प्रदूषण का तो पता नहीं जी, ट्रैफिक चालू है...
ऑड-ईवन योजना में महिलाओं और दोपहिया वाहनों को छूट क्यों दी गई? इस सवाल के जवाब में दिल्ली सरकार ने कोर्ट को बताया है कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि वो महिलाओं की सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध है.
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प्रदूषण कम करने को लेकर दिल्ली सरकार का ताजा फॉर्मूला अदालतों में भी ऑड-ईवन साबित हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने जहां रईसों के लिए खास इंतजाम करने को कहा है, वहीं दिल्ली हाई कोर्ट की सलाह है- अगर एक्सपेरिमेंट पूरा हो गया हो तो फिलहाल बस करो.
एक्सपेरिमेंट कब तक...
दिल्ली के ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर गोपाल राय स्कूल वालों पर धोखा देने से लेकर कुछ लोगों पर दिल्ली में ऑड-ईवन फॉर्मूला नाकाम करने की कोशिश का आरोप लगा चुके हैं. बावजूद इसके दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का मानना है कि इस मामले में उन्हें उम्मीद से भी बेहतर नतीजे देखने को मिले हैं.
ये योजना केजरीवाल सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट की उस टिप्पणी के बाद लागू की जिसमें अदालत ने राजधानी को गैस चेंबर जैसा करार दिया था. फिर भी सरकार को कोर्ट के सवालों के जवाब देने पड़ रहे हैं.
ऑड-ईवन योजना में महिलाओं और दोपहिया वाहनों को छूट क्यों दी गई? इस सवाल के जवाब में दिल्ली सरकार ने कोर्ट को बताया है कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि वो महिलाओं की सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध है. दोपहिया वाहनों पर ये योजना लागू करने को लेकर सरकार का कहना है कि इससे ये होगा कि अपर्याप्त सार्वजनिक परिवहन के चलते व्यवस्था ठप हो जाएगी.
फिर तो सवाल बनता है कि अगर पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं तो लोगों को मुश्किल में डालने की इतनी भी जल्दी क्या थी?
कोर्ट का भी यही सवाल रहा. क्या यह पायलट परियोजना 15 दिनों की बजाए सिर्फ एक हफ्ता तक चलाई जा सकती है?
हाई कोर्ट ने पूछा भी, "क्या ये छह दिन आपके लिए पर्याप्त नहीं हैं? हमने सरकार को यह योजना एक सप्ताह चलाने की अनुमति दी थी, जिस दौरान उन्हें दिल्ली में प्रदूषण के स्तर से जुड़े आंकड़े एकत्र करने होंगे."
कोर्ट ने कहा, "इन छह दिनों में आप प्रदूषण के स्तर का आंकड़ा इकट्ठा करें, हम समझते हैं कि यह आपके लिए पर्याप्त है. आपको काफी संख्या में लोगों को हो रही असुविधा के बारे में सोचना चाहिए. इसमें बुनियादी कठिनाई है."
बुनियादी कठिनाई की यही बात सुप्रीम कोर्ट को भी समझ में आई है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कठिनाई दूर करने का उपाय खोजने को कहा है.
इतना हक तो बनता है
जब मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में पहुंचा तो अदालत को उन लोगों का ध्यान आया जिनके घरों में लग्जरी गाड़ियां हैं और ऑड-ईवन फॉर्मूले के चलते उन्हें गाड़ियां घर पर छोड़ कर निकलना पड़ रहा है. कोर्ट ने दिल्ली मेट्रो को ऐसे लोगों के लिए जरूरी इंतजाम करने को कहा है.
एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम की बेंच ने कहा, "मेट्रो अथॉरिटी ऐसे लोगों के लिए स्पेशल कोच और सीटों के बारे में सोच सकती है ताकि उन्हें बैठने की अच्छी जगह मिल सके. ये लोग तो ज्यादा पैसा दे सकते हैं. अगर वे कारें घर पर छोड़ रहे हैं तो उनके लिए कुछ सुविधा तो होनी ही चाहिए."
दिल्ली सरकार का दावा है कि ऑड-ईवन स्कीम लागू करने के बाद दिल्ली में प्रदूषण का स्तर घटा है. वैसे सरकार के इस दावे की अभी कोर्ट में स्क्रूटिनी होनी बाकी है. तब तक कोर्ट ने सही सवाल किया है कि आम आदमी के साथ ये एक्सपेरिमेंट आखिर कब तक चलेगा? एक्सपेरिमेंट के लिए वैसे भी एक सप्ताह का समय कम तो नहीं है.
हाल के दिनों में ऑड-ईवन स्कीम के समर्थक और विरोधी दोनों तरह के कैब ड्राइवरों से भेंट होती रही है. सफर भले ही लंबी न हो पर पूरे वक्त वो इसे अपने अपने तर्क से सही या गलत ठहराते रहे हैं. दफ्तर आते वक्त कैब ड्राइवर जब ऑड-ईवन फॉर्मूले पर ताजा राय जाननी चाही तो जवाब मिला, "पल्यूशन का तो पता नहीं जी, पर ट्रैफिक तो हर तरफ चालू है..."
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