New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 18 सितम्बर, 2015 04:26 PM
Ashutosh Ujjwal
Ashutosh Ujjwal
  @ashutosh7570
  • Total Shares

आदरणीय शेख साहब

आप मशहूर हैं अपने कड़े कानून और इंसाफपसंदगी के लिए. आपके राज में हर जुर्म की सजा तय है जिसमें कोताही की गुंजाइश नहीं. चोरी की सजा हाथ काटना और कत्ल की सजा कत्ल. रेप के लिए पब्लिक में कोड़े मारने से लेकर सिर कलम करने और फांसी तक का इंतजाम है. सब कुछ शरीयत के मुताबिक और अंडर कंट्रोल है. कहते हैं वहां कानून के डर से जुर्म होते ही नहीं. लेकिन अब आपके इम्तहान की घड़ी है.

आपको मालूम ही होगा कि बीते दिनों सऊदी दूतावास के हेड सेक्रेटरी और आपके सम्मानित डिप्लोमेट माजिद हसन अशूर साहब की कुंठा सरेआम बदनाम हो गई. उनकी कथित ‘मर्दानगी’ के दबे कुचले कीड़े पूरी दुनिया में मशहूर हुए, जब दो नेपाली लड़कियों ने उन पर कई दिनों तक घर में कैद रखने और दोस्तों संग रेप करने का खुलासा किया. ये महिलाएं अपने देश में भूकंप की मार से मजबूर और तंगहाल थीं. उन्हें भूखा प्यासा रखा गया और वहशियाना हरकतों की हदें पार कर दी गईं. महिलाओं की कानूनी मदद करने के लिए भारत का बहुत छटपटाया. लेकिन कानून के लंबे हाथ वियेना संधि के मकड़जाल में फंसकर रह गए.

वियेना संधि जो संयुक्त राष्ट्रों की सहूलियत का मसौदा है, वह माजिद मियां जैसे उचक्कों के लिए खुराफात करके बच निकलने का चोर रास्ता बन गया. उस संधि में ऐसी व्यवस्था की गई है कि विभिन्न देशों में फैले दूतावासों में रहने वाले वीआईपी मेहमानों पर उस देश का कानून हाथ नहीं डाल सकता है, भले ही उसका जुर्म कितना भी संगीन हो. वह मेहमान को आहिस्ता से पकड़ कर उनके घर के दरवाजे तक छोड़ आए बस, वैसे ही जैसे पिल्लों को उनकी मां पोले मुंह से पकड़कर दूसरी जगह ले जाती है. उसके बाद उसके घर वाले जैसे चाहें उसका हिसाब किताब फाइनल करें.

यही हुआ इस मामले में. 7 सितंबर को जब गुड़गांव पुलिस ने माजिद के घर पर दबिश डाली तो यहां अरब दूतावास में खलबली मच गई. बजाय एक रेपिस्ट को उसकी औकात याद दिलाने के, वो उसकी खिदमत में लग गया. शेख साहब, इस पर्दादारी के बजाय अपने मुन्ने का कान ऐंठकर भी तो पूछना चाहिए.

अब यहां से हम इंसानों में नाउम्मीदी सर उठा रही है, क्योंकि माजिद साहब का डेरा कूच कर गया है. बाल-बच्चे सब लेकर प्लेन से बैठकर अपने घर फुर्र हो गए हैं. वही घर जिसके बारे में कहा जाता है कि वह इंसाफ परस्त है. जहां मुजरिम सजा से नहीं बच सकते. जहां कोई बीच का रास्ता- कोई माफी नहीं है. चोरी करने पर हाथ काट डालते हैं. समलैंगिकता या नाजायज शारीरिक संबंध बनाने पर (नाजायज के पैमाने ऐसे कि हंसी आ जाए) पत्थर मार-मार कर कत्ल कर दिया जाता है. उसी घर में कॉलर ऊंची करके गए हैं माजिद हसन अशूर. कॉन्फिडेंस तो होगा ही कि अपने पाले में आ गए हैं अब कौन मेरा कुछ बिगाड़ सकता है.

वियेना संधि के डैने लगाकर माजिद अपने देश उड़ गया और इस मुल्क की सरकार बेबसी से तमाशा देखती रही. तो ऐ मक्का और मदीना वाले शेख साहब, अगर आपके जिगर की जगह पर जिगर है और उस जिगर में दम है तो उतार फेंकिए 'डिप्लोमेटिक इम्यूनिटी' के लिहाफ. अगर मक्का में सजदा करते हुए आपके जेहन में आता है ईमान बचाए रखने का ख्याल, तो हटाइए ये संधियों के जाले जो इंसानियत का रास्ता कुंद करते हैं. आपके शरीयत राज में अगर शराफत बची हुई है तो भगौड़े माजिद पर ट्रायल चलवाइए. कुरान का संदेश न भूले हों तो याद करिए कि उसमें हमेशा इंसाफ की बात कहने का पयाम दिया गया है, भले ही मामला अपने रिश्तेदारों का ही क्यों न हो.

#बलात्कार, #सऊदी दूतावास, #संयुक्त राष्ट्र, रेप, सऊदी दूतावास, संयुक्त राष्ट्र

लेखक

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय