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Updated: 16 दिसम्बर, 2015 10:33 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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क्या केजरीवाल और कांग्रेस अचानक एक जैसे लगने लगे हैं? हेराल्ड केस में राहुल गांधी और सीबीआई रेड पर अरविंद केजरीवाल की प्रतिक्रिया देखकर तो ऐसा ही लगने लगा है.

केजरीवाल और कांग्रेस

सीबीआई रेड पर अरुण जेटली के बयान पर केजरीवाल ने कहा कि जेटली संसद में झूठ बोल रहे हैं. केजरीवाल ने दावा किया कि सीबीआई ने उनके दफ्तर की फाइलें भी चेक की है.

छापे के दौरान सीबीआई ने सचिवालय के थर्ड फ्लोर पर किसी को भी आने जाने नहीं दिया तो केजरीवाल को पता कैसे चला कि उनकी फाइलें भी चेक हो रही हैं.

ये खबर भी खुद केजरीवाल ने ही ब्रेक की थी. क्या केजरीवाल के सीबीआई में सोर्सेज हैं? क्या खबर भी केजरीवाल ने उन्हीं सोर्सेज के हवाले से ब्रेक की थी? वरना, बगैर पहुंचे केजरीवाल को किसने बताया कि उनकी ऑफिस की फाइलें खंगाली गई हैं?

खैर, ये तो सीबीआई का मामला था जिसके दुरुपयोग उसे तोता का तमगा भी कोर्ट से मिल चुका है. कोर्ट के मामले में भी कांग्रेस ने नेशनल हेराल्ड केस में ऐसा ही रवैया अख्तियार किया. हाई कोर्ट के सम्मन पर कांग्रेस ने सीधे संसद में हंगामा कर दिया.

क्या करना चाहिए था?

कांग्रेस को तो कोर्ट का सम्मान करते हुए पहले कानूनी प्रक्रिया से गुजरना चाहिए था. फिर वे चाहते तो मामला संसद में उठाते और तब संभव था उसे पूरे विपक्ष का साथ और लोगों की सहानुभूति भी मिलती. इतना जरूर रहा कि कांग्रेस को टीएमसी और जेडीयू का साथ मिला.

बेहतर तो यही होता कि केजरीवाल भी सीबीआई की छापेमारी हो जाने देते. फिर ठंडे दिमाग से सोच समझ कर बयान देते. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनका सियासी झगड़ा अपनी जगह है. सीबीआई रेड को कायराना हरकत तक कहना भी उतनी गंभीर बात नहीं है. लेकिन देश के प्रधानमंत्री को आखिर किस आधार पर उन्होंने 'साइकोपैथ' कहा? कायराना हरकत पॉलिटिकल हो सकता है लेकिन 'साइकोपैथ' तो मेडिकल कंडीशन है. बगैर किसी मेडिकल सर्टिफिकेट के केजरीवाल किसी के बारे में ऐसा कैसे कह सकते हैं? क्या केजरीवाल मोदी को प्रधानमंत्री नहीं मानते? अगर मानते हैं तो कोई साइकोपैथ प्रधानमंत्री कैसे हो सकता है? या तो केजरीवाल की बात सही है या फिर उनकी जिन्होंने मोदी को प्रधानमंत्री बनाया.

जहां तक ऐसी बयानबाजी की बात है तो बिहार चुनाव में तो हद ही हो गई. मोदी ने लालू पर बेटों को सेट करने की बात कही, नीतीश के डीएनए में खामी बतायी तो लालू ने मोदी को ब्रह्म पिशाच तक बता डाला. ये फर्क करना मुश्किल हो रहा था कि गिरने के मामले में कौन सबसे नीचे पहुंच चुका है? खैर, अगर चुनाव आयोग और बिहार के लोगों को इससे फर्क नहीं पड़ा तो मान लेना चाहिए कि ये सब महज चुनावी बयानबाजी का हिस्सा रहा.

केजरीवाल चाहते तो डंके की चोट पर कह सकते थे कि देखो जी हमने कुछ गलत नहीं किया फिर चाहे जिससे और जितनी दफे रेड डलवा लो या जो चाहो कर सरकार आपकी है. पुलिस आपकी है. दफ्तर सील हो जाने पर केजरीवाल बाहर सड़क पर ही टेबल लगाकर काम करते रहते. वैसे भी ऐसा पहली बार नहीं होता. दिल्ली के कुछ पुलिसवालों पर कार्रवाई को लेकर जब केजरीवाल धरने पर बैठे थे तो बतौर मुख्यमंत्री उनका कामकाज तो चल ही रहा था.

ऐसा क्यों लगता है कि जिन बातों को लेकर केजरीवाल राजनीति में आए थे वो काफी पीछे छूट चुकी हैं - और भ्रष्टाचार के प्रति कांग्रेस और केजरीवाल के नजरिये में अब कोई खास फर्क नहीं रह गया है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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