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Updated: 24 जुलाई, 2018 09:38 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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25 जुलाई को होने वाले पाकिस्तान चुनाव के प्रचार में जितना पाकिस्तान का जिक्र हुआ है, उतनी ही भारत की भी बात हुई है. शहबाज शरीफ ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर सत्ता में आने के बाद उन्होंने महीज 6 महीने में पाकिस्तान को भारत से आगे ना पहुंचा दिया तो उनका नाम बदल दिया जाए. पीएमएल-एन के शहबाज शरीफ पहले नहीं हैं, जिन्होंने पाकिस्तान चुनाव में लोगों का समर्थन पाने के लिए भारत का सहारा लिया है. इस बार के चुनाव में बार-बार भारत और पीएम मोदी की बातें हुई हैं. इमरान खान भी पीएम मोदी का जिक्र कर-कर के लोगों को लुभाते नजर आए. हैरानी तो ये है कि भारत-पाकिस्तान के बीच का सबसे विवादित मुद्दा कश्मीर इस बार लिस्ट से ही बाहर हो गया.

पाकिस्तान चुनाव, नरेंद्र मोदी, कश्मीर, भारतइस बार के चुनाव में बार-बार भारत और पीएम मोदी की बातें हो रही हैं.

पाकिस्तान में भी हो रहा 'मोदी-मोदी'

पाकिस्तान के चुनाव प्रचार बहुत सी रैलियों में मोदी के नाम का शोर सुनने को मिला. हालांकि, ये शोर जनता नहीं, बल्कि नेता मचा रहे थे. कोई नेता इस बात का दावा कर रहा था कि वो जीता तो मोदी का विजय रथ रोक देगा, तो कोई मोदी-नवाज शरीफ की दोस्ती की बातें करते हुए अपनी राजनीति चमका रहा था. इमरान खान का कहना है कि पीएम मोदी की नीतियां पाकिस्तान विरोधी हैं, इसलिए दोनों देशों के रिश्ते सहज नहीं हो पा रहे हैं.

मोदी का नाम फायदेमंद कैसे?

जब से पीएम मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से पाकिस्तान की हर हरकत का मुंहतोड़ जवाब दिया जा रहा है. भले ही बात सीमा पर होने वाले सीजफायर उल्लंघन की हो या फिर भारत द्वारा पाकिस्तान में घुस कर किए गए सर्जिकल स्ट्राइक की हो. पाकिस्तान में अब यह आम धारणा बन चुकी है कि पीएम मोदी की वजह से ही पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग पड़ता जा रहा है. भारत को तो पाकिस्तान पहले से ही अपना दुश्मन मानता रहा है, लेकिन अब पीएम मोदी उससे भी बड़े दुश्मन बन चुके हैं. ऐसे में, पाकिस्तान में हर नेता मोदी विरोधी बातें कर के लोगों को लुभाने की कोशिश करता रहा. आतंकी हाफिज सईद तो एक कदम और आगे बढ़ गया. वह पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कह रहा था कि मोदी सरकार कश्मीर की नदियों पर बांध बनाकर पाकिस्तान का पानी रोकना चाहती है. वह पाकिस्तान के लोगों से अपील कर रहा है कि उसकी पार्टी को संसद में भेजें ताकि वह मोदी सरकार का अंतरराष्ट्रीय मंच पर विरोध कर सके.

कश्मीर नहीं रहा चुनावी हथियार?

ऐसा लगता है कि पाकिस्तान चुनाव में इस बार कश्मीर चुनावी हथियार नहीं है. या हो सकता है कि पाकिस्तान को ये बात समझ आ चुकी है कि कश्मीर को हासिल करने की उसकी नाकाम कोशिश कभी कामयाब नहीं होगी. अब न तो कोई पार्टी अपनी रैलियों में कश्मीर की बात करती दिख रही है, ना ही किसी ने अपने घोषणा पत्र में इस मुद्दे को उठाया है. दरअसल, इस पर हैरानी करने की वजह ये है कि अभी तक के चुनावों में पाकिस्तान हमेशा कश्मीर के मुद्दे को प्रमुखता से उठाता रहा है. हालांकि, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के इमरान खान ने अपने घोषणा पत्र में कश्मीर का जिक्र किया है, लेकिन उनके अंदाज में कश्मीर ज्वलंत मुद्दे जैसा नहीं है. उनके पूरे घोषणा पत्र में कश्मीर शब्द सिर्फ दो बार आया है, जो पिछले चुनावों तक प्रमुखता से उठाया जाता था.

पाकिस्तान की राजनीति में हाफिज सईद जैसे आतंकी भी चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में ये समझना बिल्कुल मुश्किल नहीं है कि ये राजनीति देश को और गर्त में ही ले जाएगी. पिछले चुनावों में बलूचिस्तान के अधिकारों की भी खूब बात होती थी, लेकिन इस बार ये मुद्दा भी कहीं नजर नहीं आ रहा है. हां, हर पार्टी चीन से लेकर पाकिस्तान के बीच बन रहे इकोनॉमिक कोरिडोर को पूरा करने की बात जरूर उठा रही है. इस बार के चुनाव प्रचार को देखकर एक बात तो साफ हो जाती है कि अभी तक पाकिस्तान का दुश्मन भारत था, लेकिन अब पाकिस्तान भारत से अधिक पीएम मोदी को अपना दुश्मन मानने लगा है.

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