पाकिस्तान के न्यूक्लियर बम से पूरी दुनिया पर बढ़ा खतरा
पाकिस्तान जिस रफ्तार से अपने न्यूक्लियर बमों में इजाफा कर रहा है, जल्द अमेरिका और रूस के बाद उसी के पास सबसे ज्यादा मौत का सामान होगा. अमेरिकी अखबार न्यूयार्क टाइम्स में छपे संपादकीय के मुताबिक…
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अगले एक दशक में पाकिस्तान दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा न्यूक्लियर पावर देश बनने जा रहा है. अगर पाकिस्तान इसी रफ्तार से अपने मौजूदा 120 न्यूक्लियर वॉरहेड की संख्या में बढोत्तरी करता रहा तो कुछ दिनों में वह चीन, फ्रांस और इंग्लैंड को पीछे छोड़ देगा और अमेरिका और रूस के बाद तीसरा सबसे बड़ा न्यूक्लियर पावर देश बन जाएगा.
पाकिस्तान ने बड़ी तेजी से छोटे न्यूक्लियर बमों का निर्माण किया है जिससे वह भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है. इसके अलावा उसके पास कुछ बड़ी मिसाइलें भी मौजूद हैं जो दूर-दराज के इलाकों पर हमला करने में सक्षम है. वहीं पाकिस्तानी सेना में भारत से नफरत करने वाले तत्वों ने अपने देश में दुनियाभर के कई इस्लामिक आतंकी संगठनों को शरण दे रखी है. लिहाजा इस दिशा में पाकिस्तान की दौड़ से न सिर्फ दक्षिण एशिया बल्कि पूरी दुनिया पर खतरा बढ़ रहा है.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को प्राथमिकता के साथ पाकिस्तान की न्यूक्लियर वारहेड की इस दौड़ पर लगाम लगाने की जरूरत है. विश्व की बड़ी शक्तियों ने पिछले दो साल में ईरान को न्यूक्लियर पावर बनने की कोशिशों को रोकने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ी जबकि ईरान के पास एक भी न्यूक्लियर वॉरहेड नहीं है. वहीं पिछले एक दशक में पाकिस्तान ने इतना बड़ा इजाफा कर लिया और विश्व समुदाय मूक दर्शक बना रहा.
बराक ओबामा सरकार ने हाल ही में इस विषय को बेहद गंभीरता के साथ लेना शुरू किया है. वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की 22 अक्टूबर को हुई मुलाकात में इस विषय पर बातचीत बेनतीजा लगती है. इसके बावजूद भारत और पाकिस्तान के बीच बड़ते तनाव को देखते हुए इस विषय को गंभीरता से न लेना गलत होगा.
मौजूदा समय में चीन को छोड़कर पाकिस्तान के न्यूक्लियर मंसूबों का पूरी दुनिया विरोध कर रही है. 1998 में भारत की नकल करते हुए पाकिस्तान ने न्यूक्लियर टेस्ट किया था जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने उसपर आर्थिक प्रतिबंध लगाया था. इसके बावजूद पाकिस्तान ने न्यूक्लियर नॉन-प्रॉलिफरेशन ट्रीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया और उत्तर कोरिया जैसे देश को न्यूक्लियर टेक्नॉलजी ट्रांसफर किया. इन सबके बावजूद वह अमेरिका से उम्मीद कर रहा है कि उसके साथ भी भारत की तर्ज पर न्यूक्लियर पार्टनर बना लिया जाए. हालांकि 1998 के परीक्षण के बाद भारत को भी आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा था लेकिन उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि को बेहतर करते हुए दुनिया का एक जिम्मेदार देश और बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में सफल हुआ. इसी के चलते 2008 में भारत और अमेरिका के बीच अहम न्यूक्लियर समझौता हुआ जिससे आज अमेरिका और भारत न्यूक्लियर क्षेत्र में एक दूसरे के सहयोगी हैं.
अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि भारत जैसा न्यूक्लियर समझौता पाकिस्तान से नहीं किया जा सकता है. बल्कि पाकिस्तान को जल्द से जल्द न्यूक्लियर हथियारों की इस दौड़ को बंद करना होगा. इन हथियारों को पाकिस्तान भारत के खिलाफ तो इस्तेमाल कर ही सकता है इसके अलावा यह वहां पनाह लिए आतंकी संगठनों के हाथ भी लग सकता है जो कि पूरी दुनिया के लिए गंभीर खतरा है.
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