महाराष्ट्र की उठापटक में खुल सकती है नितिन गडकरी की लॉटरी!
नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) आम चुनाव से पहले तो खासे चर्चित रहे, लेकिन बाद में उनकी विशेष मौजूदगी नहीं दिखी. महाराष्ट्र (Maharashtra) में सरकार बनाने के लिए शिवसेना और बीजेपी की रस्साकशी में गडकरी को सरपंच बनाने की कोशिश हो रही है - हासिल क्या होगा?
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महाराष्ट्र (Maharashtra) में सरकार गठन का मामला अब नागपुर कोर्ट में पहुंच गया है. बीजेपी (BJP) और शिवसेना (Shiv Sena) दोनों पक्ष चाहते हैं कि RSS प्रमुख मोहन भागवत अब जरूर दखल दें. साथ ही, संघ प्रमुख से शिवसेना की ओर से गुजारिश की गयी है कि वो अपने करीबी नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) को मध्यस्थता के लिए कहें. शिवसेना के एक नेता का मानना है कि नितिन गडकरी ये मामला चुटकी बजाते सुलझा सकते हैं.
महाराष्ट्र विधानसभा के कार्यकाल के हिसाब से सरकार बनाने के लिए चुनाव आयोग ने दो हफ्ते का वक्त कोई कम नहीं रखा था. 21 अक्टूबर को वोटिंग के बाद 24 अक्टूबर को नतीजे आये थे. 2014 में 10 नवंबर को नई विधानसभा का गठन हुआ था और इस हिसाब विधानसभा के कार्यकाल का आखिरी दिन 9 नवंबर, 2019 है. तब तक सरकार नहीं बनी तो राष्ट्रपति शासन लगेगा - विधानसभा भंग किया जाना तो फिर से चुनाव में उतरने के लिए आखिरी विकल्प होगा.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दोबारा बैठने का इंतजार कर रहे देवेंद्र फणडवीस तो खुद नागपुर जाकर मोहन भागवत से मिल चुके हैं. शिवसेना के एक नेता इसी सिलसिले में पत्र लिखा है. खास बात ये है कि फडणवीस और भागवत की मुलाकात के वक्त नितिन गडकरी भी मौजूद रहे बताये जा रहे हैं. एक दिलचस्प वाकया और भी हुआ है. महाराष्ट्र में किसानों के नाम पर हो रही मुलाकातों के बीच सोनिया गांधी के करीबी और कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने भी नितिन गडकरी से मुलाकात की है - ये तो माना ही जा सकता है कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने के आखिरी घंटों में राजनीति नितिन गडकरी के आस-पास मंडराने लगी है.
महाराष्ट्र CM केस संघ के दरबार में
24 अक्टूबर को जब विधानसभा चुनाव के नतीजे आने लगे तो यही लग रहा था कि पहला शपथग्रहण समारोह मुंबई में ही होगा. चंडीगढ़ पर तो काफी देर तक सस्पेंस रहा, लेकिन हुआ उलटा. हरियाणा में सब सुलझ गया और महाराष्ट्र में रहस्य गहराता ही चला गया - अब भी जारी है. अब संघ की भी एंट्री हो गयी है - और महाराष्ट्र से आने वाले बीजेपी के कद्दावर नेता नितिन गडकरी भी सक्रिय होते लग रहे हैं.
50-50 सरकार की जिद पर अड़े शिवसेना नेतृत्व से डील करना लगता है देवेंद्र फडणवीस के वश की बात नहीं रही - और आखिरकार बीजेपी नेता को 'संघम् शरणम्...' करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था.
मुलाकात के दौरान नितिन गडकरी की मौजूदगी से इतना तो समझा ही जा सकता है कि क्या तैयारी चल रही है. मुलाकात में नितिन गडकरी के अलावा भैयाजी जोशी भी मौजूद बताये गये हैं.
देवेंद्र फडणवीस के साथ हुई आला दर्जे की इस मीटिंग का मकसद साफ है. मोहन भागवत अगर बीजेपी के लिए सर्वेसर्वा हैं तो शिवसेना के लिए भी संघ प्रमुख को नजरअंदाज करना मुश्किल हो सकता है. वैसे भी संघ प्रमुख भागवत और और गडकरी के उद्धव ठाकरे से मधुर संबंधों को तो सभी जानते ही हैं.
समझा जाता है कि देवेंद्र फडणवीस ने संघ प्रमुख से अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उद्धव ठाकरे को मनाने की गुजारिश की है.
हर कदम पर बारीक नजर...
न्यूज एजेंसी IANS ने इस बीच सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि संघ ने फडणवीस को शिवसेना के सरकार बनाने के प्रयासों से दूरी बनाये रखने की बात कही है. साथ ही संघ की सलाह है कि वो विपक्ष में रह कर जनता की सेवा में जुट जायें.
The Rashtriya Swayamsevak Sangh (#RSS) is understood to have advised Chief Minister #DevendraFadnavis to distance himself from the government formation efforts by #ShivSena and prepare to serve the people from the Opposition, according to sources.
Photo: IANS pic.twitter.com/lfuIFytq3Z
— IANS Tweets (@ians_india) November 6, 2019
शिवसेना नेता किशोर तिवारी ने मोहन भागवत को चिट्ठी लिख कर दखल देने के साथ ही नितिन गडकरी को बातचीत की जिम्मेदारी सौंपने की दरख्वास्त की है.
किशोर तिवारी की नजर में दोनों दलों के बीच बातचीत रास्ते से भटक गयी है और इसके लिए वो बीजेपी की हेकड़ी, खासतौर पर अमित शाह का रवैया बता रहे हैं. अभी तक संघ की ओर किशोर तिवारी के पत्र पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है.
वैसे संजय राउत के आक्रामक रूख के बीच किशोर तिवारी काफी नरम नजर आ रहे हैं, कह तो यहां तक रहे हैं कि, ‘अगर भाजपा प्यार से बोलेगी तो मुख्यमंत्री के पद के लिए भी मान जाएंगे.’ ये भी कुछ कुछ वैसा ही है जैसे संजय राउत कहते हैं कि आखिर तक गठबंधन धर्म निभाएंगे.
गडकरी के इर्द-गिर्द घूमती महाराष्ट्र की राजनीति!
महाराष्ट्र की राजनीति में कम से कम दो नेता एक ही बात बार बार कह रहे हैं - शरद पवार और संजय राउत.
शरद पवार की ताजातरीन प्रेस कांफ्रेंस से पहले एक बार फिर संजय राउत ने मीडिया से कहा, 'विधानसभा चुनाव से पहले जिस प्रस्ताव पर हम लोग सहमत हुए थे, शिवसेना उसी पर चर्चा करेगी. अब कोई नया प्रस्ताव मंजूर नहीं होगा.'
बतौर शिवसेना नेता किशोर तिवारी ने संघ प्रमुख को चिट्ठी जरूर लिखी है, लेकिन समझने वाली बात यही है कि वो विधानसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी छोड़ कर शिवसेना में शामिल हुए थे.
किशोर तिवारी का मानना है कि अगर नितिन गडकरी को ये मामला सौंप दिया जाये तो वो दो घंटे में सुलझा देंगे. किशोर तिवारी ने एक बात और भी कही है पूरे मामले में संघ की चुप्पी से महाराष्ट्र के लोग नाराज हैं.
अब सवाल ये है कि बीजेपी से आये शिवसेना की ओर से नितिन गडकरी को सरपंच बनाने की मांग क्यों उठी है?
मातोश्री में ठाकरे परिवार के बीच नितिन गडकरी
एक, नितिन गडकरी की मातोश्री तक सीधी पहुंच है. दो, नितिन गडकरी की शरद पवार के साथ दोस्ती जगजाहिर है - और तीन, नितिन गडकरी संघ प्रमुख मोहन भागवत के करीबी और भरोसेमंद दोनों हैं.
ध्यान देने वाली बात ये है कि नितिन गडकरी अभी तक महाराष्ट्र में दो हफ्ते से चल रहे इस राजनीतिक उठापटक के सीन से पूरी तरह ओझल रहे हैं. वैसे किशोर तिवारी तो कह रहे हैं कि वो बीजेपी में हाशिये पर चले गये हैं. याद कीजिए, आम चुनाव से पहले रह रह होने वाली चर्चाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में NDA को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में नितिन गडकरी को PM की कुर्सी का दावेदार माना जाने लगा था.
फिर भी सवाल वहीं का वहीं रह जाता है कि क्या नितिन गडकरी महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर बीजेपी और शिवसेना में हो रहा झगड़ा सुलझा पाएंगे? वो भी तब जब दोनों पक्ष अपनी अपनी जिद पर अड़े हुए हों. मुमकिन है एक बार वो कुछ हद तक उद्धव ठाकरे को थोड़ा नरम रूख अख्तियार करने के लिए राजी भी कर लें - तो क्या अमित शाह भी उनकी बात मानेंगे? सीधे तो नहीं, हां, अगर संघ का कोई ठोस दबाव हो तो बात अलग है.
अहमद पटेल क्यों मिले गडकरी से?
एक और वाकया सामने आया है - अहमद पटेल ने भी नितिन गडकरी से मुलाकात की है. मजे की बात ये है कि अहमद पटेल भी किसानों के ही मुद्दे पर मिले हैं. अहमद पटेल मुलाकात के राजनीतिक होने से भले इंकार करें लेकिन ये भेंट तभी हुई है जब संजय राउत भी शरद पवार से दोबारा मिले हैं. पिछली बार तो वो दिवाली की बधाई देने गये थे. अब फिर कोई ऐसा मौका तो रहा नहीं, हो सकता है वो एक बार किसानों के मामले में कुछ विचार विमर्थ करने चले गये हैं - बताने के लिए ही सही.
अब तक देखा जाये तो आदित्य ठाकरे भी महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से किसानों के मामले में ही मिले थे. कांग्रेस-एनसीपी के नेता भी राज्यपाल से किसानों के नाम पर ही मिलने गये थे.
मुलाकात को लेकर सवाल तो उठेंगे ही, इसलिए अहमद पटेल जवाब तो पहले से ही सोच लिये होंगे. ऐसे मौकों को एक रटा-रटाया जवाब सुनने को मिलता है जो यही इशारा करता है कि बात तो कुछ और ही है. अहमद पटेल सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव रहे हैं. सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने की स्थिति में भले ही उनकी भी भूमिका कोई अंतरिम जैसी समझी जाने लगी हो, लेकिन इससे कामकाज पर फर्क कहां पड़ता है.
अहमद पटेल ऐसे वक्त गडकरी से मिले हैं जब उन्हें सरपंच बनाने की पेशकश हो रही है - जब शरद पवार तमाम मुलाकातों के बावजूद जनादेश के नाम पर विपक्ष में ही बैठे रहना चाहते हैं. सोनिया गांधी और शरद पवार के बीच भी संपर्क बना ही हुई है - और महाराष्ट्र में बीच बचाव के लिए मध्यस्थ की भूमिका में नितिन गडकरी की ओर देखा जा रहा है.
सवाल ये है कि नितिन गडकरी भला अहमद पटेल के लिए किसानों के मामले में कितने मददगार हो सकते हैं? रहस्य तो बना ही रहेगा जब तक कोई ठोस बात सामने नहीं आती. वैसे किसानों का मुद्दा तो राहुल गांधी का फेवरेट शगल रहा है - और 2020 में भी जब वो देशव्यापी यात्रा पर निकल रहे हैं खाट सभा जैसा कुछ न कुछ तो होगा ही.
शरद पवार ने एक बार फिर प्रेस कांफ्रेंस कर कह दिया है कि एनसीपी जनादेश के साथ ही कायम रहेगी - विपक्ष में बैठेगी.
तो शरद पवार भी विपक्ष में बैठेंगे और खबरों की मानें बीजेपी को लेकर भी संघ की करीब करीब ऐसी ही राय बन रही है. तो क्या कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों की मदद से शिवसेना सरकार बनाएगी - और एनसीपी 2014 की तरह इस बार आदित्य ठाकरे के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाएगी?
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