बहुत हुआ एक्सपेरिमेंट, अब आजमाए नुस्खे ही अपनाएंगे राहुल गांधी
दबी जबान में ही सही, लेकिन कुछ नेता अब भी राहुल जयराम रमेश और दिग्विजय सिंह की राय से इत्तेफाक नहीं रखते.
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बीते एक दशक में ऐसे कई मौके आये हैं जब राहुल गांधी अपनी राजनीतिक मंशा साफ करते रहे हैं. राहुल बार बार बता चुके हैं कि वो राजनीति सामाजिक परिवर्तन के लिए करते हैं - न कि चुनाव लड़ने या फिर प्रधानमंत्री बनने के लिए.
इसी बीच आंदोलन करते करते अरविंद केजरीवाल राजनेता और मुख्यमंत्री बन गये - और अब तेजी से पांव पसारने की कोशिश में हैं. शायद यही वजह है कि राहुल गांधी भी अब आजमाये हुए नुस्खों को अपनाने का फैसला किया है.
ग्रुप - 10
राजनीति के जरिये सामाजिक परिवर्तन का आइडिया तो अच्छा है लेकिन उसके लिए कांग्रेस जैसी पार्टी को दांव पर लगाना निश्चित रूप से समझदारी की बात नहीं होगी. राहुल गांधी के संघर्ष और एक्सपेरिमेंट के दस साल से ऊपर हो चुके हैं - और इस दौरान कांग्रेस पार्टी एक बार फिर अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच गयी है. वैसे ये कोई पहली बार नहीं हुआ है. हर दौर में ऐसा होता रहा है. चाहे वो इंदिरा गांधी का ही दौर क्यों न रहा हो.
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खबर है कि राहुल गांधी अब उसी रास्ते को अपनाने जा रहे हैं जिसकी नींव उनकी मां सोनिया गांधी ने रखी थी - राष्ट्रीय सलाहकार परिषद. सलाहकार परिषद पर सुपर कैबिनेट होने जैसे आरोप भी लगते रहे और कहा जाता रहा कि उसके फैसले पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आंख मूंद कर अमल करते रहे.
आजमाये नुस्खे ज्यादा कारगर होते हैं... |
एनडीटीवी के मुताबिक, राहुल के राज में 10 लोगों का एक ग्रुप होगा जो नीतियों और कार्यक्रमों को सामूहिक नेतृत्व प्रदान करेगा. इसमें प्रमुख रूप से पी. चिदंबरम और गुलाम नबी आजाद जैसे नेता होंगे. इस कार्ययोजना पर राज्य सभा चुनावों के बाद से ही अमल होना शुरू हो जाएगा.
बर्थडे गिफ्ट
राहुल गांधी के लिए ये महीना बेहद खास है. 19 जून को उनका जन्मदिन है - और उनके समर्थक चाहते हैं कि उसी दिन उन्हें कांग्रेस की कमान सौंप कर अध्यक्ष पद गिफ्ट किया जाए.
इसके लिए राहुल के समर्थक अपने तरीके से मुहिम भी चला रहे हैं. राहुल गांधी के अध्यक्ष की भूमिका में होने वाला जयराम रमेश का बयान और दिग्विजय सिंह का उनकी नेतृत्व क्षमता पर मुहर लगाना भी इसी मुहिम का हिस्सा माना जा सकता है.
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दबी जबान में ही सही, लेकिन कुछ नेता अब भी राहुल जयराम रमेश और दिग्विजय सिंह की राय से इत्तेफाक नहीं रखते.
75 साल में युवा?
लेकिन शीला दीक्षित जैसे कुछ नेता अब भी उसी राय पर कायम हैं कि सोनिया गांधी को ही जब तक संभव हो कमान अपने हाथ में रखनी चाहिए. द हिंदू अखबार को दिये एक इंटरव्यू में शीला दीक्षित कहती हैं, "वो अभी यंग हैं, कृपया याद रखें."
जब उन्हें याद दिलायी जाती है कि राहुल की उम्र में ही राजीव गांधी प्रधानमंत्री बन गये थे तो शीला दीक्षित ने कहा, "यंग से मेरा मतलब, अनुभव के मामले में यंग है."
शीला दीक्षित आगे कहती हैं, "आपकी उम्र 75 हो फिर भी आप यंग हो सकते हैं."
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