NMC बिल में कई बातें हैं जोे डॉक्टर के गले कभी नहीं उतरेंगी
IMA के मुताबिक CHP का मतलब मेडिकल बैकग्राउंड के बिना ही व्यक्ति माडर्न मेडिसिन की प्रैक्टिस के लिए पात्र हो सकता है और स्वतंत्र तौर पर प्रैक्टिस कर सकता है. ये नीम हकीमों को वैधानिकता देने जैसा है. इस प्रावधान समेत बिल के विवादित प्रावधानों को देश की मेडिकल बिरादरी स्वीकार नहीं कर सकती.
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राष्ट्रीय मेडिकल आयोग (NMC) बिल, 2019 के संसद के दोनों सदनों में पास बेशक हो गया लेकिन इसके कुछ प्रावधानों को लेकर देशभर के डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों में भारी विरोध है. अपनी नाराजगी जताने के लिए दिल्ली समेत कई जगहों पर डॉक्टरों ने काम ठप करने का भी रास्ता अपनाया. इस वजह से मरीजों और उनके तीमारदारों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
देश भर में डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों ने पहले ही साफ कर दिया था कि ये बिल अगर संसद में पास भी हो गया तो भी इसका पुरज़ोर विरोध किया जाएगा. दरअसल, बिल के कई ऐसे प्रावधान है जिन पर मेडिकल बिरादरी को सख्त ऐतराज़ है. मसलन
कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर(CHP)
देश भर के डॉक्टरों की नुमाइंदगी करने वाली इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) का कहना है कि बिल के सेक्शन 32 को किसी सूरत में स्वीकार नहीं किया जाएगा. इसके जरिए सरकार मेडिकल बैकग्राउंड से बाहर के साढे तीन लाख लोगों को मॉडर्न मेडिसिन (एलोपैथी) की प्रैक्टिस का लाइसेंस देना चाहती है. सेक्शन 32 कहता है कि आयोग मिडिल लेवल पर कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर (CHP) के तौर पर ऐसे लोगों को मेडिसन प्रैक्टिस के लिए सीमित लाइसेंस दे सकता है जो मॉडर्न साइंटिफिक मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े हैं. बिल के मुताबिक CHP सिर्फ प्राथमिक और प्रीवेंटिव हेल्थकेयर में ही स्वतंत्र तौर पर दवाई मरीज को सुझा (प्रेसक्राइब) सकते है. लेकिन इनसे इतर केसों में वो सिर्फ मेडिकल प्रैक्टिशनर्स जो सेक्शन 32 की उपधारा (1) के तहत रजिस्टर्ड है उन्हीं की निगरानी में दवाई सुझा सकते हैं.
NMC बिल के विरोध में डॉक्टर हड़ताल पर हैं
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने आधिकारिक बयान जारी कर इस प्रावधान पर कड़ी आपत्ति जताई है. बयान मे कहा गया कि बिल में CHP की अस्पष्ट परिभाषा दी गई है. इसके मुताबिक किसी भी शख्स को जो माडर्न मेडिसिन से जुड़ा है, एनएमसी में रजिस्टर्ड किया जा सकता है और मॉडर्न मेडिसिन की प्रैक्टिस के लिए लाइसेंस दिया जा सकता है.
आईएमए के मुताबिक इसका मतलब है कि मेडिकल बैकग्राउंड के बिना ही व्यक्ति माडर्न मेडिसिन की प्रैक्टिस के लिए पात्र हो सकता है और स्वतंत्र तौर पर प्रैक्टिस कर सकता है. ये नीम हकीमों (मुन्ना भाइयों) को वैधानिकता देने जैसा है. इस प्रावधान समेत बिल के विवादित प्रावधानों को देश की मेडिकल बिरादरी स्वीकार नहीं कर सकती.
नेशनल एग्ज़िट टेस्ट (NEXT)
देश के मेडिकल छात्रों को बिल के सेक्शन 15(1) में नेशनल एग्जिट टेस्ट (NEXT) का जो प्रावधान है उस पर सख्त आपत्ति है. इसमें MBBS के फाइनल इयर में NEXT कराया जाएगा. ये मेडिसिन प्रैक्टिस शुरू करने, पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कोर्सेज में दाखिला लेने और राज्य स्तरीय रजिस्टर या राष्ट्रीय स्तर रजिस्टर में खुद को एनरोल करने के लिए जरूरी होगा. विदेश से MBBS की पढ़ाई करके आने वालों के लिए भी ये स्क्रीनिंग टेस्ट के तौर पर काम करेगा.
मेडिकल छात्र बिरादरी ने NEXT को मौजूदा स्वरूप में पूरी तरह ठुकराते हुए कहा है कि पोस्ट ग्रेजुएट सीट हासिल करने के लिए मेरिट ही आधार होना चाहिए और मौजूदा NEET-PG की व्यवस्था को ही जारी रखना चाहिए. एम्स जैसे अग्रणी मेडिकल कॉलेज के साथ सभी रेजिडेंट्स डॉक्टर्स एसोसिएशन ने साझा बयान जारी कर एनएमसी बिल के मौजूदा स्वरूप का विरोध किया है. उनका कहना है कि ये बिल दिन रात काम करने वाले मेडिकल प्रोफेशनल्स का मखौल उड़ाने जैसा है.
आईएमए के मुताबिक ये नीम हकीमों को वैधानिकता देने जैसा है
प्राइवेट कॉलेजों की फीस का रेग्युलेशन
बिल में कहा गया एनएमसी प्राइवेट मेडिकल कालेजों और डीम्ड यूनिवर्सिटीज में 50% सीटों पर फीस और अन्य शुल्कों का नियमन (रेग्युलेशन) करेगा. यानी प्राइवेट मेडिकल कालेजों और डीम्ड यूनिवर्सिटीज (जो इस एक्ट के प्रावधानों से निर्देशित होंगे) में 50 फीसदी सीटों पर फीस और अन्य शुल्कों के निर्धारण के लिए गाइडलाइन तय करेगा. बिल के आलोचकों का कहना है कि ये साफ नहीं है कि बाकी 50 फीसदी सीटों का क्या होगा. क्या बिना निगरानी के इन सीटों पर निजी मेडिकल कॉलेज मनमानी फीस नहीं वसूल करेंगे.
मेडिकल बिरादरी का कहना है कि बिना सरकारी सहायता प्राप्त मेडिकल इंस्टीट्यूट्स में फीस पर कैपिंग होनी चाहिए. इसलिए अभी जो फीस रेग्युलेटिंग अथारिटी की ओर से रेग्युलेशन का सिस्टम है वही रहना चाहिए. इसके लिए बिल के सेक्शन 10(1) (i) को संशोधित करना चाहिए.
बता दें कि एनएमसी बिल का प्रस्ताव जब 2017 में आया था तो डाक्टरों और मेडिकल एसोसिएशन्स ने बिल के कई प्रावधानों के खिलाफ आवाज उठाई थी. मूल प्रस्ताव में कई संशोधनों के बाद मौजूदा बिल सामने आया लेकिन मेडिकल बिरादरी की आशंकाएं इससे दूर नहीं हो सकीं.
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