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Updated: 23 जनवरी, 2023 08:32 PM
रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर
  @ramesh.thakur.7399
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क्या दिल्ली शहबाज शरीफ के दोस्ती के ऑफर पर दिखाई दिल्लगी? ये सवाल अपने आप में बड़ा है. पाकिस्तान के पीएम ने हिंदुस्तान से दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाने की मंशा जाहिर की है. कहावत है कि ‘मरता क्या ना करता’, कुछ ऐसा ही हाल इन दिनों पाकिस्तान का हुआ पड़ा है. भूखे पेट की आग बहुत तकलीफदेह होती है, कुछ भी करवाने का मादा रखती है. दोस्ती का आफॅर तो दूर, दंडवत होकर पुरानी गलतियों पर माफी मंगाने को भी विवश हो जाता हैं इंसान. क्या इसी बात का बोध तो नहीं हो गया पड़ोसी मुल्क के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ को? लेकिन शरीफ इतनी जल्दी शराफत पर उतर आएंगे, इस पर घोर संशय है. उनके बयान पर दिल्ली अभी शांत है, उलटकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. पाकिस्तान के मौजूदा हालात अच्छे नहीं हैं,आटे-चावल जैसी खाद् वस्तुओं के लेने को चौतरफा भगदड़ मची हुई है. कायदे से देखें तो ये देन पाकिस्तान की मौजूदा और पूववर्ती हुकूमतों के गलत फैसलों और बदले की भावनाओं से लबरेज विभाजनकारी नीतियों की है. हिंदुस्तान को परेशान करने के लिए उन्होंने क्या कुछ नहीं किया, चीन से मोटा कर्ज लिया, भारत को नीचा दिखाने के लिए, उनसे हाथ मिलाया, नेपाल को हमारे प्रति भड़काया, अन्य पड़ोसी मुल्कों से भी मुखालफतें की, इन सबको करने में उनका अच्छा खासा धन भी खर्च हुआ.

Pakistan, Shahbaz Sharif, Prime Minister, India, Narendra Modi, Kashmir, friendship, Conversation, Imran Khanशहबाज शरीफ इसी कोशिश में हैं कि किसी भी सूरत में भारत उनसे दोस्ती कर ले

गृहमंत्रालय के अधिकारियों की मांने तो पाकिस्तानी हुकूमत घुटनों पर है. गिड़गिड़ा अभी शुरू हुआ, आगे और गति बढ़ेगी. पड़ोसी एक बात अच्छे से समझ गए हैं कि भारत से पंगा लेने का मतलब है पूरी दुनिया से बैर-बुराई कर लेना, और भारत से संबंध अच्छे रखने का मतलब है दुनिया के देशों के साथ खुश रहना. तभी, शहबाज शरीफ भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहते हैं. वरना, वो इतने शरीफ नहीं हैं कि भारत के सामने खुद को छुकाएं. हालांकि, भारत उनके झांसे में एकाएक तो नहीं आएगा.रही बात बातचीत करने की, तो रास्ते बंद कभी थे ही नहीं? दरवाजे पहले भी खुले थे, आज भी खुले हैं.

पर, इतना तय है भविष्य में हिंदुस्तान की ओर से बातचीत की टेबल अब तभी सजेगी, जब पाकिस्तान ये भरोसा दे कि कोई भी दिमागी खुराफात और छल-कपट नहीं करेगा? पर, मुश्किल है इससे वह कभी बाज भी आए. कहते हैं ‘चोर चोरी से जाए, हेरा फेरी ना जाए’? ग्लोबल स्तर पर हिंदुस्तान की छवि अब पहले के मुकाबले अच्छी मानी जाने लगी है. शहबाज शरीफ भी अछूते नहीं हैं, बल्कि उनसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान भी दीवाने हुए थे, उन्होंने तो बाकायदा कराची की एक रैली में सार्वजनिक रूप से स्वीकारा भी था कि पूरी दुनिया में भारत का डंका बजा हुआ है, जबकि पाकिस्तान का नाम आते ही विदेशी मुल्क दूरियां बनाने लगते हैं.

हालांकि उनका ये बयान तब आया जब वो सत्ता से बेदखल हो चुके थे. तब उनका पाकिस्तान में जबरदस्त विरोध भी हुआ था. कमोबेश, ऐसा ही मौजूदा प्रधानमंत्री के साथ भी हो सकता है. क्योंकि जनता के भीतर राजनीतिज्ञ लोगों ने भारत के खिलाफ इतना जहर खोला हुआ है, जिसका असर शायद ही कम हो? विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो का बयान अभी भी चर्चाओं में जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के संबंध में अपशब्द कहे थे. ग्लोबल फोरम पर उन्होंने अपने मुंह से जहर उगला था.

समूचा पाकिस्तान मंदी और आर्थिक तंगहाली से बेहाल है. मीडिया में जो तस्वीरें आ रही हैं, उसे देखी भी नहीं जाती. पाक अधिकृत कश्मीर की आवाम भी दुखी है. वहां, कई मर्तबा ऐसी आवाजें भी उठ चुकी हैं कि उन्हें भारत में शामिल कर दिया जाए. वहां, इस वक्त भी हुकूमत के खिलाफ लोग प्रदर्शन कर रहे हैं. जरूरी सरकारी सुविधाआें से महरूम हैं, लोग खुलकर बोलते हैं कि उनके पास सरकारी सुविधाएं नहीं पहुंच रहीं, आटे-चावल के लाले पड़े हुए हैं.

क्या इन सभी समस्याओं से उभरने के लिए ही शहबाज शरीफ भारत के साथ शराफत का हाथ बढ़ाने चाहते हैं? उनके बयान पर विश्वास करना बहुत कठिन है. ‘देर आए, दुरूस्त आए’, जैसी कहावत भी उनके बयान से चरितार्थ नहीं होती दिखती. विश्वास एक बार, दो बार किया जाता है, बार-बार नहीं? ऐसे विश्वास से क्या फायदा, जहां धोखा ही मिले. फिलहाल बर्बाद होते पाकिस्तान की हालत देखकर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अंतरात्मा बिलबिला गई है, तभी वो घुटने टेकने पर मजबूर हुई हैं.

इतिहास देखें तो सिर्फ शाहबाज ही नहीं, पूर्ववर्ती निजामों ने भी हिंदुस्तान की हस्ती को मिटाने के लिए बम-बारूद बनाते-बनाते कंगाल हो गए.उन्होंने बजट का अधिकांश पैसा इसी में खर्च किया और आवाम को छोड़ दिया भुखमरी के लिए सकड़ों पर? लोग भूख से कराह रहे हैं, दाने-दाने को तरस रहे हैं. चारों ओर से बर्बाद होते देख पाकिस्तान को, तब उनके प्रधानमंत्री को अक्ल आई हैं कि अब भी समय है भारत के समझ सरेंडर कर दो.

कहीं कोई चाल तो नहीं है पाकिस्तान की, जिसके लिए वो जाने जाते हैं. पाक की छल-कपट जगजाहिर है, ना सिर्फ भारत, बल्कि समूची दुनिया वाकिफ हो चुकी है. हिंदुस्तान की सेना तीन बार उन्हें धूल चटा चुकी है, चौथी बार शायद की कोशिश करें, बहरहाल, पाक प्रधानमंत्री के बयान पर भारत सरकार ज्यादा इत्तेफाक नहीं रखेगी. ऐसा मुश्किल है कि पाकिस्तान वास्तव में सबक सीख चुका है, या सुधर गया है. वो जानते हैं ये नया भारत है. इसमें उनकी नापाक कोशिशें कामयाब नहीं होंगी. बीते कुछ वर्षों में भांप भी चुके हैं.

कुछ कोशिशें करके देख भी ली, लेकिन उसका रिप्लाई किस अंदाज में उन्हें मिला, ये उनकी आर्मी जानती हैं या वो खुद? इसलिए हिंदुस्तान की हुकूमत शहबाज शरीफ की शराफत पर एकाएक भरोसा शायद ही करे. उन्होंने कहा है कि भारत के साथ संबंधों को सुधारेंगे क्योंकि ’हम पड़ोसी हैं. यह हमारे ऊपर है कि हम शांति से रहें. प्रगति करे या फिर एक दूसरे से लड़ाई करें और समय-संसाधनों को बर्बाद करें. कोई उनसे पूछे यही बात तो भारत उन्हें दशकों से कहता आया है, तब उनकी अक्ल क्या घास चरने गई थी.

शहबाज अगर ऐसा सोचते हैं कि नरेंद्र मोदी को वो मीठी गोली खिलाकर पोट लेंगे और उसके बाद फिर से विश्वासघात करेंगे, ऐसा उनके लिए संभव नहीं होगा? अगर ऐसी हिमाकत करी भी, तो उसका अंजाम क्या होगा, जिसे वह बखूबी और भलीभांत जानते भी है. ये अच्छी बात है पुराने जख्म का एहसास उन्हें आज भी है, उन्होंने स्वीकारा है, कि हम हिंदुस्तान से तीन युद्ध लड़ चुके हैं और तीनों हार चुकें हैं.

वो ये भी मानते हैं कि युद्व अपने पीछे सिर्फ कंगाली, गरीबी और लोगों के लिए बेरोजगारी छोड़कर जाता है. तब भी उनके सिर पर युद्व लड़ने का शौक चढ़ा रहता है. बिना कहे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान गए थे, तब शाहबाज के बड़े भाई नवाज शरीफ प्रधानमंत्री थे, उस खूबशूरत संदेश को भी वो नहीं पढ़ पाए, उसमें मानवता छिपी थी, दोस्ती का पैगाम था, चाहते तो बहुत हासिल कर लेते, लेकिन पाकिस्तान है कि मानता ही नहीं?

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