जातीय जनगणना के मुद्दे पर जो बीस पड़ेगा बाजी मार लेगा
बिहार चुनाव से पहले तो ये आंकड़े आने से रहे. हां, तब तक उसके नाम पर राजनीति तो की ही जा सकती है. अब जो बीस पड़ेगा बाजी भी वही मार पाएगा.
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चुनाव की असली आहट से पहले ही बिहार में कई जातीय सम्मेलन हो चुके हैं. औपचारिक घोषणा नहीं हुई है इसलिए चुनाव आयोग की ओर से कोई पाबंदी भी नहीं है. आयोग की ओर से तमाम बंदिशों में जातीय सम्मेलनों पर पाबंदी ही ऐसी होती है जो नेताओं को सबसे ज्यादा खलती होगी.
जातीय जनगणना के मसले पर लालू प्रसाद ने मंडल जैसी लड़ाई छेड़ने का एलान किया है. बीजेपी अभी माहौल तैयार कर रही है, तो उसके सहयोगी लोगों को कन्फ्यूज करने की कवायद में जुटे हैं.
मंडल जैसी लड़ाई
लालू इसे चुनावी मुद्दा बनाने में पूरी ताकत लगा रहे हैं. लालू लोगों को समझा रहे हैं कि जातीय जनगणना के आंकड़े जारी होने के बाद दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को सरकारी नौकरियों में अब तक मिल रहा आरक्षण दोगुने से ज्यादा हो जाएगा. लालू तर्क देते हैं कि ऐसा इसलिए होगा क्योंकि आबादी के हिसाब से आरक्षण देना पड़ेगा.
जनगणना के आंकड़े घोषित नहीं करने के लिए लालू केंद्र सरकार को घेरते हैं, कहते हैं, "25 जुलाई को मोदी जी आ रहे हैं. उनकी बात सुन लेते हैं. हो सकता है आंकड़ा निकल जाए."
लालू ने 26 जुलाई को इसी मसले पर अनशन पर बैठने वाले हैं और 27 को उन्होंने बिहार बंद की कॉल दी है.
पहले माहौल तो बने
बीजेपी ने भी अपनी मंशा एक तरह से साफ कर दी है. 25 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुजफ्फरपुर में रैली करने वाले हैं. असल इरादा क्या है, ये उसी दिन समझ में आएगा. सबसे पहले बीजेपी नेताओं ने मोदी की जाति का उनके चाय बेचने वाली उपलब्धि की तरह प्रचार प्रसार किया, जिस पर लालू प्रसाद ने अमित शाह को झूठा तक करार दिया. उसके बाद केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह मैदान में कूदे. सिंह ने कहा कि बिहार का अगला मुख्यमंत्री सवर्ण नहीं होगा. यानी वो खुद को रेस से बाहर बता रहे हैं, लेकिन सवर्ण तो नीतीश कुमार भी नहीं हैं. खैर, सुशील मोदी जनगणना के आंकड़ों में अशुद्धियों की बात करते रहे हैं. सुशील मोदी का कहना है कि परिमार्जन के बावजूद अशुद्धियां काफी हैं क्योंकि जाति के बदले उसमें उपनाम और गोत्र आदि दर्ज कर दिए गए हैं.
बीजेपी के सहयोगी राम विलास पासवान का कहना है कि आंकड़ों को जारी करने में जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए. इसके साथ ही पासवान का दावा है कि आंकड़े सार्वजनिक हो गए तो जो लोग सबसे ज्यादा शोर मचा रहे हैं वे साफ हो जाएंगे. पासवान कहते हैं कि मंडल राजनीति का फायदा उठाने वाले लालू और नीतीश को सबसे ज्यादा नुकसान होगा क्योंकि पिछड़ों में शामिल अन्य छोटी जातियां सत्ता में अपनी हिस्सेदारी की मांग करेंगी. ये जातियां कुछ प्रभावशाली ऊंची जातियों से भी संख्या में ज्यादा हैं.
पनगढ़िया की परेशानी
नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया की टीम के सामने भारी मुश्किल खड़ी हो गई है. जातीय जनगणना की रिपोर्ट पढ़ने में उनकी टीम को कम से कम साल भर लग जाएंगे. वो भी तब, जब टीम के लोग रोजाना 12 काम करें. जातीय जनगणना में 46 लाख एंट्री है जिनमें गलतियों को भी सुधारा जाना है.
इस तरह देखें तो बिहार चुनाव से पहले तो ये आंकड़े आने से रहे. हां, तब तक उसके नाम पर राजनीति तो की ही जा सकती है. अब जो बीस पड़ेगा बाजी भी वही मार पाएगा.
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