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Updated: 09 जुलाई, 2022 10:36 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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महाराष्ट्र में शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे अब भाजपा के साथ बनी गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री पद संभाल रहे हैं. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपने विधायकों को खोने के बाद अब सांसदों को गंवाने की ओर बढ़ चले हैं. और, इसका क्या नतीजा रहेगा, ये राष्ट्रपति चुनाव के बाद सामने आ ही जाएगा. वहीं, शिवसेना को ठाणे के बाद नवी मुंबई में पार्षदों से बड़ा झटका लग चुका है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो महाराष्ट्र में असली शिवसेना और नकली शिवसेना की लड़ाई धीरे-धीरे अपने चरम को प्राप्त करने लगी है. वैसे, तमाम राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के विधायकों की बगावत को पर्दे के पीछे से भाजपा का समर्थन मिला हुआ है. संभावना जताई जा रही है कि भाजपा का महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार के वर्चस्व को खत्म कर एक नई शिवसेना को तैयार करने का प्रयास सफल होने की संभावनाएं काफी ज्यादा हैं. लेकिन, भाजपा सिर्फ शिवसेना के साथ ही अपना पॉलिटिकल स्कोर सेटल करने में नहीं लगी है. बल्कि, एनसीपी को भी लपेटे में लेने की ओर बढ़ रही है.

Not only Shiv Sena in Maharashtra BJP is also taking NCP under wraps Sachin Vaze turns approver against Anil Deshmukh in Corruption caseमहाराष्ट्र में बुरा समय केवल शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का ही नहीं आया है. एनसीपी पर भी संकट के बादल गहरा रहे हैं.

शरद पवार को मिला 'प्रेम पत्र'

महाविकास आघाड़ी सरकार के सूत्रधार एनसीपी चीफ शरद पवार को एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के अगले ही दिन आयकर विभाग की ओर से नोटिस भेजा गया था. अब इसे संयोग कहा जाए या कुछ और, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन, शरद पवार ने इस नोटिस को जरूर 'प्रेम पत्र' बताया था. बताना जरूरी है कि शरद पवार को आयकर विभाग का ये नोटिस 2004, 2009, 2014 और 2020 में चुनावी हलफनामों के संबंध में भेजा गया है. हालांकि, शरद पवार ने इसे भाजपा का केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का मामला कहा था. लेकिन, सच्चाई तो जांच के बाद ही सामने आएगी. लेकिन, इतना जरूर कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति के मामले में एनसीपी कई नेताओं का रिकॉर्ड बहुत ही खराब रहा है.

अनिल देशमुख के खिलाफ सचिन वाझे बना 'सरकारी गवाह'

100 करोड़ के वसूली कांड में जेल की हवा खा रहे महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख की मुश्किलें भी कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने पूर्व पुलिस अफसर सचिन वाझे को सरकारी गवाह बनाने की सहमति दे दी है. सीबीआई की ओर से दर्ज किए गए मामले में सचिन वाझे को पहले से ही सरकारी गवाह बना दिया गया है. वहीं, ईडी के मनी लॉन्ड्रिंग केस में सचिन वाझे की गवाही से अनिल देशमुख के साथ ही महाविकास आघाड़ी सरकार से जुड़े अन्य लोगों के नाम भी सामने आ सकते हैं. इन दोनों ही मामलों में अनिल देशमुख को ही 100 करोड़ के वसूली कांड का मुख्य कर्ता-धर्ता माना गया है. जबकि, अनिल देशमुख के दो सहयोगियों संजीव पलांदे और कुंदन शिंदे को वसूली की मॉनिटरिंग करने वाला माना गया है.

नवाब मलिक पर भारी पड़ा 'अंडरवर्ल्ड कनेक्शन'

एनसीपी नेता नवाब मलिक के खिलाफ भी ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया है. और, फिलहाल वो भी अनिल देशमुख की तरह ही जेल में हैं. लेकिन, नवाब मलिक का मामला मनी लॉन्ड्रिंग के साथ अंडरवर्ल्ड से तार जुड़ने की वजह से और संगीन हो गया है. ईडी के अनुसार, नवाब मलिक के मनी लॉन्ड्रिंग मामले का अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम से कनेक्शन भी सामने आए हैं. कुछ महीनों पहले भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने नवाब मलिक पर अंडरवर्ल्ड से जुड़े लोगों की प्रॉपर्टी के खरीद-फरोख्त के आरोप लगाए थे. फडणवीस ने आरोप लगाया था कि नवाब मलिक ने करोड़ों रुपये की प्रॉपर्टी केवल 30 लाख रुपये में शाहवली खान और हसीना पारकर के बॉडीगार्ड सलीम पटेल से खरीदी थी. जैसे-जैसे मामले की जांच आगे बढ़ रही है नवाब मलिक पर ईडी का शिकंजा और कसता जा रहा है.

'मलाईदार' मंत्रालयों से एनसीपी पर संकट के बादल

महाराष्ट्र में एनसीपी के नेता अनिल भोंसले, एकनाथ खड़से समेत कई नाम ऐसे हैं, जो ईडी के रडार पर हैं. पूर्व परिवहन मंत्री रहे अनिल परब पर भी केंद्रीय एजेंसियों ने शिकंजा कस ही दिया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो महाविकास आघाड़ी सरकार के गिरने के बाद सत्ता से बाहर हुई एनसीपी अब अपने नेताओं का बचाव करने की स्थिति में भी नहीं रही है. और, भाजपा पर सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाकर ही काम चलाना पड़ रहा है. वैसे, महाविकास आघाड़ी सरकार के दौरान सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार के मामलों में एनसीपी नेताओं का ही नाम आया था. क्योंकि, महाविकास आघाड़ी सरकार को रिमोट कंट्रोल से चला रहे शरद पवार ने तमाम मलाईदार मंत्रालय एनसीपी के कोटे में ही रखे थे. क्योंकि, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को तो मुख्यमंत्री पद की ही लालसा थी.

हालांकि, वो सीएम की कुर्सी आदित्य ठाकरे के लिए चाहते थे. लेकिन, यहां भी शरद पवार ने उन्हें गच्चा ही दे दिया था. ठीक वैसे ही जैसे एकनाथ शिंदे के बगावत करने के बाद उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद पर बने रहने की सलाह देकर देते रहे. खैर, महाविकास आघाड़ी सरकार के दौरान मलाईदार मंत्रालयों से एनसीपी चीफ शरद पवार का प्यार अब कार्रवाईयों के तौर पर नजर आ रहा है. संभव है कि आने वाले समय में कुछ और एनसीपी नेताओं पर भी ईडी और आयकर विभाग की कार्रवाई सामने आएं. इन तमाम कार्रवाईयों से शिवसेना और कांग्रेस को भले ही महाराष्ट्र की राजनीति में कोई नुकसान न हो. लेकिन, एनसीपी के लिए भविष्य की राह मुश्किल हो सकती है. क्योंकि, भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे एनसीपी नेताओं की वजह से पार्टी को नुकसान होना तय है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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