UAPA bill: ओवैसी का आतंक के खिलाफ कानून में मुस्लिम एंगल ढूंढना दुर्भाग्यपूर्ण
कश्मीर से लेकर केरल तक होने वाली आतंकी घटनाओं पर ओवैसी को नज़र डालनी चाहिए. उन्हें UAPA bill को किसी खास मजहब से जोड़ने से पहले आतंकियों के किसी खास मजहब से जुड़े होने पर चिंता जतानी चाहिए.
-
Total Shares
लोकसभा में UAPA [Unlawful Activities (Prevention) Act] बिल पर वोटिंग हुई. 287 वोट तो बिल के पक्ष में पड़े, लेकिन ओवैसी समेत कुछ नेताओं ने इसके खिलाफ वोट किया. खिलाफ वोट करने वालों में असदुद्दीन ओवैसी के अलावा उनकी पार्टी के सांसद इम्तियाज जलील, हाजी फजलुर रहमान (बसपा), के नवस्कनी, मोहम्मद बशीर और पीके कुन्हलीकुट्टी (इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग), हसनैन मसूदी (नेशनल कॉन्फ्रेंस) और बदरुद्दीन अजमल (एयूडीएफ) थे. इस पर ओवैसी ने कहा कि दुख है कि सिर्फ मुस्लिम सांसदों ने ही यूएपीए बिल के खिलाफ वोट किया है. ओवैसी का फोकस इस कानून को मुसलमानों की चिंता से जोड़ना था.
ओवैसी और अन्य नेताओं ने बिल का विरोध किया, यहां तक तो बात राजनीति तक सीमित थी, लेकिन देखते ही देखते ओवैसी ने इसे धार्मिक रंग दे दिया. उन्होंने किसी बिल का विरोध और समर्थन करने वालों में मजहब देखा. ओवैसी को शक है कि आतंक निरोधक कानून मुसलमानों को टारगेट करेगा, लेकिन उसके पीछे की हकीकत एक तय पैटर्न से जुड़ी है जो कि आतंकी वारदात अंजाम देने वाले आरोपियों के मजहब से ताल्लुक रखती है. जब ओवैसी ने मजहबी चश्मे से एक बिल का विरोध देखा है, तो उन्हें कुछ और तथ्यों पर भी इसी चश्मे से नजर डालनी चाहिए.
कश्मीर से लेकर केरल तक होने वाली आतंकी घटनाओं पर ओवैसी को नज़र डालनी चाहिए.
आतंकियों का मजहब नहीं, तो कानून का कैसे?
कश्मीर से लेकर केरल तक होने वाली आतंकी घटनाओं पर ओवैसी को नज़र डालनी चाहिए. उन्हें इस कानून को किसी खास मजहब से जोड़ने से पहले आतंकियों के मजहबी पैटर्न पर निगाह डालनी चाहिए. यदि वे मान रहे हैं कि आतंकी हमला करने वाले लोगों का मजहब नहीं होता, तो ऐसे लोगों के खिलाफ कानून का मजहब से क्या नाता हो सकता है? ओवैसी को ये तय कर लेना चाहिए कि वह चीजों को मजहब के चश्मे से ही देखना चाहते हैं या नहीं. वैसे उनके इस मजहबी चश्मे के सामने कुछ आतंकी घटनाओं का जिक्र किया जा रहा है, जिन पर नजर डालते ही ओवैसी की आंखें खुल जाएंगी.
1993 के मुंबई बम धमाके- 12 मार्च 1993 को एक के बाद एक 12 बम धमाके हुए, जिसमें 257 लोगों की मौत हो गई और 713 बुरी तरह घायल हो गए. धमाके का मास्टरमाइंड था दाऊद इब्राहिम, जिसके फिलहाल पाकिस्तान के कराची में छुपे होने की आशंका है.
1996 लाजपत नगर धमाका- 21 मई 1996 को दिल्ली के लाजपत नगर में धमाका हुआ था, जिसमें 13 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 39 लोग घायल हुए थे. इस घटना के लिए जम्मू कश्मीर इस्लामिक फ्रंट के 6 आतंकियों को दोषी पाया गया था.
1998 कोयंबटूर बम धमाके- 14 फरवरी 1998 को तमिलनाडु के कोयंबटूर में 11 जगहों पर 12 बम धमाके हुए थे. इन धमाकों में 58 लोगों की मौत हुई थी और 200 से भी अधिक लोग घायल हुए थे. ये धमाके 1997 में नवंबर-दिसंबर में हुए दंगों के बाद हुए थे, जिसमें पुलिस फायरिंग में 18 दंगाई मारे गए थे और 2 पुलिसवालों की भी मौत हुई थी. बताया जाता है कि इसके पीछे इस्लामिक ग्रुप अल उम्माह का हाथ था.
जम्मू-कश्मीर विधानसभा धमाका- 1 अक्टूबर 2001 को जैश ए मोहम्मद के आतंकियों ने जम्मू और कश्मीर की श्रीनगर स्थित विधानसभा के मेन गेट पर टाटा सूमो में विस्फोटक भरकर अंदर घुसकर धमाका कर दिया. इस धमाके में 38 लोगों की जान गई थी.
संसद पर हमला- जैश ए मोहम्मद के आतंकियों ने ही 13 दिसंबर 2001 को नई दिल्ली की संसद पर हमला किया. लश्कर ए तैयबा ने उनका साथ दिया था. इस घटना में कुल 14 लोगों की मौत हुई थी.
अक्षरधाम मंदिर पर हमला- 2002 के गुजरात दंगोंं का बदला लेने के लिए कुछ आतंकियों ने अहमदाबाद के अक्षरधाम मंदिर पर हमला बोल दिया और करीब 30 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. इस हमले में लगभग 80 लोग घायल हुए थे. इस हमले को 6 आतंकियों ने अंजाम दिया था, जिन्हें कोर्ट की ओर सजा सुनाई जा चुकी है.
2003 मुंबई धमाके- 25 अगस्त 2003 को लश्कर एक तैयबा के आतंकियों ने मुंबई शहर में दो कारों के जरिए बम धमाके किए, जिसमें 54 लोग मारे गए और करीब 244 घायल हो गए. यह घटना गेटवे ऑफ इंडिया के पास हुई थी.
जयपुर धमाके- 13 मई 2008 को हरकत उल जिहाद अल इस्लामी संगठन के आतंकियों ने जयपुर शहर में 15 मिनट के अंदर एक के बाद एक 9 धमाके किए. इस घटना में 63 लोग मारे गए थे, जबकि 216 घायल हो गए थे.
2008 मुंबई धमाके- 26 नवंबर 2008 को इस्लामिक संगठन लश्कर ए तैयबा के आतंकियों ने मुंबई पर हमला किया था, जिसे 26/11 नाम से भी जाना जाता है. इस हमले में कुल 174 लोगों की मौत हुई थी, जबकि करीब 300 लोग घायल हुए थे.
उरी हमला- 18 सितंबर 2016 को उरी सेक्टर में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने भारतीय सेना पर हमला बोल दिया था. इस हमले में 17 जवान मारे गए थे. इसका बदला लेने के लिए ही मोदी सरकार ने 29 सितंबर 2016 को पाकिस्तान की सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की.
पुलवामा हमला- 14 फरवरी 2019 को जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने कश्मीर के पुलवामा में विस्फोटक से भरी कार का इस्तेमाल कर के सीआरपीएफ के काफिले पर हमला किया. इस घटना में करीब 40 जवान शहीद हुए थे. 26 फरवरी से इसी का बदला लेने के लिए भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी सीमा में घुसकर बालाकोट में चल रहे आतंकी कैंप को तबाह किया.
श्रीलंका बम धमाका- 21 अप्रैल 2019 को श्रीलंका के तीन चर्चों में एक के बाद एक आतंकी हमले हुए. घटना के पीछे नेशनल तौहीद जमात का हाथ था. इस हमले में 253 लोगों की मौत हो गई थी. जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ती गई, केरल पर भी इस हमले की आंच आने लगी. सुरक्षा एजेंसियों ने तो केरल में आईएस और श्रीलंका धमाके के मुख्य आरोपी आदिल अमीस के कनेक्शन तक खंगालने शुरू कर दिए.
अब अगर देखा जाए तो देश में आतंकी वारदातों का एक हिस्सा नक्सलियों के खाते में भी जाता है, जिन्हें माना जा सकता है कि वे हिन्दू हैं. लेकिन शुक्र है कि किसी जनप्रतिनिधि ने इस कानून को बतौर एक हिन्दू के चश्मे से नहीं देखा. एक ऐसेे समय में जबकि भारत के खिलाफ साजिश रचने वाली शक्तियां दिन-रात काम कर रही हैंं, उनका मुकाबला करने के लिए हमारे कानून को सख्त बनाने की कोशिश ही कमजोर की जा रही है.
ये भी पढ़ें-
Article 35A क्या हटने वाला है? दस हजार सैनिक कश्मीर भेजे जाने पर सवाल
येदियुरप्पा की चौथी पारी: क्या इस बार अपना कार्यकाल पूरा कर पाएंगे
कारगिल विजय दिवस: क्या हमने 20 वर्षों में कोई सबक नहीं सीखा?
आपकी राय