वसुंधरा राजे ने बैठे बिठाए विपक्ष को मुद्दा दे दिया
वसुंधरा राजे के अध्यादेश के बाद राजस्थान की सियासत में बवाल मच गया है. विपक्ष से लेकर जनता तक सब मुख्यमंत्री को 'मुर्ख' मंत्री बताने लगे हैं.
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विधानसभा के भीतर और बाहर मचे सियासी बवाल के बाद राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने विवादित अध्यादेश को सिलेक्ट कमिटी को भेज दिया है. कह सकते हैं की इस विवादास्पद कानून पर चौतरफा हमले और विपक्ष के हंगामे के बाद वसुंधरा राजे को बैकफुट पर जाने पर मजबूर होना पड़ा है. राजे ने प्रदेश के वरिष्ठ मंत्रियों से इस मसले पर बातचीत के बाद यह फैसला लिया.
उनके इस फैसले का स्वागत करते हुए बीजेपी नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने कहा कि, "बिल को विधानसभा की सिलेक्ट कमिटी को भेजा जाना एक स्मार्ट मूव है. ऐसा करके राजे ने अपने लोकतांत्रिक स्वभाव का परिचय दिया है."
Smart move by Vasundara to send the Bill to Select Committee of the Vidhan Sabha. She has demonstrated her democratic nature
— Subramanian Swamy (@Swamy39) October 24, 2017
उन्होंने यहां तक कहा की वसुंधरा को मुख्यमंत्री के तौर पर एक और मौका मिलना चाहिए.
Vasundara deserves another term as CM. She has shown that in governance personal ego does not matter when she defacto shelved that Ordinance
— Subramanian Swamy (@Swamy39) October 25, 2017
बता दें कि इससे पहले इस अध्यादेश का विरोध करते हुए उन्होंने वसुंधरा राजे की आलोचना भी की थी. इस अध्यादेश का विरोध पार्टी के राजस्थान से कुछ और नेता भी कर रहे हैं.
I urge Vasundara to take back her ill fated Gag Bill. It is a sterile exercise&receive a rap from SC when the apex court strikes it down.
— Subramanian Swamy (@Swamy39) October 23, 2017
इस विवादित अध्यादेश ने प्रदेश में विपक्षी पार्टियों को अचानक ही एक मुद्दा दे दिया है. मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी ने ट्वीट कर वसुंधरा सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि, "मैडम सीएम, हम 1817 नहीं, 2017 में रह रहे हैं."
Madam Chief Minister, with all humility we are in the 21'st century. It's 2017, not 1817. https://t.co/ezPfca2NPS
— Office of RG (@OfficeOfRG) October 22, 2017
कांग्रेस विधायकों ने मुंह पर काली पट्टी बांधकर विधानसभा तक मार्च किया और विधानसभा सत्र के पहले दिन ही जमकर विरोध किया. इसके बाद फिर सदन से वॉकआउट किया. पार्टी ने इस अध्यादेश को दुर्भाग्यपूर्ण और दोषियों को बचाने वाला बताकर इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है. पार्टी के नेता सचिन पायलट ने विरोध में अपनी गिरफ़्तारी भी दी. उन्होंने कहा है कि- अगर ये अध्यादेश वापस नहीं लिया जाता है तो वो इसके खिलाफ कोर्ट भी जायेंगे.
This draconian gag ordinance needs to be scrapped. Sending it for "reconsideration" is just not enough https://t.co/bSYwgNl4U4
— Sachin Pilot (@SachinPilot) October 25, 2017
आप पार्टी के नेता कुमार विश्वास ने भी इसका विरोध करते हुआ वसुंधरा सरकार पर हमला बोला.
सात समंदर पार डंका बाज रया छै #तुगलकी_महारानी छै ???? https://t.co/S86Z8YI9ps
— Dr Kumar Vishvas (@DrKumarVishwas) October 24, 2017
ऐसा नहीं है कि केवल राजनीतिक दल ही इसका विरोध कर रहे हैं. बल्कि मीडिया ने भी इस कानून का विरोध किया है. जयपुर के एक वकील अजय जैन ने प्रस्तावित क़ानून को संविधान के ख़िलाफ़ बताते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी है. वहीं पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने कहा है कि वे इस विधेयक को अदालत में चुनौती देंगे.
इस अध्यादेश के तहत सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता व भारतीय दंड संहिता में संशोधन किया है. इसके अनुसार राज्य सरकार की मंजूरी के बिना शिकायत पर जांच के आदेश देने और जिसके खिलाफ मामला लंबित है, उसकी पहचान सार्वजनिक करने पर रोक लगायी गई है. इसकी अनदेखी करने पर 2 साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान भी है. बता दें कि 7 सितम्बर को ये अध्यादेश जारी किया गया था. इसके मुताबिक, सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत अदालत शिकायत पर सीधे जांच का आदेश नहीं दे सकेगी. अदालत, राज्य सरकार से अनुमति मिलने के बाद ही जांच के आदेश देगी.
कहीं आप तुगलक तो नहीं?
बात करें इस फैसले से नफा-नुकसान की तो इससे मौजूदा राजस्थान सरकार की छवि को ही नुकसान होगा. क्योंकि अब तक बीजेपी, कांग्रेस पार्टी पर इमरजेंसी को लेकर हमला बोलती रही है और इस फैसले ने अब कांग्रेस को हमला करने का मौका दे दिया. प्रदेश में अगले साल चुनाव भी होने हैं. ऐसे में विपक्षी दलों को कोई मौका नहीं देना ही सरकार के लिए उचित होता. क्योंकि प्रदेश में विपक्षी दल किसानों के मुद्दे को भी नहीं भुना पा रहे थे, वो तो खुद किसान ही थे जिन्होंने हाल ही में विरोध प्रदर्शन कर सरकार को काफी परेशान किया था.
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