सांप भी मर गया और नीतीश ने लाठी भी बचा ली
कुछ सवाल खास होते हैं. जैसे खास मौकों पर लोगों को खास शख्स का इंतजार रहता है, उसी तरह खास सवालों की भी प्रतिक्षा रहती है.
-
Total Shares
कुछ सवाल अक्सर पूछे जाते हैं. मान कर चला जाता है कि वैसे सवाल पूछे ही जाएंगे. मौजूदा दौर में एक ट्रेंड ये भी है कि FAQ में ऐसे सारे सवालों के जवाब दे दिए जाएं. कोई सवाल पूछने के लिए सोचे, उससे पहले ही जवाब हाजिर. जहां हाजिर-जवाब भी पीछे छूट जाए.
लेकिन कुछ सवाल खास होते हैं. जैसे खास मौकों पर लोगों को खास शख्स का इंतजार रहता है, उसी तरह खास सवालों की भी प्रतिक्षा रहती है.
नीतीश कुमार को भी ऐसे खास सवाल का इंतजार जरूर रहा होगा. बस मौका और मंच माकूल नहीं मिल सका था.
नीतीश का निशाना
नीतीश कुमार का ट्विटर दरबार भी लगता है. जनता दरबार अपनी जगह कायम है. ट्विटर पर नीतीश कुमार लोगों के सवालों का मंगलवार और शनिवार को जवाब देते हैं. इसके लिए #AskNitish नाम से एक हैशटैग बना हुआ है. वहां कोई भी कहीं से भी अपने सवाल पूछ सकता है. कहीं कोई भौगोलिक बाध्यता नहीं होती.
ज्यादातर सवालों के जवाब तो नीतीश सीधे सीधे दे देते हैं, लेकिन कभी कभी ऐसे सवाल भी आ जाते हैं जब उन्हें डिप्लोमैटिक होना पड़ता है.
तो क्या था वो खास सवाल जिसका अरसे से इंतजार था? वो सवाल था, "अगर आप लालू जी के साथ जीत गए और अच्छे नंबर (सीटें) मिले, तो आप गठबंधन सरकार के साथ अच्छा विकास कैसे दे पाएंगे?"
. @SunilVChandak Bihar’s development is my sole agenda.जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग| चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग ||
— Nitish Kumar (@NitishKumar) July 21, 2015
इसे हाजिर-जवाब कहें या जवाब हाजिर है, समझने की बात है. जनता परिवार को लेकर अटकलों के दौर में भी नीतीश ने कबीर का एक दोहा सुनाया था, "धीरे धीरे मना रे..." वजह जो भी हो, हाल फिलहाल तो जनता परिवार का मामला लटक ही गया.
लालू ने मांगी सफाई
ट्विटर पर नीतीश कुमार के जवाब के बाद लालू प्रसाद के सामने सवाल खड़ा होना भी लाजिमी था. जब पूछा गया तो लालू ने कहा भी कि नीतीश को ट्वीट पर सफाई देनी चाहिए. साथ ही लालू ने इशारा भी कर दिया, "हो सकता है उन्होंने ये बात बीजेपी के संदर्भ में कही हो." फिर, लालू सवाल पूछने वाले पर ही बरस पड़े, "जिसने भी सवाल किया, वो दुष्ट प्रवृत्ति का आदमी रहा होगा."
जहर का जवाब
एक ने किया दूजे ने मानी, नानक कहे दोनों ज्ञानी. उधर लालू ने बीजेपी की ओर इशारा किया और नीतीश ने तपाक से लपक लिया. अपनी सफाई बिलकुल उसी अंदाज में दी. निशाना बीजेपी की ओर री-डायरेक्ट हो गया. नीतीश बोले, "बीजेपी जब अपना सांप्रदायिक एजेंडा बिहार में नहीं चला सकी तो लोगों को चिंता नहीं करनी चाहिए. सवाल जो भी रहा हो, मैं उसकी पृष्ठभूमि बता देना चाहता था."
लगे हाथ नीतीश ने लालू को काउंटर इशारा भी कर दिया, "लालू जी ने कहा कि सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने के लिए हम जहर भी पीने को तैयार हैं. तो इसका मतलब यह थोड़े ना है कि वो हमें जहर कह रहे थे. ये तो बात कहने का तरीका है."
"तो रिश्ता पक्का समझें मौसी?". फिल्म शोले में मौसी जय और वीरू की दोस्ती का लोहा मानने को मजबूर हो जाती है, "लाख बुराई है... लेकिन मुंह से एक शब्द नहीं निकल रहा..."
मानना पड़ेगा. गजब का गठबंधन है. कोई जहर पीता है. कहीं भुजंग लिपटे रहते हैं. जहर कौन है, भुजंग कौन है? ये बात भी सभी समझते हैं. बोलने वाले भी, सुनने वाले भी.
शायद सत्ता का मकसद ही इतना मजबूत होता है. ये नए जमाने की दोस्ती है. यहां किसी भी फासले से कोई फर्क नहीं पड़ता. यहां जो चंदन है वही पानी है, जो पानी है वही चंदन भी है. यहां सब चंदन और सब पानी हैं. शायद, कबीर भी कन्फ्यूज हो जाएं.
आपकी राय