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Updated: 06 सितम्बर, 2022 01:05 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विपक्षी एकता को लेकर चलाई जा रही मुहिम पर बात होगी. लेकिन, उससे पहले एक छोटी सी कहानी याद आ रही है. जिसके बिना नीतीश कुमार की मुहिम को समझना आसान नहीं होगा. तो, पहले वो कहानी जान लेते हैं.

एक जंगल में राजा के पद के लिए चुनाव हुए. और, जानवरों ने शेर की जगह बंदर को वोट देकर राजा बना दिया. बंदर के पक्ष में वोट करने वालों का दावा था कि मनुष्य की तरह दिखने वाला बंदर इंसान की तरह ही दिमागदार होगा. सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था कि कुछ दिनों बाद अचानक शेर ने हिरण के कुछ बच्चों को उठाकर अपनी गुफा में रख लिया. लिखी सी बात है कि शेर की शिकायत राजा बने बंदर के पास पहुंचनी ही थी. तो, बंदर के पास शिकायत पहुंची. जिसे सुनते ही बंदर ने शेर की गुफा की ओर प्रस्थान कर दिया. गुफा के सामने पहुंच बंदर एक पेड़ से दूसरे पेड़, दूसरे से तीसरे, तीसरे से चौथे पेड़ पर कूदने लगा. काफी देर तक ये प्रक्रिया चलती रही. कुछ देर बाद जानवरों ने बंदर से कहा कि 'महाराज, शेर हिरण के बच्चों को ले गया है. कुछ कीजिए.' तिस पर बंदर ने गुस्से भरे स्वर में कहा कि 'हमारी भागदौड़ में कोई कमी हो, तो बताओ.'

तो, अब लौटते हैं नीतीश कुमार पर. बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन तोड़कर आरजेडी के साथ आए जेडीयू नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब 2024 के लिए हुंकार भरने लगे हैं. बिहार में पोस्टर से लेकर नीतीश कुमार की आगामी दिल्ली यात्रा की चर्चाएं खूब सुर्खियां बटोर रही हैं. कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार अपनी दिल्ली यात्रा पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से भी मुलाकात करेंगे. संभावना यही जताई जा रही है कि नीतीश कुमार कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के विपक्षी दलों को एक साथ लाने की अपनी मुहिम को धार देने की कोशिश कर रहे हैं.

हालांकि, नीतीश कुमार की इस मुहिम में थोड़ी मुश्किल नजर आती है. कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर फिर से स्थापित होने के लिए राहुल गांधी तैयार बैठे हैं. और, 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे. वहीं, आम आदमी पार्टी ने पहले ही अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी घोषित कर दिया है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि नीतीश कुमार की बात न अरविंद केजरीवाल मानेंगे और न राहुल गांधी, तो ये 'भागदौड़' क्यों?

Nitish Kumar Delhi Visit JDU Oppositionनीतीश कुमार की सारी भागदौड़ सिर्फ बिहार में जेडीयू की सिकुड़ती हालत को ठीक करने के लिए है.

पीएम मैटेरियल हैं नीतीश कुमार, लेकिन साथ देने वाली सिर्फ आरजेडी

नीतीश कुमार तो लंबे समय से प्रधानमंत्री बनने का अरमान पाले हुए बैठे हैं. 2013 में जब नीतीश कुमार ने भाजपा नीत एनडीए गठबंधन छोड़ा था. उसकी वजह यही थी कि वह खुद को पीएम उम्मीदवार के तौर पर देख रहे थे. कुछ महीने पहले ही जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह यादव ने भी कहा था कि नीतीश कुमार में प्रधानमंत्री बनने के सारे गुण हैं. लेकिन, वो इस रेस से बाहर हैं. हालांकि, ये तब की बात है, जब भाजपा के साथ जेडीयू की गठबंधन सरकार बिहार में थी. लेकिन, अब स्थितियां बदल चुकी हैं. और, बीते दिनों एक कार्यक्रम के दौरान बिहार सरकार के मंत्री श्रवण कुमार ने ऐलान किया था कि नालंदा का बेटा दिल्ली के लाल किला पर झंडा फहराएगा.

वैसे, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव भी नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर मुहर लगा चुके हैं. तेजस्वी यादव ने कहा था कि अगर नरेंद्र मोदी पीएम बन सकते हैं, तो नीतीश कुमार भी बन सकते हैं. वहीं, तेजप्रताप यादव ने कहा था कि नीतीश कुमार हमारे चाचा हैं. उन्हें लालकिले पर झंडा फहराने के मुकाम तक पहुंचाया जाएगा. ये महागठबंधन सरकार है, इतना तो करेंगे ही. हालांकि, अभी भी जेडीयू की ओर से नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर कोई आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है.

लेकिन, असल समस्या ये है कि नीतीश कुमार के समर्थन में आरजेडी के अलावा और कोई नजर भी नहीं आता है. और, वो भी कब तक साथ देगी, ये कहना भी मुश्किल है. दरअसल, बिहार में भले ही आरजेडी ने कम सीटों के बावजूद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बना दिया हो. लेकिन, 2024 के लोकसभा चुनाव में 40 सीटों पर बंटवारा इतना आसान नहीं होगा. वो भी ऐसी स्थिति में जब नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां भी शामिल हों. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भले ही नीतीश कुमार पीएम मैटेरियल हों. लेकिन, उनका साथ सिर्फ आरजेडी ही देगी.

नीतीश को पसंद नहीं आया केसीआर का फॉर्मूला

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव यानी केसीआर भी लंबे समय से तीसरा मोर्चा बनाने की जुगत लगा रहे हैं. इसी वजह से बीते दिनों के नीतीश कुमार के बुलावे पर के चंद्रशेखर राव पटना पहुंचे थे. लेकिन, यहां मुलाकात के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में विपक्ष से जुड़े सवालों पर के चंद्रशेखर राव के जवाब देने के दौरान नीतीश कुमार असहज नजर आए. और, उठकर जाने लगे. हालांकि, केसीआर ने नीतीश का हाथ पकड़कर बैठने का आग्रह किया. और, नीतीश कुमार बैठ गए. लेकिन, जब केसीआर लगातार विपक्षी एकता से जुड़े सवाल लेने लगे. तो, नीतीश कुमार अपनी जगह से उठकर चलने लगे. और, फिर नहीं केसीआर के आग्रह पर भी नहीं बैठे.

दरअसल, के चंद्रशेखर राव गैर-कांग्रेसी और गैर-बीजेपी पार्टियों वाला तीसरा मोर्चा बनाना चाहते हैं. लेकिन, नीतीश कुमार इसके लिए तैयार नहीं दिखे. और, जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि कांग्रेसी और लेफ्ट पार्टियों के बगैर बीजेपी को हराने का उद्देश्य अधूरा रह सकता है. हालांकि, जेडीयू नेता ने ये भी कहा है कि वो केसीआर को समझाने की कोशिश करेंगे. जिससे कांग्रेस के साथ विपक्षी मोर्चा तैयार किया जा सके. वैसे, यही वजह है कि अब नीतीश कुमार दिल्ली की यात्रा पर हैं. और, अपने स्तर से विपक्षी एकता का एक नया मंच खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं.

सारी 'भागदौड़' सिर्फ बिहार बचाने के लिए

माना जा रहा है कि जेडीयू नेता नीतीश कुमार 2024 में पीएम नरेंद्र मोदी को टक्कर देने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे. और, सियासी गलियारों में इस बात की भी चर्चा ने जोर पकड़ा हुआ है कि नीतीश कुमार 2024 में भाजपा को हराने के बाद बैठकर पीएम उम्मीदवार तय किए जाने की लीक पर चल रहे हैं. हालांकि, जेडीयू के अन्य नेता अभी से ही नीतीश को 'राष्ट्रीय' भूमिका में देख रहे हैं. वैसे, ये सारी कवायद बिहार में जेडीयू के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए की जा रही है. क्योंकि, बिहार में जेडीयू लगातार सिकुड़ती जा रही है. 2020 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए, तो भाजपा-जेडीयू ने गठबंधन किया था. इस चुनाव में जेडीयू ने 115 और भाजपा ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन, ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद जेडीयू सिर्फ 43 सीटों पर सिमट गई थी. जबकि, भाजपा ने 74 सीटों पर जीत हासिल की थी.

दरअसल, नीतीश कुमार 2024 से पहले की ये भागदौड़ बिहार में लगातार डूब रही जेडीयू को बचाने के लिए कर रहे हैं. दरअसल, 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ा सियासी दल बनकर उभरी थी. तो, नीतीश कुमार ने पाला बदल कर आरजेडी के साथ जाकर जेडीयू को उन ओबीसी मतदाताओं के बीच मजबूत करने का दांव खेला है. जो आरजेडी का वोट बैंक हैं. इतना ही नहीं, भाजपा से दूर होकर जेडीयू उन मुस्लिम मतदाताओं को भी अपने पक्ष में लामबंद करने की कोशिश करेंगी. जो भाजपा की वजह से जेडीयू से छिटक गए थे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो 2024 में भले ही नीतीश कुमार विपक्षी एकता बनाने में कामयाब न हो सकें. लेकिन, आरजेडी के समर्थन के साथ जेडीयू का वोट बैंक बढ़ाने की उनकी कवायद रंग ला सकती है. हालांकि, इसे देखने के लिए अभी लंबा इंतजार करना होगा. तो, 2024 से पहले तक नीतीश कुमार की भागदौड़ में कोई कमी नहीं रहेगी. भले ही कोई नतीजा न निकले.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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