हम कश्मीर-कश्मीर करते रहे और पूर्वोत्तर जल उठा...
देशभर में जब आतंकवाद की बात होती है जिक्र कश्मीर और इस्लामी कट्टरपंथ का होता है. लेकिन क्या कोई पूर्वोत्तर राज्य में पनपे ईसाई कट्टरपंथ और आतंकवाद की बात करता है?
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देशभर में जब आतंकवाद की बात होती है जिक्र कश्मीर और इस्लामी कट्टरपंथ का होता है. लेकिन क्या कोई पूर्वोत्तर राज्य में पनपे ईसाई कट्टरपंथ और आतंकवाद की बात करता है? अब बात की जा सकती है. जब हमने दो दिन पहले सेना के 20 जवानों को इसी आतंकवाद की भेंट चढ़ा दिया है. नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN) ने इस कायराना कृत्य की जिम्मेदारी ली है. अचरज ये जानकर हुआ कि इस आतंकी संगठन का नाम गृह मंत्रालय द्वारा तैयार प्रतिबंधित आतंकी संगठनों की सूची में नहीं है.
पूर्वोत्तर में आतंकवाद के खौफनाक परिदृश्य को इसी बात से समझा जा सकता है कि गृह मंत्रालय ने जिन 38 संगठनों को देश के लिए खतरा माना है, उनमें से 14 इसी इलाके में सक्रिय हैं. एक अरसे तक हम असम में खून-खराबे की खबरें सुनते रहे. उल्फा आतंकी सेना और सरकारी अमले को निशाना बनाते रहे. सेना ने इस संगठन के कई प्रमुख आतंकियों को मार गिराया. बरुआ भागकर बांग्लादेश और म्यांमार सीमा के जंगलों से ऑपरेट करता रहा है.
आतंकी ही आतंकी के दुश्मन हैं...
इस इलाके के आतंकी संगठनों के आपसी रिश्ते बेहद पेचीदा हैं. 1980 में NSCN का गठन नागालैंड को भारत से आजाद कराने के लिए हुआ. मणिपुर, नागालैंड और म्यांमार के कुछ इलाकों को मिलाकर एक ईसाई देश बनाने मंशा के साथ खूब खूनखराबा हुआ. भारत सरकार सक्रिय हुई और इस संगठन के कुछ नेताओं को शांतिवार्ता के लिए राजी कर लिया गया. इस वार्ता के कारण NSCN दो धड़े में बंट गया. दोनों एक-दूसरे के खून के प्यासे. लेकिन, हाल ही में उन्होंने वापस सभी आतंकी संगठनों को एकजुट करने के लिए नारा दिया है- 'नागालैंड फॉर क्राइस्ट'.
दोस्ती की कोशिशें फुटबॉल से...
2013 में उल्फा सरगना परेश बरुआ को नागालैंड के एक गांव में गोलकीपिंग करते देखा गया था. यहां उल्फा, नेशनल डेमाक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB), नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN-K) और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऑफ मणिपुर की टीमों के बीच फुटबॉल मैच हुए. खूंखार आतंकियों से भरी ये टीमें अपने फुटबॉल जौहर दिखाने नहीं आई थीं. ये संगठन यह दर्शाना चाहते थे कि भारत सरकार के खिलाफ लड़ाई में वे साथ-साथ हैं. इस सबके बावजूद हर संगठन में कोई न कोई धड़ा ऐसा रहा है, जो भारत सरकार से बातचीत का पक्षधर रहा है.
हाल का हमला क्यों हुआ...
पिछले 15 वर्षों की हिंसा के बाद नागालैंड में हालात तेजी से बदल रहे थे. आतंकी संगठनों में खींचतान और जातीय संघर्ष से ऊब चुका राज्य का युवा वर्ग अब बदलाव चाहता था. 2001 में राज्य की साक्षरता 66 फीसदी थी, जो 2011 में बढ़कर 80 फीसदी हो गई. 2014 के आम चुनाव में 87 फीसदी वोटरों ने हिस्सा लिया. देश में सबसे भारी मतदान यहीं हुआ. लोगों में भारतीय लोकतंत्र के प्रति इतनी आस्था देखकर आतंकियों का बौखलाना लाजमी था. इस बीच भारतीय सेना ने त्रिपुरा में सक्रिय आतंकी संगठनों को बातचीत और सैन्य ऑपरेशन चलाकर पूरी तरह निष्क्रि य कर दिया. पिछले दिनों तो त्रिपुरा से AFSPA भी हटा दिया गया. भारत सरकार और सेना के कारण लौट रही यह शांति आतंकियों को खल रही थी. वे किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की तलाश में थे.
हमला मणिपुर में ही क्यों...
आर्मी के दस्ते पर जिस आतंकी संगठन NSCN-K ने हमले की जिम्मेदारी ली है, वह नागालैंड में ज्यादा सक्रिय है. लेकिन हमला मणिपुर के दक्षिणी जिले चंदेल में किया गया. इसकी वजह है, इस इलाके की लोकेशन. म्यांमार से सटा ये इलाका जंगल से घिरा है. वारदात के बाद आतंकियों को आसानी से सीमा लांघ जाने में सहूलियत हुई. इसके अलावा आर्मी को गुमराह करना भी आसान था, ताकि वह इस हमले के मास्टरमाइंड तक न पहुंच सके. नगा आतंकी मणिपुर की कुकी जनजाति को अपना दुश्मन मानते हैं और उन पर हमले करते रहे हैं. ऐसे में यदि आर्मी मणिपुर में ऑपरेशन चलाती है तो इससे नगा आतंकियों को फर्क नहीं पड़ेगा.
क्या कोई चूक हो रही है चुनौती से निपटने में...
पूर्वोत्तर राज्यों के आतंकी संगठनों से निपटने के लिए भारत सरकार अब तक समानांतर रणनीति पर चल रही थी. एक ओर आतंकी संगठनों से बातचीत की जाती, दूसरी ओर सेना उनके खिलाफ कार्रवाई करती. लेकिन नागालैंड में हालात बिगड़ते गए. यहां आतंकी स्थानीय पुलिस के साथ मिलकर ज्यादा खूंखार होते गए. यहां होने वाले जातीय संघर्ष का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि नागालैंड के आतंकियों ने 2011 में चार महीने तक मणिपुर जाने वाले सड़कों को जाम रखा. जरूरी चीजों को लेकर मणिपुर में हाहाकार मचने लगा. काफी मशक्कत के बाद आतंकियों ने अपनी शर्त पर रास्ता खोला. इन आतंकियों को पुलिस ने ही एके-56 जैसे आधुनिक हथियार मुहैया कराए हैं. इन आतंकियों की नजर असम के इलाकों पर है, जिसे वे हथियाना चाहते हैं. 2005 में यूपीए सरकार के गृह मंत्री शिवराज पाटिल से मुलाकात में नागालैंड के कुछ नेताओं ने ग्रेटर नागालैंड बनाए जाने की मांग की थी. जिसमें नगा बहुल अरुणाचल, असम और मणिपुर के हिस्से शामिल हों. सरकार ने इस मांग पर ध्यान नहीं दिया. तो आतंकियों ने नई चाल चली. अब वे ईसाई धर्म के नाम पर देश बनाना चाहते हैं- नागालिम. पृथक नागालिम की मांग करने वाले आतंकी कहते हैं कि हमने अमेरिकी मिशनरी से 1839 में ईसाई धर्म अपनाया था. और हम उनके शुक्रगुजार हैं. जैसे मुसलमानों ने इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान बनाना चाहा और 1947 में बना लिया. वैसे ही नागा भी क्राइस्ट लैंड चाहते हैं और उसे पा लेंगे.
उगाही से है बड़ी कमाई...
पूर्वोत्तर का ज्यादातर इलाका जनजातियों से आबाद है. रोजगार के कुछ खास अवसर नहीं हैं. ऐसे में आतंकी संगठन में शामिल होना युवाओं को इसलिए रास आता है कि उन्हें उगाही के रूप में अच्छी-खासी कमाई हो जाती है. वे लूटपाट करते हैं और बंदूक के दम पर लोगों से उगाही करते हैं. ईसाई आतंकियों के ये दस्ते जब त्रिपुरा में उगाही करने गए तो वहां की हिंदू जनजातियों ने मिलकर विरोध किया. एक यह भी वजह रही, त्रिपुरा में आतंकवाद के ज्यादा न टिक पाने की.
सीमा पार से शह...
पूर्वोत्तर राज्यों में आतंक के एक बड़ी वजह है पड़ौसी देशों से मिलने वाली पनाह. उल्फा और अन्य आतंकी संगठनों के कई कैंप बांग्लादेश और म्यांमार में चलते रहे हैं. कुछ वर्ष पहले तक म्यांमार में सैन्य तानाशाही थी. सरकारी स्तर पर ज्यादा तालमेल न होना, आतंकियों के सबसे फायदेमंद रहा. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. दूसरी ओर बांग्लादेश में कुछ कट्टरपंथी समूह भारत में खूनखराबा करने के आतंकियों को हथियार और पैसा दोनों मुहैया कराती रही हैं. इतना ही नहीं, कुछ आतंकी संगठनों के मुख्यालय तो बांग्लादेश में ही हैं.
ये 14 आतंकी संगठन सक्रिय हैं पूर्वोत्तर में:
- युनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा)
- नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडालैंड (NDFB), असम
- पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (PLA), मणिपुर
- युनाइटेड नेशनल लिब्रेशन फ्रंट (UNLF), मणिपुर
- पीपुल्स रिवॉल्यूशनरी पार्टी ऑफ केग्लीपाक (PREPAK), मणिपुर
- केग्लीपाक कम्युनिस्ट पार्टी (KCP), मणिपुर
- केंग्ली याओल कानबा लुप (KYKL), मणिपुर
- मणिपुर पीपुल्स लिब्रेशन फ्रंट (MPLF)
- ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स10. नेशनल लिब्रेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा
- अल बद्र, बांग्लादेश
- जमीयत-उल-मुजाहिदीन, बांग्लादेश
- गारो नेशनल लिब्रेशन आर्मी (GNLA), मेघालय
- कामातापुर लिब्रेशन ऑर्गेनाइजेशन, पश्चिम बंगाल और असम
(स्रोत: केंद्रीय गृह मंत्रालय)
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