सोनिया - राहुल गांधी नहीं, कांग्रेस का असली चेहरा 85 साल के मनमोहन सिंह ही हैं
कांग्रेस अहम फैसले भले सोनिया गांधी और राहुल गांधी जैसे नेता लेते चले आ रहे हों, मगर देश का आम आदमी आज भी कांग्रेस के असली चेहरे के तौर पर मनमोहन सिंह को देखता है, और इसके भी अपने अलग कारण हैं.
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एक ऐसे वक्त में, जब कांग्रेस इस देश के आम आदमी के बीच अपना खोया जनाधार तलाशने में जी तोड़ कोशिश कर रही है. उस वक्त, अगर कांग्रेस के खेमे का कोई व्यक्ति, यदि इस देश की जनता को पसंद है तो वो हैं पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह. चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष. दोनों के लिए डॉक्टर मनमोहन सिंह की काबिलियत को नकारना लगभग असंभव है. कहा जा सकता है कि, भले ही हमेशा से पार्टी के अहम फैसले सोनिया गांधी और राहुल गांधी जैसे नेता लेते चले आ रहे हों, मगर इन दोनों के मुकाबले, इस देश के एक आम आदमी के सामने कांग्रेस का असली चेहरा डॉक्टर मनमोहन सिंह ही हैं. 85 साल के वो मनमोहन सिंह, जिनका आज जन्म दिन है.
मनमोहन सिंह का शुमार उन नेताओं में हैं जिनसे कांग्रेस का अस्तित्त्व है
मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1932 को पंजाब प्रांत में हुआ था. मनमोहन सिंह 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे. आपको बताते चलें कि मनमोहन सिंह देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के बाद एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो 10 सालों में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर दो बार बैठे. मनमोहन सिंह को देश में आर्थिक सुधारों के सूत्रधार के रूप में भी देखा जाता है. बताया जाता है कि ये केवल और केवल मनमोहन सिंह की सूझ-बूझ थी जिसके चलते आज उनके द्वारा लिए गए कई अहम फैसले, देश के विकास के मार्ग में मील का पत्थर साबित हो रहे हैं.
अपने 10 साल के कार्यकाल के दौरान, मनमोहन सिंह के सामने कई ऐसे मौके आए जब उन्होंने बयान देने के बजाए चुप्पी अख्तियार की. अलग-अलग मुद्दों पर उनकी इस चुप्पी पर न सिर्फ विपक्ष ने बल्कि उनकी ही पार्टी के कई छोटे बड़े नेताओं ने कई सवाल भी उठाए. आज भी मनमोहन सिंह के आलोचकों तक का मानना है कि उनकी यही सादगी उनकी सबसे बड़ी विशेषता है.
मनमोहन भारत की राजनीति में वो स्थान रखते हैं जहां पहुंच पाना किसी के लिए भी आसान नहीं है ध्यान रहे कि, जब 1991 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार में वह वित्त मंत्री थे, तब एक ऐसा दौर आया. जब हमारा देश दिवालिया होने की कगार पर आ गया था. उस वक्त, देश हित में तब के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने जो फैसले लिए वो आज भी अपने आप में प्रासंगिक हैं. जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि आज भी जब देश या इस देश का वासी कांग्रेस को जहन में रखकर अतीत की बातों को सोचना शुरू करता है तो उसके दिमाग में राहुल, सोनिया या पार्टी के किसी अन्य नेता की अपेक्षा मनमोहन सिंह का चेहरा सामने आता है.
मनमोहन सिंह अपने सम्पूर्ण कार्यकाल में बेहद कम बोले .हैं मगर जब वो बोलें हैं तो उन्होंने बोलने वालों की बोलती बंद की है. अपनी सूझ-बूझ और लिए गए फैसलों से बताया कि, वो एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने बोलने के मुकाबले करने और करते रहने को सदैव प्राथमिकता दी है. तो आइये आज मनमोहन सिंह के जन्मदिन पर जानें उनकी कुछ ऐसी उपलब्धियों को जिसके बाद चाहे आप समर्थक हों या विरोधी. ये मानने को तैयार हो जाएंगे कि, पूर्व में देश की गिरी हुई अर्थव्यवस्था पर जब भी बात होगी तब-तब मनमोहन सिंह, उनके फैसलों और उनकी उपलब्धियों को याद किया जाएगा.
1. भारत में आर्थिक सुधारों के सूत्रधार
इसमें कोई संदेह नहीं है कि मनमोहन सिंह एक कुशल अर्थशास्त्री थे. 1991 में जब मनमोहन सिंह ने देश के वित्त मंत्री का पद संभाला था तब आर्थिक क्रांति ला दी थी. इन्होंने ही ग्लोबलाइजेशन की शुरूआत की थी. 1991 से 1996 के बीच उनके द्वारा किए गए आर्थिक सुधारों की जो रूपरेखा, नीति और ड्राफ्ट तैयार किया, उसकी दुनिया भर में प्रशंसा की जाती है. मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण को बाकायदा एक ट्रीटमेंट के तौर पर सरकार और जनता के सामने पेश किया.
मनमोहन सिंह हमेशा से ही अपनी सूझ-बूझ के लिए जाने गए हैं
2. आयात निर्यात को बढ़ावा
2004 से 2014 तक लगातार 10 साल देश के पीएम रहे मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाजार से जोड़ने के बाद उन्होंने आयात और निर्यात के नियम भी सरल किए. लाइसेंस और परमिट गुजरे वक्त की बात होकर रह गई. घाटे में चलने वाले पीएसयू के लिए अलग से नीतियां बनाईं.
3. रोजगार गारंटी के तहत की नरेगा की शुरुआत
ये बहुत शर्मनाक है कि विश्व मानचित्र पर सदैव ही भारत को एक गरीब देश के तौर पर देखा गया है. इसके बावजूद इस दाग को भी दूर करने में मनमोहन सिंह का अहम योगदान है, कह सकते हैं कि बेरोजगारी का दंश झेलते देश में रोजगार गारंटी योजना की सफलता का श्रेय मनमोहन सिंह को जाता है. इसके तहत साल में 100 दिन का रोजगार और न्यूनतम दैनिक मजदूरी 100 रुपये तय की गई है. इसे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA)कहा जाता था जिसका अब नाम बदल दिया गया है.
आपको बताते चलें कि रोजगार गारंटी योजना दुनिया की सबसे बड़ी योजनाओं में से एक है जो 2 फरवरी 2006 को भारत के 200 जिलों में शुरू की गई, जिसे 2007-2008 में देश के अन्य 130 जिलों में फैलाया गया. 1 अप्रैल 2008 तक इसे भारत के सभी 593 जिलों में लागू कर दिया गया और इसके बाद देश में कई आश्चर्यजनक परिणाम भी दिखे.
एक नेता के तौर मनमोहन सिंह ने इस देश का हर बुरे समय में साथ दिया है
4. शिक्षा का अधिकार
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही राइट टु एजुकेशन यानी शिक्षा का अधिकार अस्तित्व में आया. इसके तहत 6 से 14 साल के बच्चे को शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित किया गया. इस अधिकार के तहत ये कहा गया कि 6 से 14 साल तक के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दी जाएगी.
5. न्यूक्लियर पावर भी बना भारत
साल 2002 में मनमोहन सिंह ने एक सराहनीय फैसला लिया था. तब एनडीए से देश की बागडोर यूपीए के हाथ में आए ज्यादा दिन नहीं हुए थे . सरकार के ऊपर भारी दबाव था. इस प्रेशर के बावजूद भारत ने इंडो यूएस न्यूक्लियर डील को अंजाम दे दिया. साल 2005 में जब इस डील को अंजाम दिया गया उसके बाद भारत न्यूक्लियर हथियारों के मामले में एक मजबूत राष्ट्र बनकर उभरा. साथ ही उस वक्त ये भी फैसला लिया गया कि भारत अपनी इकॉनमी की बेहतरी के लिए सिविलियन न्यूक्लियर एनर्जी पर काम करता रहेगा.
बतौर अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने नोटबंदी के असर को समझा और उसे लोगों को समझाया
6. नोटबंदी से देश को आगाह कराना
कह सकते हैं कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को उस देश में घटित नोटबंदी कितना प्रभावित कर सकती है ये बात एक आम आदमी के मुकाबले कोई अर्थशास्त्री ज्यादा बेहतर ढंग से समझ पाएगा. नोटबंदी के बाद मनमोहन सिंह ने नोट बंधी के खतरों को समझा और जनता को आगाह कराया. नोटबंदी पर चर्चा के दौरान नंवबर 2016 में राज्यसभा में मनमोहन सिंह ने ये बात बिल्कुल साफ कह दी थी कि, 'नोटबंदी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा है जिससे अर्थव्यवस्था कमजोर हो सकती है.
साथ ही मनमोहन सिंह ने तब जीडीपी में गिरावट की बात पर भी अपना दावा ठोका था. हाल ही जारी आंकड़ों पर एक नजर डालें तो मिलता है कि चालू वित्त वर्ष की जून में खत्म हुई तिमाही के दौरान देश की जीडीपी की वृद्धि दर में गिरावट दर्ज की गई है. जीडीपी का आंकड़ा गिरकर 5.7 फीसद पर आ गया है. वित्त वर्ष 2016-17 की पहली तिमाही के दौरान जीडीपी की रफ्तार 7.9 फीसदी थी.
मनमोहन सिंह और उनके किये गए कार्यों के मद्देनजर ये फेहरिस्त बहुत छोटी है. मगर इस फेहरिस्त को देखकर एक बात शीशे की तरह साफ हो जाती है कि, जिस कांग्रेस पार्टी ने 10 सालों के अन्तराल में दो बार मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया. वो शायद ये बात भूल गयी कि, इस देश के लोगों ने भी मनमोहन सिंह को 2 बार इसलिए स्वीकार किया क्योंकि उनके अन्दर काबिलियत का अम्बार था. जिसकी कमी आज पार्टी के कई शीर्ष नेताओं और उपाध्यक्ष तक में दिख रही है.
अंत में हम बस इतना कहना चाहेंगे कि मनमोहन सिंह में जितनी काबिलियत थी अगर उस काबिलियत का एक चौथाई हिस्सा भी आज पुनः पार्टी और उसके नेताओं में आ जाए तो हमारा वर्तमान विपक्ष कमजोर बन हंसी का पात्र नहीं बनता.
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