके से कूद ही पड़े हैं. आम चुनाव में दिल्लीवालों की नाराजगी देखने के बाद आप नेता यहीं नहीं रुकेंगे, ऐसा लगता है.
ये दिल्लीवालों की नाराजगी का ही आलम रहा कि बीजेपी को लोक सभा की सातों सीटें एक बार फिर बीजेपी को देने के बाद दूसरे स्थान पर भी आप को टिकने नहीं दिया - ज्यादातर सीटों पर आम आदमी पार्टी कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन के चलते तीसरे स्थान पर जा पहुंची थी. कांग्रेस ने ये प्रदर्शन 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित की अगुवाई में किया था - लेकिन कांग्रेस की तो किस्मत ही ऐसी है कि वो भी दिल्ली में उसे अनाथ कर चलती बनीं.
एक तरफ आप बगैर घोषणा के पब्लिसिटी कैंपेन शुरू कर चुकी है, दूसरी तरह दिल्ली में कांग्रेस का नेतृत्व कौन करेगा किसी को नहीं मालूम. वैसे दिल्ली की कौन कहे राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद तो कांग्रेस अभी अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष तक नहीं खोज पायी है.
दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष की रेस में कई पुराने नाम तो शामिल हैं ही, एक खास नाम भी तैर रहा है - नवजोत सिंह सिद्धू का. सिद्धू की चर्चा कोरी अफवाह भी नहीं लगती क्योंकि उसके पीछे कांग्रेस की कई मजबूरियां हैं.
सिद्धू पंजाब छोड़ने को तैयार होंगे क्या?
नवजोत सिंह सिद्धू के ऐसे दिन आ गये कि अब उनका कोई कैप्टन नहीं है. सिद्धू राहुल गांधी को अपना कैप्टन मानते हैं और वो तो पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके हैं. जीवन में तो नहीं, लेकिन सिद्धू के राजनीतिक जीवन में एक और कैप्टन थे - कैप्टन अमरिंदर सिंह, लेकिन वो उन्हें कैप्टन मानते भी कहां थे. अब तो वो पंजाब कैबिनेट से इस्तीफा देकर भी कैप्टन मुक्त हो चुके हैं.
लगता है सिद्धू के दिन बदलने वाले हैं जब वो खुद ही कैप्टन बन जायें - लेकिन मुश्किल ये है कि पंजाब का नहीं बल्कि दिल्ली कांग्रेस के ही चांस बनते लगते हैं. कांग्रेस के हिसाब से सोचें तो सिद्धू को पंजाब से दिल्ली लाया जाना राहत भरा हो सकता है - लेकिन मुश्किल ये है कि वो इसके लिए राजी हों तब तो.
ऐसा लगता है सिद्धू राजनीतिक कॅरियर घूमते-फिरते उसी मोड़ पर आ पहुंचा है जहां पंजाब विधानसभा चुनाव के वक्त रहा. बीजेपी से नाराज होकर सिद्धू ने इस्तीफा तो पहले ही दे दिया था और जब अरविंद केजरीवाल से बात और मुलाकात में कोई नतीजा नहीं निकला तो थक हार कर कांग्रेस ज्वाइन कर लिये. सिद्धू की मुश्किल ये कि कांग्रेस में वो शुरू से ही पंजाब के नेताओं की आंखों की किरकिरी बने रहे. जब कैप्टन अमरिंदर सिंह से टकराव शुरू हुआ तो पंजाब कांग्रेस के ज्यादातर नेता सिद्धू के खिलाफ लामबंद हो गये.
इमरान खान से दोस्ती निभाने के चक्कर में सिद्धू ने सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि पूरे देश में फजीहत करा ली - और तो और जो उकी कमाई का जरिया रहा, द कपिल शर्मा शो उससे भी सिद्धू को बाहर कर दिया गया. ये सिद्धू ही कहा करते थे कि सिर्फ राजनीति से घर नहीं चलता. सिद्धू के बाद कपिल शर्मा ने अर्चना पूरन सिंह को ले लिए और सिद्धू के लिए अभी तक नो एंट्री का बोर्ड लगा हुआ है.
दिल्ली बुला रही है - ठोको ताली!
सिद्धू को दिल्ली कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने का आधार राजधानी की खासी सिख आबादी है. 1984 के दंगों को लेकर दिल्ली के सिख कांग्रेस को माफ करने को तैयार नहीं लगते. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के बाद कांग्रेस ने सिखों से माफी जरूर मंगवायी, लेकिन राहुल गांधी के सामने जब भी ये सवाल उठा वो गोलमोल बोल कर निकल लिये.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस में एक धड़े की धारणा है कि सिद्धू के मोर्चे पर खड़े होने से पार्टी को दिल्ली में फायदा हो सकता है. दिल्ली में दर्जन भर विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां सिख समुदाय का वोट निर्णायक भूमिका निभाता है.
सिद्धू अमृतसर पूर्व से विधायक हैं. बीजेपी में रहते वो अमृतसर से लोक सभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. सिद्धू के बीजेपी छोड़ने का बड़ा कारण पंजाब छोड़ने के लिए राजी न होना रहा. 2014 में बीजेपी ने अमृतसर से सिद्धू का टिकट काट कर अरुण जेटली को चुनाव लड़ने के लिए दिल्ली से भेज दिया, लेकिन वो कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह से हार गये.
अब एक बार फिर सिद्धू उसी जगह आ खड़े हुए हैं जिसमें उनके सामने पंजाब छोड़ने का विकल्प आ खड़ा हुआ है. सिद्धू को भी समझ आ गया है कि जब तक पंजाब कांग्रेस में कैप्टन अमरिंदर की चलेगी, सिद्धू का टिक पाना मुश्किल है. 2019 के आम चुनाव के वक्त तो हाल ये रहा कि कैप्टन अमरिंदर ने तो यहां तक कह दिया था कि सिद्धू उनकी जगह सूबे का सीएम बनना चाहते हैं. सिद्धू भी वैसे ही उछल रहे थे, लेकिन राहुल गांधी का साथ न मिलने के चलते ठंडे पड़ गये. बाद में तो इस्तीफा देकर हार ही स्वीकार कर ली.
देखना है कि कांग्रेस और सिद्धू मिल कर दिल्ली में कुछ करने को राजी होते हैं या वास्तव में वही होने वाला है जो बीजेपी नेता कह रहे हैं - सिद्धू की राजनीतिक पारी भी अब खत्म हो चुकी है.
सिद्धू नहीं आये तो कौन होगा दिल्ली कांग्रेस का कप्तान
दिल्ली में कांग्रेस की कमान जिसे भी संभालनी पड़े सफलता का पैरामीटर शीला दीक्षित ही होंगी. 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहने के बाद शीला दीक्षित अपने ही इलाके में अरविंद केजरीवाल से हार जरूर गयीं, लेकिन 2013 में भी कांग्रेस को 8 सीटें मिली थीं. शीला दीक्षित के बाद अजय माकन को दिल्ली कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. अगली बार चुनाव हुए तो पता चला कांग्रेस को तो विधानसभा में एंट्री ही नहीं मिल पायी क्योंकि तब 70 में से 67 सीटें आप और तीन बीजेपी ने जीत ली थी. बाद में उपचुनाव भी हुए लेकिन कांग्रेस का नंबर जीरो ही कायम रहा. यहां तक कि एमसीडी चुनावों में भी अजय माकन में भी कुछ नहीं कर पाये और आखिरकार इस्तीफा दे दिया. अजय माकन का इस्तीफा भी लंबे वक्त तक राहुल गांधी के टेबल पर धूल फांकता रहा - जब 2019 के आम चुनाव होने थे और शीला दीक्षित नयी पारी के लिए तैयार हो गयीं तो तब जाकर उसे मंजूर किया गया.
शीला दीक्षित ने कमान संभालते ही आम चुनाव में करिश्मा भी दिखाया. जीत तो नाममुमकिन ही रही, लेकिन शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने जो प्रदर्शन किया वो बेहतरीन रहा - वो भी तब जब कदम कदम पर शीला दीक्षित को दिल्ली प्रभारी पीसी चाको से जूझते रहना पड़ा था. ये सिलसिला आखिरी दम तक तक चलता रहा.
सिद्धू को लाकर कांग्रेस उस स्टेटस को आगे बढ़ाना चाह रही होगी, जहां शीला दीक्षित छोड़ कर चली गयीं. सिद्धू को लेकर आखिरी फैसला क्या होता है ये बात अलग है, लेकिन एक दिलचस्प पहलू जरूर देखने को मिल रहा है. अव्वल तो दिल्ली में बाहरी लोगों का ही दबदबा है, चाहे वो पंजाबी हों या पूर्वांचली. शायद यही वजह है कि राजनीतिक दलों की कमान भी बाहरी नेताओं के ही हाथ में रही है. चाहे वे मुख्यमंत्री बने हों या फिर पार्टियों में सूबे की कमाने संभाले हों.
शीला दीक्षित भी यूपी की रहीं. करीब दो दशक तक वो दिल्ली की राजनीति में रहीं, लेकिन 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जब मुख्यमंत्री का कोई चेहरा खोजने चली तो वहीं मिल पायीं. मौजूदा बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी बिहार से आते हैं. मनोज तिवारी से पहले बीजेपी अध्यक्ष रहे सतीश उपाध्याय भी आगरा के रहने वाले हैं. आम आदमी पार्टी का कर्म क्षेत्र भले ही दिल्ली बना लेकिन अरविंद केजरीवाल भी बाहरी ही हैं - वो हरियाणा से आते हैं. अब इस कड़ी में सिद्धू की बारी लग रही है.
दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी की रेस में सिद्धू के नाम की चर्चा जरूर है लेकिन ऐसा भी नहीं कि वो अकेले उम्मीदवार हों, बल्कि लंबी फेहरिस्त है - जेपी अग्रवाल, अरविंदर सिंह लवली, महाबल मिश्रा, सुभाष चोपड़ा और शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षत. संदीप दीक्षित दिल्ली से ही लोक सभा सांसद रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी को नापसंद होने के चलते आम चुनाव में भी उनको टिकट नहीं मिला और विधानसभा चुनावों की तैयारी कर रहीं शीला दीक्षित को चुनाव लड़ाया गया.
मुश्किल ये है कि दिल्ली की बारी तो तब आएगी जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर फैसला हो जाएगा. माना जा रहा है कि फिलहाल कांग्रेस अंतरिम अध्यक को लेकर फैसला ले सकती है और वो करीब साल भर तक कुर्सी संभाल सकता है. कांग्रेस की कोर कमेटी ने कुछ नाम चुने भी हैं, लेकिन संसद सत्र के खत्म होने के बाद CWC की मीटिंग बुलायी जाएगी तब जाकर कोई फैसला हो सकेगा - दिल्ली में सिद्धू की तरह कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सबसे ऊपर फिलहाल प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम लिया जा रहा है.
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