बैंक में जमा है पैसा, मगर बैंक डूब जाए तो फिर उस पैसे का क्या ?
अब तक इस देश का आम आदमी को इस बात का भरोसा था कि बैंक में उसका पैसा सुरक्षित है. ऐसे में अब जो पीएमसी बैंक ने किया है उसने साफ़ तौर पर आम आदमी के उस भरोसे की हत्या की है जिसमें उसे लगता था कि अगर उसका पैसा बैंक में है तो वहां वो सुरक्षित है.
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एक ऐसे वक़्त में जब देश मंदी की मार सह रहा हो, महंगाई अपने चरम पर हो, लोगों के पास रोजगार न हो सेविंग और इन्वेस्टमेंट को लेकर प्लानिंग करना खुद को धोखा देने जैसा है. जिनके पास थोड़ा बहुत पैसा है वो जैसे तैसे गुजरा कर रहे हैं और अपने खर्चों में कटौती करके उसे बैंकों में जमा कर रहे हैं. सवाल है कि क्या बैंकों में पैसा सुरक्षित है? या फिर ये कि आपने अपनी सेविंग को बैंक में रखा है और बैंक डूब जाए तो फिर उस पैसे का क्या ? सवाल विचलित करने वाला है और निश्चित तौर पर सवाल को लेकर आपका तर्क यही होगा कि अगर ऐसा होता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार की होगी. यानी कहीं न कहीं हम इस बात को लेकर बेफिक्र है कि यदि कल बैंक को कुछ हो गया तो हमारा पैसा सुरक्षित रहेगा. हकीकत और फ़साने में फर्क है उपरोक्त बातें तब फ़साना लगती हैं जब हम पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक यानी पीएमसी बैंक के सिलसिले में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की बातें सुनते हैं. निर्मला सीतारमण का मानना है कि इसकी जिम्मेदारी रिज़र्व बैंक की है और इसमें सरकार का कोई लेना देना नहीं है.
बैंकों को लेकर जो बात निर्मला सीतारमण ने कही है उससे आम आदमी को गहरा धक्का लगा है
क्या कहा है केंद्रीय वित्त मंत्री ने
मुंबई में बीजेपी दफ्तर के बाहर पीएमसी बैंक के जमाकर्ताओं से मिलीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि बहुराज्यीय सहकारी बैंकों का संचालन बेहतर बनाने के लिये संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक लाया जाएगा. आपको बताते चलें कि पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक के जमाकर्ताओं ने दिल्ली में अदालत के बाहर विरोध प्रदर्शन करते हुए दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है. ज्ञात हो कि बैंक की स्थिति को देखते हुए कई तरह के प्रतिबंध लगे हुए हैं.इसलिए जमाकर्ता अपने बैंक से धन नहीं निकाल पा रहे हैं. बात अगर पीएमसी की हो तो पीएमसी 11,600 करोड़ रुपये से अधिक जमा के साथ देश के शीर्ष 10 सहकारी बैंकों में से एक है. फिलहाल पीएमसी बैंक रिजर्व बैंक द्वारा नियुक्त प्रशासक के अंतर्गत काम कर रहा है.
क्यों हुई ये असुविधा
बताया जा रहा है कि जहां एक तरफ बैंक तमाम तरह की अनियमितताओं का शिकार था तो वहीं इसने तमाम कर्जे भी बांटे थे जिस कारण उसका एनपीए बढ़ गया. यानी ये अपने आप साफ़ हो गया है कि ग्राहकों की आड़ लेकर बैंक अपने कर्जे से निजात पाना चाह रहा है.
एचडीएफसी के चेयरमैन तक हैं मामले से सन्न
जैसे पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक में संकट के बदल छाए हैं, उसने एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख तक को सन्न कर दिया है. मामले पर पारेख ने कहा है कि काफी गलत है कि एक तरफ लगातार लोगों के लोन माफ किए जाते हैं, को-ऑपरेटिव लोन राइट ऑफ किए जा रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ आम आदमी की बचत को बचाने के लिए कोई इंतजाम नहीं है. ध्यान रहे कि पारेख की ये प्रतिक्रिया उस वक़्त आई है जब अपना ही पैसा निकालने के लिए पीएमसी बैंक ने ग्राहकों के लिए 25000 रुपए की अधिकतम लिमिट तय की है. जिस कारण बैंक के ग्राहकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
मामले को लेकर पारेख ने ये भी कहा है कि, मेरे हिसाब से इससे बड़ा कोई अपराध नहीं हो सकता है कि आम लोगों की मेहनत से कमाई गई इन्कम को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है. यह बहुत ही निर्दयी और गलत है कि हमने सिस्टम को लोन माफी, राइट ऑफ करने का अधिकार दिया है. बैंक जब चाहे यह कर सकते हैं, लेकिन हमारे पास ऐसा पुख्ता इंतजाम नहीं है कि लोगों का ईमानदारी से कमाया गया पैसा सुरक्षित रखा जा सके.दिलचस्प बात ये है कि पारेख ने किसी का नाम नहीं लिया मगर जिस तरह के हालात हैं साफ़ था कि पारेख का इशारा पीएसबी की तरफ है.
एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख भी मानते हैं कि बैंकों का ये बर्ताव ग्राहकों के लिए बिलकुल भी सही नहीं है
भरोसे को माना वित्तीय सिस्टम की रीढ़
जो बातें पारेख ने कहीं हैं वो साफ़ तौर से मामले पर उनकी फ़िक्र दर्शा रही हैं. पारेख के अनुसार, भरोसा और विश्वास किसी भी वित्तीय सिस्टम की रीढ़ होती है और किसी को इसे तोड़ना नहीं चाहिए. लोगों को मूल्यों और नैतिकता को कमतर नहीं आंकना चाहिए.
जो बात पारेख ने कहीं हैं वहीं बातें इस देश का आम आदमी भी सोच रहा है. किसी और जगह के मुकाबले आम आदमी बैंक को तरजीह इसी लिए देता है कि उसे भरोसा है कि चाहे कुछ भी हो जाए अगर भविष्य में बात बिगड़ गई तो बैंक में उसका जमा किया हुआ पैसा सुरक्षित रहेगा. लेकिन अब जिस तरह पीएमसी का मामला सामने आया है देश के आम आदमी के सामने डर बना हुआ है कि अगर कल अन्य बैंकों ने यही राह पकड़ ली या फिर इससे मिलता जुलता कुछ कर दिया तो क्या होगा?
बात साफ़ है आम आदमी बड़ी चुनौतियों का सामना कर अपना पैसा सेविंग के नाम पर बैंक में डालता है. अब अगर वो बैंक में ही सेफ नहीं है तो फिर ऐसी सेविंग का क्या फायदा पैसा लुटना है तो घर में रखे रखे लुट जाए. कम से कम इस बात की तसल्ली रहगी कि पैसा हाथ की मैल था, जहां से आया वहां चला गया.
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