जब 'पीओके' की बात है तो मोदी 'कश्मीर' पर क्यों बोलते?
अब तक पाकिस्तान राग कश्मीर अलापता रहा है - लेकिन मोदी सरकार के बदले स्टैंड से लग रहा है कि भारत हर मंच पर पीओके का मसला उठाएगा.
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लाल किले से प्रधानमंत्री के भाषण पर चाहे जितनी तालियां बजी हों - नाराजगी जाहिर करने वालों की फेहरिस्त भी लंबी होगी. नाराज लोगों की फेहरिस्त में प्रमुख तौर पर जो नजर आये वे थे - चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर क्योंकि पीएम ने ज्युडिशियरी को लेकर कुछ नहीं बोला और कांग्रेस नेता इसलिए क्योंकि सरहद पार पहुंचने के चक्कर में मोदी कश्मीर को ही भूल गये.
जम्मू कश्मीर की सीएम महबूबा मुफ्ती का भी कुछ ऐसा ही नजरिया रहा, हालांकि, उनका बयान बहुत डिप्लोमैटिक रहा.
कश्मीर नहीं सिर्फ पीओके
आज तक के सवाल के जवाब में कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी का प्रधानमंत्री के भाषण पर फौरी रिएक्शन था - 'कश्मीर पर तो कुछ बोला ही नहीं.' चतुर्वेदी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वैसे ही घेरने की कोशिश की जैसे उनके साथी गुलाम नबी आजाद ने संसद के भीतर पीएम को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी - 'अफसोस की बात है कि हिंदुस्तान का ताज जल रहा, सिर जल रहा लेकिन इसकी गर्मी दिल्ली की सरकार तक नहीं पहुंच रही.'
संसद में आजाद ने जोर शोर से कश्मीर का मामला उठाया था - और इस बात पर भी नाराजगी जताई कि कश्मीर पर प्रधानमंत्री ने संसद नहीं बल्कि मध्य प्रदेश जाकर बोला, जहां प्रधानमंत्री ने कहा था कि जिन हाथों में लैपटॉप होना चाहिेये उनमें पत्थर थमा दिये जा रहे हैं.
संसद के मॉनसून सत्र के खत्म होने पर ऑल पार्टी मीट बुलायी गयी थी. उस मीटिंग के बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा भी था - अब कश्मीर पर नहीं यानी जम्मू-कश्मीर पर नहीं बल्कि पीओके पर बात होगी. ये मोदी सरकार का पाकिस्तान पर बदला स्टैंड नहीं तो और भला क्या था. उस बैठक में कांग्रेस भी तो शामिल हुई थी - और सभी दलों ने एक मत से सरकार के प्रति समर्थन जताया था, जब मोदी ने संकेत दिये कि उस पार का कश्मीर भी हमारा ही है.
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उधर, जम्मू कश्मीर में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने किसी को नहीं बख्शा, "जम्मू-कश्मीर के मौजूदा हालात के लिए जवाहर लाल नेहरू से लेकर वर्तमान तक का केंद्रीय नेतृत्व जिम्मेदार है. बंदूकें चाहे आतंकी की हो या हमारी, बंदूकों से कोई मसला हल नहीं होगा."
जम्मू कश्मीर में एक महीने से ऊपर हो चुके हैं जब हिज्बुल आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कर्फ्यू जारी है. जम्मू कश्मीर में आम जनजीवन काफी मुश्किल भरा हो चला है.
महबूबा ने चेताया भी कि कश्मीर को सीरिया या अफगानिस्तान बनने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिये - और नौजवानों को कुछ निहित स्वार्थी तत्वों के बहकावे में नहीं आना चाहिये.
गठबंधन की सरकार चला रहीं महबूबा को भी काफी सोच समझ कर बयान देने पड़ रहे हैं. कश्मीर में हिंसा पर महबूबा कहती हैं, "मुठभेड़ पहले भी होती थी. आगे भी होंगे. लेकिन मुझे यह समझ नहीं आता कि इसमें मेरी सरकार की क्या गलती है?"
अब राग पीओके...
अब तक पाकिस्तान राग कश्मीर अलापता रहा है - लेकिन मोदी सरकार के बदले स्टैंड से लग रहा है कि भारत हर मंच पर पीओके का मसला उठाएगा.
संस्कृत में शठे 'शाठ्यम् समारचरेत्' या अंग्रेजी में 'टिट फॉर टैट' के हिसाब से तो यही ठीक होता है. अब जिसे जो भाषा समझ आती है उसे तो वैसे ही समझाना पड़ेगा, अगर तमाम कोशिशों के बावजूद वो दूसरी कोई भाषा सीखने को तैयार ही न हो रहा हो. है कि नहीं?
कश्मीर नहीं, अब राग पीओके... |
वैसे प्रधानमंत्री ने पीओके का मुद्दा भी इंसानियत और जम्हूरियत के दायरे में ही उठाया. प्रधानमंत्री ने कहा, "जब पेशावर में आतंकवादियों ने निर्दोष बच्चों को मौत के घाट उतार दिया था. निर्दोष बालकों का रक्त बहाया गया था. हिंदुस्तान की संसद की आंखों में आंसू थे. भारत का हर बच्चा आंसू में डूबा था.
यही है हमारी मानवता से पली-बढ़ी संस्कृति है. लेकिन कुछ लोग आतंकवाद को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं."
मोदी बोले, "दुनिया देख रही है. पिछले कुछ दिनों में बलूचिस्तान व पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर के लोगों ने मेरा आभार जताया है... मैं उनका शुक्रगुजार हूं."
करीब 100 मिनट का भाषण खत्म होते ही सरहद पार से बलूच नेताओं ने खुले दिल से मोदी की बातों का स्वागत और समर्थन किया. बलूच रिपब्लिकन पार्टी के लीडर अशरफ शेरजान ने कहा - हम पीएम मोदी को धन्यवाद देना चाहते हैं कि उन्होंने बलूचिस्तान के मुद्दे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाया.
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बलूच रिपब्लिकन पार्टी के चीफ ब्राहुम बाग बुगती ने तो अमिताभ और शाहरुख को फिल्म बनाने की ही सलाह दे डाली. बुगती ने कहा कि वो शाहरुख खान और अमिताभ बच्चन के बड़े फैन है और चाहते हैं कि वे बलूचिस्तान पर फिल्म बनाएं.
24 घंटे पहले ही दिल्ली में पाक उच्चायुक्त और इस्लाबाद में उनके नेताओं ने इस बार ज्यादा जोर देकर कहा कि बात अब सिर्फ कश्मीर पर होगी - और उसके जंग-ए-आजादी तक चलेगी.
लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी ने भी साफ कर दिया कि बिलकुल बात होगी, लेकिन पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर. मोदी ने इशारा भी कर दिया कि भारत अब चुप बैठने वाला नहीं है.
पहले मुफ्ती मोहम्मद सईद और अब महबूबा मुफ्ती पाकिस्तान से बातचीत की पक्षधर रही हैं. मॉनसून सत्र के आखिरी दौर में भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 'इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत' फॉर्मूले का जिक्र हुआ, लेकिन पाकिस्तान के अप्रोच के चलते लगता नहीं कि अब उन बातों का कोई मतलब भी है.
आखिर मोदी ने भी तो वाजपेयी की ही तरह लाहौर यात्रा की, लेकिन हासिल क्या हुआ - कारगिल न सही, मौजूदा क्रियाकलाप कम हैं क्या? पाकिस्तान पर लाल किले की प्राचीर से बातें तो पहले भी होती रही हैं, लेकिन मोदी ने पहली बार 'पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर' की बात की - और बिलकुल पाक वाले अंदाज में वहां के लोगों की 'आजादी' का खुले तौर पर समर्थन किया है. मोदी की बातों में इशारों को समझें तो सरकार के इरादे साफ नजर आते हैं.
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