नोटबंदी का एक महीना: एक विश्लेषण
नोटबंदी को एक महीना पूरा हो गया है, उसके बाद जिस तरीके से देश में उथल पुथल का दौर शुरू हुआ वह कमोबेश अब भी जारी है. आज भी भारत लाइनों में दिखाई दे रहा है.
-
Total Shares
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह 8 नवम्बर 2016 को अचानक नोटबंदी का फैसला लिया उसके बाद जिस तरीके से देश में उथल पुथल का दौर शुरू हुआ वह कमोबेश अब भी जारी है. जनता कतार में हैं अपना ही पैसा लेने के लिए. कोई धरने पर है, तो कोई फैसले को जायज ठहराने के लिए हर जतन कर रहा है. हालात- जनता पस्त, नेता मस्त.
बैंकों से लेकर एटीएम और एटीएम से लेकर संसद तक सभी जगह एक ही स्थिति है. विपक्ष का आरोप है कि इस दौरान लगभग 84 लोगों के मौत हो गई है. प्रधानमंत्री हैं कि संसद में रहते हुए भी बयान नहीं देना चाहते, जिस कारण शीतकालीन सत्र में अब तक केवल जनता की खून पसीने से कमाई गई राशि व्यर्थ में खर्च हो रही है. विपक्ष पूछ रहा है- अगर बैंको में और एटीए में पैसे हैं तो फिर लाइनें इतनी लंबी कैसे दिख रही हैं?
बैंक और एटीएम की लाइनों में कोई कमी नहीं आई है |
दरअसल सरकार एक तीर से दो निशाने साध रही है, पहला काले धन को समाप्त करना दूसरा लगे हाथ केशलेस इकॉनमी को बढ़ावा देना. कैशलेस इकॉनमी के सपने को भुनाने में प्राइवेट कंपनिया कहां पीछे रहने वाली थीं, सो शुरू कर दिया सपनों को भुनाने का काम और एक ही महीने मे बना डाले लाखों ग्राहक.
ये भी पढ़ें- नोटबंदी : इस विरोध से आख़िर क्या मिला?
प्रधानमंत्री ने खुद जनता से 50 दिन की मोहलत मांगी थी, उन्होंने वादा किया है कि 50 दिन के अंदर जनता को नकदी की परेशानी से नहीं जूझना पड़ेगा. लेकिन अगर एक महीने के रिपोर्ट कार्ड को देखें तो प्रधानमंत्री का ये वादा अब सवालों के घेरे में है, क्योंकि नोटबंदी को एक माह होने के करीब है, लेकिन समस्या न तो कम हुई है और न ही कम होती दिख रही है. अर्थशास्त्रियों का मनना है कि नोटों की कमी पूर्ति में 8-10 महीने लग सकते हैं.
सरकार ने कहा कि एटीएम जल्द से जल्द ठीक कर लिए जाएंगे लेकिन अब भी एटीएम कई जगह बिना नोटों के खली पड़े हैं. बैंको के स्तिथि यह है कि जारी की गई लिमिट के बावजूद भी जनता को दस या पांच पांच हजार देकर चलता कर दिया जा रहा है. यह स्थिति तो शहरों की है, गांव देहात में क्या हो रहा है.. वहां सब भगवान भरोसे चल रहा है.
अब भी एटीएम कई जगह बिना नोटों के खली पड़े हैं |
इससे ज्यादा परेशानी तब शुरू हुई जब लगभग हर दूसरे दिन नए-नए फरमान निकलने लगे, फलस्वरूप जनता में भ्रम की स्तिथि पैदा हो गई. सरकार कहती है कि उसके पास 13 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के पुराने नोट जमा हो चुके हैं. सरकार ने अब तक केवल 33 फीसदी रकम ही लोगों के बीच बांटी हैं. तो क्या बाकी की राशि अगले चौबीस दिनों में जनता के पास आ जाएगी? बैंक और डाकखानों में कुल 40,000 करोड़ रुपये के नोट बदले गए हैं.
ये भी पढ़ें- '70 साल की लूट' गिनाने में मोदी से हुई भारी भूल
कई स्थानों पर हजारों की संख्या में 2000 के नोटों की गड्डियों की बरामदगी ने साबित किया कि किस तरह बैंक कर्मियों और काले धन के वारिसों के बीच साठगांठ है. कई अधिकारी पकड़े भी गए हैं.
कई जगह पकड़े गए नए करेंसी नोट |
नोटबंदी ने आतंकवाद और नक्सलवाद की तो लगभग कमर ही तोड़ दी है. खासकर जिस प्रकार नक्सलियों ने एक महीने में आत्मसमर्पण किया है. लेकिन आतंकवादियों के पास 2000 के नोटों का पाया जाना भी कुछ अशुभ सन्देश देता है.
सबसे मजेदार तो रहा लोगों का रातों-रात करोड़पति बन जाना. देश के कई जनधन खातों में अचानक करोड़ों रुपये डाल दिए गए. इन खातों में अब तक अघोषित इनकम का 1.64 करोड़ रुपया जमा है. देश के कई भागों में यह भी देखने को मिला की लाखों के संख्या में 500-1000 के नोटों को या तो जला दिया गया या नदियों में फेंक दिया गया या फिर इन नोटों को मंदिरों में जमा करा दिया गया.
ये भी पढ़ें- मोदी जी, काले धन वालों को एक और मौका क्यों ?
सरकार ने यह भी दावा किया है कि 8 नवंबर की नोटबंदी के बाद से अब तक आयकर विभाग ने लगभग 2,000 करोड़ रुपये का कालाधन पकड़ा है. तथा 130 करोड़ रुपये की नकदी और ज्वैलरी भी जब्त की है.
दावा यह भी किया जा रहा है कि देश के लगभग 95 फीसदी एटीएम को अब 500 व 2000 रुपये के नए नोट देने के हिसाब से सुधारा जा चुका है लेकिन लाइन आज भी लगी हुई है, दूध देने वाली एटीएम मशीनें अब भी नोट नहीं उगल रहीं हैं. शायद लाइन में लगने की हमारी नियति ही हमें ठीक कर दे.
आपकी राय