निर्मला सीतारमण ने इस बार लोक लुभावन नहीं, वोटबैंक बजट पेश किया है
मोदी सरकार की नजर बेशक अभी से 2024 के आम चुनाव पर ही टिकी हुई है, लेकिन आम बजट (Budget 2023) में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने उससे पहले के विधानसभा चुनावों को देखते हुए वोटर (Budget for Vote Bank) के प्रति मेहरबानी दिखाने की कोशिश की है.
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मोदी सरकार के मौजूदा कार्यकाल का ये आखिरी आम बजट (Budget 2023) है. अगले साल यानी 2024 में लोक सभा के चुनाव होने हैं. चुनाव से पहले सरकार की तरफ से अंतरिम बजट पेश किया जाएगा - और बाकी का काम नयी सरकार के लिए छोड़ दिया जाएगा. बिलकुल ऐसा ही 2019 में भी हुआ था.
असर तो 2019 के अंतरिम का भी रहा ही होगा, लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर से सत्ता सौंप दी और नयी व्यवस्था में भी मोदी सरकार को ही पूर्ण बजट भी पेश करने का मौका मिला. जाहिर है, आम चुनाव पर फोकस तो अगले साल के अंतरिम बजट में ही देखने को मिलेगा - ऐसे में अभी के आम बजट को चुनावी साल 2023 की राजनीति की नजर से देखा जाना चाहिये.
2023 में त्रिपुरा से लेकर छत्तीसगढ़ तक कुल नौ राज्यों में विधानसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं - और अगर चुनाव आयोग को जम्मू-कश्मीर में भी माहौल बढ़िया लगा तो समझ लीजिये 2024 के आम चुनाव से पहले 10 राज्यों में चुनाव होंगे.
ऐसे में बजट को तो बीते कुछ साल के मुकाबले अलग होना ही था - और चुनावी राजनीति के हिसाब से देखें तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने सरकार की तरफ से लोगों को जो भी तोहफा दिया है, वो तो सीधी सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खाते में ही दर्ज हो रहा है.
अपना पांचवां बजट पेश करते हुए निर्मला सीतारमण ने भारतीय अर्थव्यवस्था को चमकता हुआ सितारा बताया. बोलीं कि दुनिया में भारत का कद बढ़ा है - और सही दिशा में चलने के कारण भारती अर्थव्यवस्था सुनहरे भविष्य की तरफ बढ़ रही है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपनी ताजा पेशकश को अमृत काल का पहला बजट भी बताया - और सप्तर्षि के रूप में केंद्र की बीजेपी सरकार की प्राथमिकताएं भी गिनायीं.
अव्वल तो अरसा बाद मोदी सरकार ने देश के नौकरी पेशा और मध्य वर्ग को नयी टैक्स व्यवस्था भी दी है, लेकिन ज्यादा जोर बीजेपी के कोर वोटर (Budget for Vote Bank) पर ही लगता है. चुनावी रैलियों में हिट तो नयी कर व्यवस्था भी रहेगी, लेकिन जिस तरह से सरकार का फोकस देश के गरीब तबके के साथ साथ किसानों पर लगता है, मकसद साफ हो जाता है.
आम बजट में बीजेपी के वोटर का खास ख्याल रखा गया है
बीते करीब दो दशक के चुनावों को देखें तो मनरेगा से लेकर जनधन खाता जैसी सरकारी योजनाएं सबसे ज्यादा वोट बटोरने में सफल रही हैं. प्रधानमंत्री भले ही मनरेगा की खिल्ली उड़ाते रहे हों, और रेवड़ी कल्चर को लेकर अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं को कठघरे में खड़ा करते रहे हों - लेकिन ऐन उसी वक्त उनको भी तो यही लगता है कि ऐसी स्कीम ही वोटर को बीजेपी तक भी खींच कर ला रही हैं.
चुनावी साल में मोदी सरकार के आखिरी पूर्ण बजट में वोटों की कितनी फिक्र.
यूपीए सरकार की मनरेगा योजना को लेकर जो लोग ये सोच रहे थे कि मोदी सरकार बंद ही कर देगी, वे बुरी तरह निराश हुए. मोदी सरकार ने तो मनरेगा योजना को हाथों हाथ ही लिया - और आम आदमी पार्टी के मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ साथ फ्री की बिजली पानी के खिलाफ बीजेपी के कैंपेन के बावजूद सरकार का फोकस तो नहीं ही बदल रहा है.
आम चुनाव तक मुफ्त राशन मिलेगा: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है, 'हमारा आर्थिक एजेंडा आम लोगों के लिए मौकों को सुविधाजनक बनाने, विकास और रोजगार पैदा करने की गति तेज करने - और व्यापक आर्थिक स्थिरता को मजबूत करने पर फोकस है.'
निर्मला सीतारमण के मुताबिक, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत केंद्र सरकार 2 लाख करोड़ रुपये का खर्च वहन कर रही है - और अंत्योदय योजना के तहत गरीबों के लिए मुफ्त खाद्यान्न की आपूर्ति को एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है.
कोविड काल का जिक्र करते हुए निर्मला सीतारमण ने बताया कि सरकार ने सुनिश्चित किया कि कोई भूखा न सोये... सरकार ने हर व्यक्ति तक खाद्यान्न पहुंचे ये सुनिश्चित किया... 28 महीने तक 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन देने की व्यवस्था की गई - अब अगले एक साल तक के लिए योजना को एक्सटेंशन दिया जा रहा है. और इसके लिए 2 लाख करोड़ रुपये का बजट में प्रावधान किया गया है.
मतलब, चुनावी राजनीति के हिसाब से अगले एक साल के लिए पूरा इंतजाम कर दिया गया है. जिस वोट बैंक को इस योजना का फायदा मिलेगा, उसे अपने पक्ष में करने में बीजेपी को आसानी तो होगी ही.
ये योजना अभी एक साल के लिए बढ़ायी गयी है. साफ है, आम चुनाव में एक साल से ज्यादा का वक्त है. मतलब, ये सारा इंतजाम दिसंबर 2023 तक हो जाने वाले चुनावों को देखते हुए ही किया गया है. आगे की चीजें तात्कालिक जरूरतों के हिसाब से अंतरिम बजट में ही देखने को मिलेंगी.
मौजूदा दौर की जिस योजना का फायदा समझ में आया, उसे आगे भी जारी रखा जाएगा. वरना, आगे के लिए अभी से बंद ही समझ लेना चाहिये. हां, आने वाले चुनावों का शुक्रगुजार होते हुए ऐसी नयी योजनाओं की अपेक्षा की जा सकती है.
सबका साथ, सबका आवास: मुफ्त राशन के अलावा प्रधानमंत्री आवास योजना का बजट बढ़ाये जाने का भी वही मकसद है - ताजा बजट में प्रधानमंत्री आवास योजना का बजट 66 फीसदी बढ़ाकर 79 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया है. वित्त वर्ष 2022-23 के बजट इस योजना के तहत 48 हजार करोड़ रुपये निर्धारित किये गये थे.
प्रधानमंत्री आवास योजना तहत सरकार उन लोगों को घर बनाने के लिए पैसे देती है जिनके पास पक्के घर नहीं होते हैं. हाल ही में पश्चिम बंगाल से इस योजना में घोटाले की खबर भी आयी थी, जिसकी जांच पड़ताल चल रही है. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ये भी देखा जाता है कि लाभार्थी के पास कोई मोटरयुक्त दुपहिया या तिपहिया वाहन तो नहीं है. अपना मकान तो नहीं ही होना चाहिये, कुछ और भी शर्तें पूरी करनी पड़ती हैं.
अगर किसी के पास 50 हजार या उससे ज्यादा का किसान क्रेडिट कार्ड है, तो वो भी इस योजना के तहत घर नहीं ले सकता. परिवार में अगर कोई सरकारी कर्मचारी है तब भी वो योजना का लाभ ले पाने के लिए अयोग्य हो जाता है. अगर किसी परिवार में कोई व्यक्ति प्रति महीना 10 हजार रुपये कमा रहा है तो उसे भी इस स्कीम में घर नहीं मिलने वाला है.
कर्नाटक, नॉर्थ-ईस्ट और आदिवासी वोटर पर मेहरबानी: देश को आदिवासी राष्ट्रपति देने के बाद भी बीजेपी सरकार शांत बैठती नजर नहीं आ रही है. असल में आम चुनाव से पहले कई राज्यों में आदिवासी वोटर भी कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं. गुजरात चुनाव के वक्त अरविंद केजरीवाल आदिवासी वोटर पर जितनी मेहरबानी दिखाने की कोशिश कर रहे थे, नतीजी ने बहुत निराश किया - और बीजेपी को ये सब अच्छी तरह समझ में आ चुका है.
आदिवासियों के विकास पर जोर देते हुए वित्त मंत्री ने आम बजट में जिन योजनाओं की घोषणा की है, 15 हजार करोड़ रुपये का बजट भी दिया है. वित्त मंत्री ने बताया है कि जनजातीय समूहों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए प्रधानमंत्री विकास मिशन शुरू किया जाएगा, ताकि ऐसी बस्तियों में बुनियादी सुविधायें सरकार की तरफ से मुहैया करायी जा सकें.
आदिवासी छात्रों के लिए केंद्र सरकार अगले तीन साल में 740 एकलव्य स्कूल खोलने जा रही है - और ऐसे मॉडल स्कूलों के लिए 38,800 शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों की नियुक्ति की जाएगी.
आदिवासी वोटर की खासी तादाद त्रिपुरा में भी है, और मध्य प्रदेश में भी. त्रिपुरा में तो 16 फरवरी को ही वोटिंग होनी है - और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में साल के आखिर में. त्रिपुरा के बाद कर्नाटक में विधानसभा के लिए चुनाव होंगे. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कर्नाटक के सूखा प्रभावित चित्रदुर्गा, तुमकुर और देवनगिरि जैसे इलाकों में अपर भद्रा प्रोजेक्ट के लिए 5,300 करोड़ रुपये के मदद की घोषणा की है. बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने चुनाव से पहले वित्त मंत्री के इस ऐलान को गेम चेंजर बताया है. पूर्वोत्तर राज्यों के लिए बजट प्रावधान पिछले बजट के मुकाबले दो गुना कर दिया गया है. सरकार यहां 5,892 करोड़ रुपये खर्च करेगी. त्रिपुरा के साथ ही नगालैंड और मेघालय में भी चुनाव हो रहे हैं.
सीवर की सफाई के लिए मशीन: सीवर की सफाई व्यवस्था भी सिर पर मैला ढोने जैसी ही अमानवीय रही है. अक्सर ही सीवर की सफाई के दौरान हादसे होते रहते हैं - और ऐसी घटनाओं पर कोई रोक लगती नहीं दिखती.
बजट में जो व्यवस्था दी गयी है, उसमें सीवर की सफाई में लोगों की जगह मशीनों के इस्तेमाल पर ज्यादा जोर रहेगा - कहा तो यहां तक गया है कि ये काम सौ फीसदी मशीनों से ही है, ऐसी कोशिश होगी. देखते हैं. अगर वास्तव में ऐसा संभव हो पाया तो बहुत बड़ी बात होगी.
किसानों से अब भी डर लगता है क्या?
निर्मला सीतारमण जिस तरीके से बजट में किसानों पर मेहरबान लगती हैं, ऐसा लगता है कि मोदी सरकार अब भी मान कर चल रही है कि किसानों की नाराजगी पूरी तरह दूर नहीं हुई है. ऐसा तब भी जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूपी चुनाव सहित पांच राज्यों में होने वाली विधानसभा चुनाव से पहले ही वापस लेने की घोषणा कर दी थी.
निश्चित तौर पर यूपी चुनाव 2022 के नतीजे भी गुजरात की ही तरह बीजेपी के पक्ष में रहे थे, लेकिन बहुत पापड़ भी बेलने पड़े थे. यूपी चुनाव के सबसे कठिन मोर्चे पर केंद्रीय मंत्री अमित शाह खुद डटे हुए थे - और जयंत चौधरी को रिझाने से लेकर मायावती की प्रासंगिकता का बखान करते नहीं थक रहे थे.
पंजाब को तो वैसे भी बीजेपी के हाथ नहीं आना था. और अब तो हिमाचल प्रदेश भी हाथ से निकल चुका है. गुजरात जैसी जीत बार बार तो मिलती नहीं. आने वाले हर विधानसभा चुनाव को बीजेपी नेतृत्व गुजरात की तरह लेने की सलाह दे रहा है, लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि नतीजे तो हिमाचल प्रदेश जैसे भी हो सकते हैं. मोदी-शाह के लिए गुजरात जैसा तो कोई भी नहीं है, उत्तर प्रदेश की जीत में बड़ी भूमिका तो योगी आदित्यनाथ की भी रही ही है.
किसानों पर फोकस: आम बजट में किसानों का खास ख्याल रखने की कोशिश समझ में आ रही है - जिसमें स्टार्ट अप को बढ़ावा देना भी शामिल है. कहने को तो किसानों की आय दोगुनी करने का भी वादा किया ही गया था. हालांकि, उसकी अलग से पैमाइश हो सकती है.
निर्मला सीतारमण के अनुसार, कृषि स्टार्ट अप को कदम कदम पर तरजीह तो मिलेगी ही, बढ़ावा देने के लिए एग्रीकल्चर एक्सीलेटर फंड बनाया जाएगा. अगले 3 साल में एक करोड़ किसानों को कुदरती खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा और मदद भी दी जाएगी, जिसके लिए 10 हजार बॉयो-इनपुट रिसोर्स सेंटर खोले जाएंगे. पशुपालन, डेयरी और मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए कर्ज देने की रफ्तार बढ़ाई जाएगी - और उसके लिए कृषि ऋण लक्ष्य को बढ़ा कर 20 लाख करोड़ रुपये किया जाएगा.
और फिर चुनावी रैलियों में बीजेपी नेता किसानों को कुछ ऐसे ही समझाने की कोशिश करेंगे - अब तो मान जाइये, अब तो वक्त भी काफी आगे निकल चुका है.
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