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Updated: 22 अप्रिल, 2015 11:46 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी अब पहले की तरह कमीज की बांह नहीं मोड़ते. पहले गुस्सा कूट कूट कर भरा होता था अब मुस्कुराते हुए भाषण देते हैं. उनका सेंस ऑफ ह्यूमर भी धीरे धीरे सामने आ रहा है.राहुल गांधी अब पहले की तरह कमीज की बांह नहीं मोड़ते. पहले गुस्सा कूट कूट कर भरा होता था अब मुस्कुराते हुए भाषण देते हैं. उनका सेंस ऑफ ह्यूमर भी धीरे धीरे सामने आ रहा है.

संसद में भी - और सड़क पर भी राहुल गांधी की शख्सियत में ये तीन बदलाव खास तौर पर नजर आ रहे हैं. कांग्रेस की युवा ब्रिगेड इसे बदलाव की बयार मान रही है. टीम राहुल के जोश में है. 11 साल के संसदीय जीवन में जब तीसरी बार राहुल गांधी लोक सभा में बोले तो सोनिया गांधी सुन नहीं पाईं. बाद में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया ने कहा, 'मैंने राहुल का पूरा भाषण नहीं सुना क्योंकि मैं पार्टी नेताओं और किसानों से मुलाकात करने में व्यस्त थी लेकिन लोगों ने मुझे बताया कि वह अच्छा था.'

आम लोगों के मसले
शुरुआत रामलीला मैदान से हुई, जिसकी भूमिका काफी पहले तैयार कर ली गई थी. भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर राहुल ने किसानों के सामने अपनी बात रखी. यूपीए शासन के बिल और मोदी सरकार की बिल का फर्क राहुल ने यूं समझाया, 'आज किसान और मजदूर घबराए हुए हैं. सरकार उद्योगपतियों के लिए उनकी जमीन छीन रही है. मोदी सरकार ने कारोबारियों से खूब सारा कर्ज लिया है, जिसे वह चुका रही है. सरकार की इस नीति से नौजवान नक्सली बनेंगे.' एक ही सांस में राहुल ने सब साफ कर दिया.

अब आम आदमी के लिए उन्होंने नेट न्युट्रलिटी का मुद्दा उठाया है. राहुल की मांग है, "देश के हर नागरिक को इंटरनेट का अधिकार होना चाहिए."

बहाना कॉर्पोरेट, निशाने पर सरकार
लैंड बिल के बाद नेट न्युट्रलिटी का मामला उठाते हुए राहुल गांधी ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की है. राहुल ने मोदी सरकार पर इंटरनेट को देश के बड़े उद्योगपतियों को बांटने का आरोप लगाया है.

रामलीला मैदान की रैली में राहुल ने आरोप लगाया था कि मोदी सरकार किसानों के जख्मों पर नमक छिड़क रही है - और उनकी ज़मीन छीनकर उद्योगपतियों को दे देना चाहती है.

लगातार निजी हमले
रामलीला मैदान की रैली में राहुल ने सीधा आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी ने चुनाव जीतने के लिए करोड़ों रुपये का कर्ज ले रखा है. उसी से उन्होंने चुनाव जीता और अब कर्ज देने वालों को खुश करने में लगे हुए हैं.

लंबी छुट्टी में आत्ममंथन के बाद राहुल गांधी अब जुमले भी गढ़ने लगे हैं. उनके भाषण में मीडिया के लिए मसाला भी परोसा जाने लगा है. माना जा रहा है कि ऐसा शायद उनकी स्पीच राइटर टीम बदलने के कारण हुआ है.

'ये सूट बूट की सरकार है. ये बड़े लोगों की सरकार है.' संसद में राहुल गांधी ने ये बात पूरे आत्मविश्वास के साथ कही. चुनावी रैलियों वाला गुस्सा चेहरे से गायब है. वो काफी कूल नजर आ रहे हैं. चर्चा उनके स्पीच राइटर को लेकर होने लगी है. स्पीच राइटर शब्द दे सकते हैं, जुमले भी गढ़ सकते हैं लेकिन बॉडी लैंग्वेज में शायद ही उनकी कोई भूमिका रहती हो.

दिल्ली चुनाव के दौरान भी राहुल ने 10 लाख के सूट का जिक्र किया था. हालांकि, अब उन्होंने इसका जिक्र नहीं करने की बात कही है. वैसे भी सूट की नीलामी हो चुकी है.

बातों बातों में क्या बोल गए
संसद में राहुल ने नेट न्युट्रलिटी के अलावा राहुल गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचोव का भी जिक्र किया. टाइम मैगजीन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ओबामा के लेख पर राहुल ने कहा कि 60 साल में शायद पहली बार अमेरिका ने किसी की तारीफ की है.

राहुल ने कहा कि उन्होंने गोर्बाचोव की भी तारीफ की थी. उसी तरह अब मोदी की तारीफ कर रहे हैं. इस तारीफ के क्या मायने हैं. माना जाता है कि गोर्बाचोव की नीतियों पेरेस्त्रोइका और ग्लास्तनोत्स के चलते ही सोवियत संघ विखंडन की राह चल पड़ा. बाद की बात सबको मालूम है.

संसद में कांग्रेस की घेरेबंदी को को बीजेपी ने 'शैतान का प्रवचन' करार दिया था. सीधा और सपाट बोलने के बाद राहुल ने अब संकेतों की भाषा का इस्तेमाल किया है. लेकिन बड़ा सवाल भी उठाया है. अब सरकार की जवाब देने की बारी है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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