22 जवानों की शहादत का जिम्मेदार कौन है नक्सल कमांडर हिडमा, जो मौत को भी दे देता है मात?
छत्तीसगढ़ के बीजापुर में घात लगाकर हमारे 22 जवानों का नरसंहार करने वाला नक्सल कमांडर माडवी हिडमा मोस्ट वांटेड क्रिमिनल है. पिछले दो दशक से सुरक्षाबलों को इसकी तलाश है, लेकिन आजतक इसका कोई सुराग नहीं मिल पाया. आखिर कौन है हिडमा? कैसे देता है नक्सल हमले को अंजाम? क्या है इस समस्या का समाधान?
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वेस्ट बंगाल के छोटे से गांव 'नक्सलबाड़ी' से शुरू हुआ 'नक्सल आंदोलन' अब 'नक्सल आतंकवाद' बन चुका है. सामाजिक जागृति के लिए शुरु हुए इस आंदोलन पर कुछ सालों के बाद ही राजनीतिक वर्चस्व बढ़ने लगा और आंदोलन जल्द ही अपने मुद्दों से भटक गया. नक्सलवाद के विचारात्मक विचलन की सबसे बड़ी मार आज भी आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ, उड़ीसा, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों को झेलनी पड़ रही है. यहां आए दिन जवानों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुआ करती है. सरकार इस हथियारबंद विद्रोह को हथियारों के सहारे ही कुचलना चाहती है, लेकिन कई बार इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है. ऐसी ही एक कीमत छत्तीसगढ़ के बीजापुर में शनिवार को सुरक्षाबलों को चुकानी पड़ी. यहां नक्सलियों के साथ हुए मुठभेड़ में 22 जवान शहीद हो गए. 9 नक्सलियों के भी मारे जाने का दावा किया जा रहा है.
बताया जा रहा है कि CRPF की कोबरा, बस्तरिया बटालियन, DRG और STF के करीब 2000 जवान पिछले दो दिनों से नक्सल सर्च ऑपरेशन पर निकले हुए थे. शनिवार सुबह फोर्स को सूचना मिली कि बीजापुर के जोनागुड़ा के पास नक्सलियों का जमावड़ा है. वहां नक्सल कमांडर माड़वी हिडमा भी मौजूद है. हिडमा की बहुत दिनों से तलाश चल रही है. उसके ऊपर 40 लाख रुपए का इनाम भी है. सूचना मिलते ही जोनागुड़ा ऑपरेशन प्लान बनाया गया. इसके बाद पूरे फोर्स को जोनागुड़ा की ओर बढ़ने का निर्देश दिया गया. STF, CRPF, DRG और कोबरा बटालियन के करीब 2000 जवान सर्च ऑपरेशन पर लग गए. जोनागुड़ा, गुंडम, अलीगुडम और टेकलागुडम सहित कई इलाकों में दस्तक दी गई, लेकिन नक्सलियों का कहीं पता नहीं चला. इसके बाद जब फोर्स लौटने लगी तो सिलगेर के पास हमला कर दिया गया.
पैरा मिलिट्री फोर्स के करीब 2000 जवान पिछले दो दिनों से नक्सल सर्च ऑपरेशन पर निकले हुए थे.
क्या होता है U शेप एंबुश?
जानकारी के मुताबिक, एक दिन पहले से ही नक्सलियों ने आसपास के जंगल में अपनी पोजीशन बना ली थी. पूरे गांव को खाली करवा दिया गया था. इसके बाद ऑपरेशन से लौट रही आखिरी टीम को निशाना बनाया. अपनी योजना के तहत नक्सलियों ने जवानों को शुरुआत में डिस्टर्ब नहीं किया और उन्हें घने जंगल में अंदर तक घुसने दिया. इसके बाद हिडमा की बटालियन ने जवानों को अपने मुफीद U शेप एंबुश में फंसा लिया. इसमें दाखिल होने के बाद आगे बढ़ने का रास्ता बंद था और जवान हर तरफ से हथियारबंद नक्सलियों से घिरे हुए थे. नक्सलियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरु कर दी. मुठभेड़ करीब 5 घंटे चली. नक्सली ऊपरी इलाकों में थे, फोर्स की एंट्रेंस पर नजर रखे हुए थे, लिहाजा उन्होंने फौज का बड़ा नुकसान किया. कुछ जवान गांव की ओर पोजीशन लेने के लिए गए, लेकिन नक्सली वहां भी पहले से मौजदू थे.
नक्सली हमला कर हथियार, सामान लूटते गए और पीछे जंगलों में भागते गए. इस तरह करीब 22 जवान इस मुठभेड़ में शहीद हो गए. बड़ी संख्या में जवान घायल बताए जा रहे हैं. बताया जा रहा है कि जहां मुठभेड़ हुई है वह इलाका झीरम हमले के मास्टरमाइंड हिडमा का गांव है. हमला करने वाले नक्सली उसी की पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) टीम के सदस्य थे. काफी लंबे समय से गांव में नक्सलियों का जमावड़ा लग रहा था. इसकी सूचना पर बीजापुर के तर्रेम से 760, उसूर से 200, पामेड़ से 195, सुकमा के मिनपा से 483 और नरसापुरम से 420 जवान रवाना किए गए थे. यह इलाका गुरिल्ला वार जोन के अंतर्गत आता है. इसमें गुरिल्ला वार अर्थात छिपकर हमले की रणनीति ही कारगर होती है. यहां कभी भी एक साथ फोर्स नहीं जाती, छोटी-छोटी टुकड़ियों में जाती है.
कौन है नक्सल कमांडर हिडमा?
90 के दशक में नक्सल संगठन से जुड़े माडवी हिडमा ऊर्फ संतोष ऊर्फ इंदमूल ऊर्फ पोड़ियाम भीमा उर्फ मनीष के बारे में कहा जाता है कि साल 2010 में ताड़मेटला में 76 जवानों की हत्या के बाद उसे महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी गई थी. हिडमा के बारे में कहा जाता है कि वह बेहद आक्रामक रणनीति बनाता है. झीरम घाटी का मास्टर माइंड भी इसी को बताया जाता है. उसकी उम्र करीब चालीस साल है. वह सुकमा जिले के पुवार्ती गांव का रहने वाला है. वह माओवादियों की पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PGLA) बटालियन-1 का हेड और माओवादी दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (DKSZ) का सदस्य है. वह सीपीआई (माओवादी) की 21 सदस्यीय सेंट्रल कमेटी का युवा सदस्य है. हिडमा की सुरक्षा में करीब 250 नक्सलियों की फौज लगी रहती है, जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं. इनके अत्याधुनिक हथियार मौजूद हैं.
हिडमा के खिलाफ 30 से ज्यादा हत्या और नरसंहार के केस दर्ज हैं. इसमें झीरमघाटी में कांग्रेस नेताओं की हत्या का मामला भी शामिल है, जिसे मई 2013 में इसने अंजाम दिया था. बताया जाता है कि हिडमा एके-47 का शौकीन है. उसकी बटालियन हरदम अत्याधुनिक हथियारों से लैस रहती है. वह चार चक्रीय सुरक्षा घेरे में रहता है. उस तक किसी के लिए पहुंचना आसान नहीं है. उसकी पत्नी का नाम राजे है. वह भी नक्सली और डिवीजनल कमिटी की सदस्य है. हिडमा के साथ नक्सली हमले को लीड करती है. पुलिस के पास उसकी कोई निश्चित पहचान नहीं है. एक वर्षों पुरानी फाइल फोटो के आधार पर उसकी तलाश की जाती है. हां, एक पहचान है कि उसके बाएं हाथ की एक अंगुली कटी हुई है. वैसे कहा तो यहां तक जाता है कि हिडमा नाम से बड़ा पदनाम बन चुका है, क्योंकि कई बार उसके मारे जाने की खबरें भी आई हैं.
सुरक्षाबलों और नक्सलियों का संघर्ष
सुरक्षाबलों और माओवादियों के बीच पिछले 40 सालों से बस्तर में संघर्ष चल रहा है. अभी तक केवल छत्तीसगढ़ में 3200 से अधिक मुठभेड़ हो चुकी हैं. गृह विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2001 से मई 2019 तक नक्सली हिंसा में 1002 माओवादी और 1234 सुरक्षाबलों के जवान मारे गए हैं. इसके अलावा 1782 आम नागरिक माओवादी हिंसा के शिकार हुए हैं. इस दौरान 3896 नक्सलियों ने समर्पण भी किया है. 2020-21 के आंकड़े बताते हैं कि 30 नवंबर तक सूबे में 31 नक्सली पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे, वहीं 270 ने आत्मसमर्पण किया था. साल 2011 में दंतेवाड़ा में हुए एक बड़े नक्सलवादी हमले में कुल 76 जवानों की हत्या कर दी गई.
साल 2007 में छत्तीसगढ़ के बस्तर में 300 से ज्यादा विद्रोहियों ने 55 पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया था. साल 2008 में ओडिसा के नयागढ़ में नक्सलवादियों ने 14 पुलिसकर्मियों और एक नागरिक की हत्या कर दी. साल 2009 में महाराष्ट्र के गढ़चिरोली में हुए एक बड़े नक्सली हमले में 15 सीआरपीएफ जवानों की मौत हो गई. साल 2010 में नक्सलवादियों ने कोलकाता-मुंबई ट्रेन में 150 यात्रियों की हत्या कर दी. साल 2010 में वेस्ट बंगाल के सिल्दा केंप में घुसकर नक्सलियों ने 24 अर्द्धसैनिक बलों को मार दिया. साल 2012 में झारखंड के गढ़वा जिले के पास बरिगंवा जंगल में 13 पुलिसकर्मीयों को मार दिया. साल 2013 में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में नक्सलियों ने कांग्रेस के नेता समेत 27 व्यक्तियों को मार गिराया था. इस हमले का मास्टर माइंड हिडमा को ही बताया गया था.
22 security personnel have lost their lives in the Naxal attack at Sukma-Bijapur in Chhattisgarh, says SP Bijapur, Kamalochan KashyapVisuals from the Sukma-Bijapur Naxal attack site pic.twitter.com/C3VvAdvjaN
— ANI (@ANI) April 4, 2021
नक्सल समस्या का समाधान जरूरी
रोम जल रहा है और नीरो बांसुरी बजाने में व्यस्त हैं. हमारे देश के नेता इनदिनों रैलियों में व्यस्त हैं. जुलूस निकाल रहे हैं. भाषण दे रहे हैं. कहीं डांस कर रहे हैं, तो कहीं गाना गा रहे हैं. राज्य से लेकर केंद्र तक, किसी को भी जवानों के शहादत की उतनी फिक्र नहीं दिखाई देती. इतने बड़े हमले के बाद ट्विटर पर केवल 'कड़ी निंदा' कर देने से काम नहीं चलने वाला है. अब वक्त आ गया है कि सरकार सीमा पार के आतंक की तरह घर के अंदर नासूर बन चुके नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ फेंके. हम चीन और पाकिस्तान से आंखों में आंखें डालकर जवाब देने की कुवत रखते हैं, तो देश के अंदर के आतंकियों को क्या सबक नहीं सीखा सकते? देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक साथ मिलकर इस समस्या से देश को निजात दिलाने की योजना पर काम करना चाहिए.
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