सांसदों पर होना चाहिए 'नो वर्क नो पे' नियम लागू
नए कानून बनाना, जन-कल्याण से जुड़े मुद्दों पर बहस करना यही तो सांसदों का काम है. जब नियमित आधार पर यह नही हो रहा, बिल बेवजह कई-कई दिनों तक लटके रहते हो तो क्या सांसदों पर सवाल नहीं उठने चाहिए?
-
Total Shares
मानसून सत्र का आधा वक्त बीच चुका है. 21 जूलाई से शुरू हुआ यह सत्र 13 अगस्त को खत्म होना है. लेकिन पूरे सत्र में अब तक केवल हंगामा ही सुर्खियां बटोरने में कामयाब हुआ है. पिछले सत्र में लैंड बिल की वजह से कई हंगामें की भेंट चढ़ गए थे. लेकिन इस बार ललित गेट और व्यापम ने मोर्चा संभाल रखा है. विपक्ष सुषमा स्वराज के इस्तीफे की मांग पर अड़ा है. सवाल है कि जब हर दिन किसी वजह से सांसदों के छुट्टी हो ही जाती है, तो काम क्या होता होगा? हां, रोज के रूटिन के काम जैसे प्रश्नकाल में सांसदों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न आदि के जवाब संसद के रिकार्ड में जाते होंगे. लेकिन इससे आगे क्या. बहस का क्या, बनने वाले नए कानूनों का क्या. फिर क्यों नहीं उनके वेतन काटे जाएं?
हो सकता है कुछ सांसद स्टैंडिंग कमेटी या सेलेक्ट कमेटी की बैठकों में हिस्सा लेते होंगे. वहां विभिन्न बिलों से जुड़े मुद्दों पर बातें होती होंगी. लेकिन उसका नतीजा तो संसद में ही दिखेगा. बिल तो संसद में ही पास होना है, जो चलता नहीं.
नए कानून बनाना, जन-कल्याण से जुड़े मुद्दों पर बहस करना यही तो सांसदों का काम है. जब नियमित आधार पर यह नही हो रहा, बिल बेवजह कई-कई दिनों तक लटके रहते हो तो क्या सांसदों पर सवाल नहीं उठने चाहिए? क्या उन्हें मिलने वाले वेतन में कटौती नहीं होनी चाहिए? इस बारे में पहले भी बहस होती रही है. लेकिन इस बार सरकार की ओर से इसकी चर्चा छेड़ना दिलचस्प है. केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने कहा कि सरकार 'संसद में नो वर्क नो पे' पर काम कर रही है. हालांकि बाद में निर्मला सीतारमन ने साफ किया कि अभी ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है लेकिन सरकार इस मुद्दे पर विचार कर सकती है.
होना चाहिए 'नो वर्क नो पे' सिस्टम लागू
जब भी ऐसी बहस शुरू होती है. एक दलील दी जाने लगती है कि विपक्ष के लिए संसद के कामकाज को रोकना सरकार पर दबाव बनाने का सबसे बड़ा हथियार है. सरकार को कई बार विरोध के सामने झुकना पड़ता है. सरकार पर संसद चलाने की जिम्मेदारी होती है. इसलिए उसे विपक्ष की मांग का सम्मान करना होता है. तो ठीक है ना. विपक्ष कम से कम इसी में सरकार का साथ दे. अगर संसद नहीं चले, तो सत्ता और विपक्ष, दोनों ओर के सांसदों का वेतन कटेगा.
फिर क्या पता, सत्ता पक्ष के सासंद भी अपने शीर्ष नेताओं पर साझा नीति अपनाने का दबाव डालेंगे. यह तो विपक्ष के लिए अच्छी बात है. हम सब अपने काम के हिसाब से वेतन पाते हैं. अगर कंपनी की तय नीति से ज्यादा छुट्टी ली तो वेतन कटता है. फिर यह बात सांसदों पर लागू क्यों नहीं हो सकती?
'नो वर्क नो पे' से होगा फायदा
बहुत साधारण फंडा है. आप संसद को वक्त दीजिए, वेतन मिलेगा. नहीं देंगे, वेतन कटेगा. संसद चलाने में खर्च होने वाले लाखों रुपयों में कुछ तो बचत होगी. सरकार जब ज्यादा अड़ियल रवैया अपनाती है, फिर विरोध जरूरी होता है. लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि आप हर छोटे-बड़े मुद्दों पर विरोध शुरू कर दें. संसद का काम ठप कर दें. पिछली बार लैंड बिल पर जब विपक्ष ने सरकार को घेरा था तो मीडिया सहित देश के अन्य वर्गों ने भी विपक्ष का साथ दिया था. लेकिन अभी जो हो रहा है, ऐसा लगता है कि विपक्ष केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए यह हथकंडा अपना रहा है. कम से कम नो वर्क नो पे लागू होने से यह उम्मीद तो बंधती है कि गंभीर विषय विपक्ष के मुद्दे होंगे और वे गैरजरूरी विषयों पर हंगामा खड़ा करने से बचेंगे.
आपकी राय