पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक की नहीं आर्थिक स्ट्राइक की जरूरत है
दरअसल अमेरिका के लाख कहने के बावजूद पाकिस्तान के ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है क्योंकि उसे तो आतंक का नया वित्तीय पोषक मिल गया है, जो उसके आतंकियों को भी बचा लेता है और अर्थव्यवस्था को भी.
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आप कितने भी शांत व्यक्ति हों, उदार हों और मानवता की भलाई के लिए लगातार प्रयासरत हों लेकिन अगर आपके पड़ोस में एक ऐसा व्यक्ति हो जो हर वक़्त आपको उकसाता हो, आपके उदार और मानवीय चरित्र का फायदा उठाकर इंसानियत को शर्मसार करता हो, तो यकीन मानिए आपका विचलित होना तय है. पिछले कई दशकों से भारत अपने पड़ोसी नापाक देश पाकिस्तान का ये दंश झेल रहा है. इस देश ने हर बार पीठ में चाकू घोंपने का काम किया है. ताशकंद और शिमला जैसे समझौते में मिमियाने के बाद भी अपनी औकात को भूल जाना यहां के नेताओं और जनरलों का प्राकृतिक स्वभाव रहा है. इस्लाम के नाम पर पूरी दुनिया में आतंकवाद का जो नंगा नाच इन्होंने किया है वो किसी भी मानवीय सभ्यता को थर्राने के लिए काफी है.
इस्लाम के नाम पर आतंकवाद फैला रहा है पाकिस्तान
एक बार फिर से बॉर्डर पर हमारे चार जवान शहीद हुए हैं. जो पाकिस्तान की नापाक गोलियों के शिकार बने हैं और वो गोली भी चीन से भीख में मांगे गए पैसों से खरीदी गयी होंगीं. हाल की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान इस समय भयंकर आर्थिक संकट से गुजर रहा है. इनके पास केवल 10 हफ्तों तक के आयात के लिए विदेशी मुद्रा भंडार बचा है और ये एक बार फिर से अपने आका चीन की शरण में गए हैं और छह हज़ार करोड़ की फौरी राहत लेकर आए. अब जिस देश की अर्थव्यवस्था चीन और आईएमएफ के राहत पैकेज पर टिकी हुई हो उस देश की गोलियों को भी खुद के ऊपर शर्मसार होना चाहिए.
दरअसल पाकिस्तान के निर्माण के बाद से ही वो दूसरे देशों के दया दृष्टि पर चल रहा है. शीत युद्ध के दौर में पाकिस्तान ने अमेरिका के पास अपनी अस्मिता को गिरवी रख कर लाखों डॉलर हासिल किए. जब अमेरिका को लग गया कि पाकिस्तान उनके साथ दोहरी चाल चल रहा है तो उसने अपने आर्थिक पैकेज को बहुत हद तक सीमित कर दिया. उसके बाद पाकिस्तान ने अपना ठिकाना और वफादारी दोनों को बदल दिया. उसने सऊदी अरब को ईरान का डर दिखाकर अपनी फटेहाल स्थिति को बहुत हद तक संभाला. अपने परमाणु हथियार सऊदी अरब के पास गिरवी रखकर करोड़ों रुपये हासिल किए और पूरी दुनिया में वहाबी और कट्टरपंथ इस्लाम को फैलाने के लिए भी उसे एक बड़ी धनराशि मिली.
पाकिस्तानी सेना की गोलियां भी राहत पैकेज पर टिकी होती हैं
हर हफ्ते हमारे निर्दोष जवानों के शहीद होने की खबर आती रहती है. एक आम नागरिक होने के नाते हम ज्यादा से ज्यादा अपने गुस्से का इज़हार कर पाते हैं. आखिर ये सिलसिला कब रुकेगा. इसका जवाब है कि जब तक वहां की सेना अपने पागलपन और इस्लामीकरण की भूख को नहीं छोड़ेगी तब तक कोई कुछ नहीं कर सकता. जनता की चुनी हुई लोकतान्त्रिक सरकार के नेता तो पाकिस्तानी जनरल के यहां मुजरा करते हुए पाए जाते हैं. जो लोग भारत पाकिस्तान के मुद्दे को संवाद के द्वारा सुलझाने की वकालत करते हैं दरअसल वो जान बूझकर अनभिज्ञ बना रहना चाहते हैं.
जब भारत के नेताओं के मुताबिक आतंकवाद का कोई धर्म ही नहीं होता तो फिर रमजान के महीने में उन्हें स्पेशल छूट क्यों दी गई. क्या मोदी सरकार को भी तुष्टिकरण का रोग लग गया है जैसा कि कांग्रेस और पूर्ववर्ती सरकारों को था. जब नरेंद्र मोदी पूरी दुनिया में घूम रहे हैं तो फिर बाकी दुनिया के देश पाकिस्तान की सेना और उसके इस्लामीकरण के प्रोजेक्ट का लाइव क्यों देख रहे हैं. दरअसल अमेरिका के लाख कहने के बावजूद पाकिस्तान के ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है क्योंकि उसे तो आतंक का नया वित्तीय पोषक मिल गया है, जो उसके आतंकियों को भी बचा लेता है और अर्थव्यवस्था को भी. ऐसे में भारत को चीन से दो टूक बात करनी चाहिए कि उसे भारत और पाकिस्तान में से किसी एक से ही व्यापार करना होगा. पाकिस्तान को आर्थिक रूप से घेरने के लिए भारत को मध्य पूर्व के देशों के ऊपर भी दबाव बनाना होगा.
पाकिस्तान का अस्तित्व ही खतरे में
दरअसल चीन का पाकिस्तान के ऊपर कर्ज़ लगातार बढ़ता जा रहा है. चार लाख करोड़ की उसकी महत्वाकांक्षी परियोजना 'वन बेल्ट वन रोड' का काम भी बड़े पैमाने पर चल रहा है. दरअसल इस प्रोजेक्ट का मुख्य मकसद बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और भारत के ऊपर सामरिक रूप से दबाव डालना है. इस प्रोजेक्ट के पूरा होते-होते पाकिस्तान पूरी तरह चीन के नव-साम्राज्यवाद के चंगुल में फंस जाएगा. भारी कर्ज़ और चीन की सेना का दखल, अगर ऐसे ही चलता रहा तो इस्लामाबाद में चीन की मर्ज़ी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलेगा और जिन्ना का मजहबी देश चीन का आर्थिक उपनिवेश बन चुका होगा.
कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न- इंडिया टुडे)
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