न अयोध्या न काशी, बीजेपी बोली - बस कैराना और मथुरा
विपक्ष अब भी 15 लाख रुपये की रट लगाए हुए है. अब क्या अमित शाह हर किसी को वॉट्सऐप करें. अरे एक बार सार्वजनिक सभा में बता दिया तो बता दिया.
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बीजेपी ने साफ कर दिया है कि अब वो विकास के मुद्दे पर आगे बढ़ने वाली है. बीजेपी ने ये भी साफ कर दिया है कि न तो अब अयोध्या उसके एजेंडे में है और न ही काशी या ओल्ड मथुरा.
मोदी, शाह और बाकी नेताओं के भाषण को समझें तो मालूम होता है कि अब बीजेपी के एजेंडे में दो नये नाम हैं - कैराना और मथुरा. थोड़ा और ध्यान देने पर पता चलता है - रिश्ता तो वही है, बस सोच नई है.
मिशन/एजेंडा/टारगेट
अमित शाह ने उद्घाटन भाषण में ही रिश्ते और सोच की तस्वीर साफ कर दी थी. शाह ने कहा कि यूपी में कानून व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त है. मथुरा जैसी घटनाएं राजनीतिक संरक्षण में हो रही हैं और कैराना में पलायन हो रहा है. कैराना से हिंदुओं का पलायन घोर चिंता का विषय है. इस बात पर ज्यादा जोर रहा.
फिर कैराना से बीजेपी सांसद हुकुम सिंह ने एक लिस्ट पेश की, इल्जाम लगाया - 'मुस्लिम गिरोहों की लूट-खसोट से आजिज आकर लगभग साढ़े तीन सौ हिंदू परिवारों कैराना छोड़ दिया है.'
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मेनका गांधी तो गुस्से में और सख्त नजर आईं, "यूपी सरकार को शर्म नहीं आ रही है. एक दिन आएगा कि कोई यूपी में नहीं रहना चाहेगा. यूपी में न तो सुरक्षा है और न ही विकास."बाद में पता चला कि लिस्ट में वे लोग भी हैं जो दस साल पहले कैराना छोड़ चुके और वे भी जो दुनिया ही छोड़ चुके हैं. बात हुकुम सिंह तक पहुंची तो भूल सुधार के साथ हाजिर हुए और एलान किया कि वो एक एक नाम को खुद वेरीफाई करेंगे - संशोधित सूची का अभी इंतजार है.
नई पैकेजिंग में पुराना माल
बीजेपी अब ये मैसेज देने की कोशिश कर रही है कि वो हिंदुत्व के मुद्दे को पीछे छोड़ चुकी है. विकास उसका मेन एजेंडा है - सबका साथ, सबका विकास.
तो क्या बीजेपी अब वोटों के ध्रुवीकरण में यकीन नहीं रखती? क्या बीजेपी को ये सब घाटे का सौदा लगने लगा है? या बिहार चुनाव के नतीजों ने हृदय परिवर्तन कर दिया है? या माजरा कुछ और ही है?
मथुरा नाम वही है जो कभी अयोध्या, मथुरा और काशी तिकड़ी हुआ करता था. मामला बस जन्म स्थान से थोड़ी दूरी पर शिफ्ट हो गया है - जवाहर बाग. मथुरा के जवाहरबाग के मामले को बीजेपी अपराध और राजनीति के गठजोड़ के तौर पर पेश कर समाजवादी पार्टी के नेताओं को घेरने की कोशिश कर रही है.
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कैराना. एजेंडे के हिसाब से ये नाम नया नाम है लेकिन इसका पुराना कनेक्शन कुछ और ही कहानी कहता है.
नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट से पता चलता है कि कैराना का मुजफ्फरनगर से क्या कनेक्शन है. रिपोर्ट में लिखा है, "दरअसल, एक सेक्शन की ओर से इस बात को समझाने की कोशिश की जा रही है कि कैराना में जो कुछ हो रहा है वो मुजफ्फरनगर दंगे के बाद वहां विस्थापित मुस्लिमों के कारण हो रहा है."
कैराना के जिस इलाके से पलायन की बात हो रही है उससे कुछ ही दूरी पर एक रिफ्यूजी कालोनी बनाई गई है - ये कालोनी मुजफ्फरनगर दंगों के विस्थापितों के लिए बसाई गई है. ये दंगा लोक सभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बना था.
रिपोर्ट में लिखा है, "कैराना का मुद्दा सामने आने के बाद मुजफ्फनगर दंगे के भी जख्म फिर से हरे किये जा रहे हैं. अफवाहों का बाजार गर्म है. वॉट्सएप से कई मैसेज वायरल हो रहे हैं."
अब जुमला नहीं चलेगा
विपक्ष अब भी 15 लाख रुपये की रट लगाए हुए है. अब क्या अमित शाह हर किसी को वॉट्सऐप करें. अरे एक बार सार्वजनिक सभा में बता दिया तो बता दिया. अब विपक्ष को कौन समझाए कि ब्लैक मनी और खातों में 15-15 लाख रुपये आने की बातें महज चुनावी जुमला थीं.
प्रधानमंत्री को भी लगता है कि नहीं संभले तो ये विपक्षी नेता लोगों को कुछ और न समझा दें, इसलिए सबसे बड़ी समझ यही है कि खुद की समझदारी का दायरा बढ़ाओ.
बात यूपी पर फोकस है इसलिए निशाने पर मायावती और मुलायम सिंह यादव हैं. प्रधानमंत्री समझाते हैं कि किस तरह यूपी में मायावती और मुलायम की जुगलबंदी चल रही है, जिसमें बारी बारी से पांच-पांच साल लूटने की ठेकेदारी चल रही है.
अचानक लगता है - अच्छे दिन आ चुके हैं. अब कोई नारेबाजी नहीं होगी. कोई जुमलेबाजी नहीं होगी. अब सिर्फ विकास होगा. सबका विकास.
अच्छे दिन आ गये... अब विकास होगा... |
प्रधानमंत्री मोदी की बात पर ध्यान दीजिए, "देशभर के लोग सिर्फ नारों से संतुष्ट नहीं हैं. उनकी चिंता ये है कि देश मजबूत हो रहा है या नहीं."
मोदी समझाते हैं, "आज से विकास यज्ञ शुरू हो रहा है. इसमें अहंकार भाई भतीजाबाद जातिवाद संप्रदायवाद की आहुति देनी होगी."
प्रधानमंत्री मोदी ये भी समझाते हैं कि देश ने औद्योगिक क्रांति में विकास का मौका गंवा दिया था - अब एक बार भी वैसा ही मौका मिला है. ऐसा मौका बार बार नहीं आता. इसे हासिल करने के लिए 7-सूत्री फॉर्मूला अपनाना जरूरी है - सेवाभाव, संतुलन, संयम, समन्वय, साकारात्मक, सद्भावना और संवाद.
साथ ही प्रधानमंत्री को अपेक्षा है - 'ये सब हमारे आचरण और नीति में इनका असर दिखना चाहिए.'
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विकास के वादे के साथ इस बार फुल वॉरंटी भी है - पसंद न आए तो रिटर्न. लोग चाहें तो 15 दिन नहीं, 20 दिन नहीं, 49 दिन भी नहीं और एक साल भी नहीं - पूरे पांच साल इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें.
प्रधानमंत्री की बात सुनिये, "एक बार हमे मौका दीजिए. अगर हमने ठीक से काम नहीं किया तो हमें लात मारकर निकाल दीजिएगा."
ये डिजिटल इंडिया का दौर है. विकास ट्रेंडिंग टॉपिक है तो कैराना और मथुरा की-वर्ड. इसमें भी गारंटी नहीं वॉरंटी ही चलती है. अच्छे दिन आ चुके हैं.
अब सिर्फ विकास होगा! कुछ वैसे ही जैसे बरसों पहले इस मुल्क से गरीबी चली गई! है कि नहीं?
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