क्या कांग्रेस को ख़त्म कर देगी ओवैसी की MIM
पहले ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (MIM) एक शहर तक सीमित थी. लेकिन अब पार्टी का विस्तार 150 साल पुरानी कांग्रेस के लिए ख़तरे की घंटी साबित हो रहा है?
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हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी का नाम इन दिनों सुर्खियों में है. बीते साल तक उनकी पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (MIM) एक शहर तक सीमित थी. लेकिन अब उनकी पार्टी का विस्तार 150 साल पुरानी कांग्रेस के लिए ख़तरे की घंटी साबित हो रहा है? जानिए कैसे?
20 साल पुराना गढ़ है हैदराबाद
1984 से 2014 तक यह पार्टी केवल शहर तक सीमित राजनीतिक दल थी. 1984 से लगातार हैदराबाद संसदीय सीट पर MIM का ही कब्जा है. 2009 के ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल चुनावों में MIM ने 150 में से 43 सीटों पर जीत हासिल की थी. 2014 में पार्टी का दायरा राज्य स्तर तक बढ़ गया. 2014 में तेलंगाना विधानसभा चुनावों में MIM ने 7 सीटों पर जीत हासिल की.
अगला निशाना: महाराष्ट्र?
ओवैसी की पार्टी ने साल 2012 में नांदेड निकाय चुनावों के जरिए महाराष्ट्र की राजनीति में प्रवेश किया और पार्टी के 12 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज कराई. 2014 में 24 सीटों पर महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव लड़ा. 2 सीटों पर जीत दर्ज की और 3 सीटों पर दूसरे और 4 सीटों पर चौथे स्थान पर रही. 2015 में पार्टी ने नया कीर्तिमान बना दिया. औरंगाबाद निकाय चुनावों में 54 सीटों में से 25 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई.
जीत सिर्फ मुस्लिमों तक सीमित नहीं
हाल ही में हुए औरंगाबाद निकाय चुनावों में MIM की चुनावी रणनीति की झलक साफ दिखाई दी. यहां चुनाव में नारा था जय मीम (मुस्लिम), जय भीम (अंबेडकर). 53 वार्डों पर चुनाव लड़ने वाली MIM ने 13 गैर मुस्लिमों को टिकट दिया था. इसमें 12 दलित और 1 ओबीसी प्रत्याशी शामिल था. इनमें से 4 दलित और ओबीसी प्रत्याशी ने जीत भी हासिल की.
राष्ट्रीय वोट बैंक पर निशाना
चुनावों में बेशक हर मुस्लिम मतदाता ने MIM को वोट नहीं दिया लेकिन उनका प्रभाव काफी है. देश के 76 जिलों में मुस्लिम आबादी 5 लाख से ज़्यादा है. 20 जिलों में मुस्लिमों की आबादी आधे से ज़्यादा है. और 38 जिले ऐसे हैं जहां मुस्लिम आबादी एक चौथाई से ज़्यादा है.
अल्पसंख्यक दांव
देश की 15 संसदीय सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वर्ग की मौजूदगी ज़्यादा है. 38 लोकसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का प्रतिशत 30 से 50% है. देश की 49 ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 20 से 30% है.स्त्रोत: सीएसडीएस, बिज़नेस स्टैंडर्ड
लेकिन ये वोट है किसका?
ओवैसी का पार्टी MIM का विस्तार अल्पसंख्यक और दलित वोटों में सेंध लगाएगा. ये नए समीकरण उन गैर-भाजपाई पार्टियों के लिए ख़तरे की घंटी है जो मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करती हैं. बेशक चुनावी मैदान में उतरने वाले ये नए खिलाड़ी जीत हासिल न कर सकें लेकिन कांग्रेस का खेल ज़रूर बिगाड़ सकते हैं.
क्या MIM का विस्तार कांग्रेस की अल्पसंख्यक वोट बैंक की राजनीति और क्षेत्रीय सेक्यूलर पार्टियों की राजनीति के डूबने का संकेत है? इसका असर बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के आने वाले विधान सभा चुनावों में ज़रूर देखने को मिलेगा.
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