जमात-उल-अहरार: पाकिस्तान के लिए नया सिरदर्द
एक खतरनाक आतंकवादी संगठन जिसका नाम है - जमात उल अहरार जो पाकिस्तान के लिए अभी सिरदर्द बना हुआ है. यह संगठन लगातार पाकिस्तान में हमले कर आम नागरिकों के अलावा वहां की पुलिस फ़ोर्स को भी अपना शिकार बना रहा है.
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बीते दिनों पाकिस्तान में लगातार एक के बाद एक आतंकी हमले देखने को मिले हैं. शायद ही कोई ऐसा दिन होगा जब पाकिस्तान में आतंकी हमले नहीं हुए हों. एक समय था जब पाकिस्तान में जब भी आतंकी हमले होते थे तो हमे पिछले हमले कब-कब हुए उसके बारे में जानकारियां निकालनी होती थीं. लेकिन अब जब भी वहां आतंकी हमले होते हैं तो शायद ही उसका संज्ञान लिया जाता है.
जब भी पाकिस्तान के ऊपर आतंकवादियों पर नकेल कसने का दबाव डाला जाता है और पाकिस्तान उस पर अमल करता है तो आतंकवादी संगठन नाम बदलकर अपने नापाक मंशूबों को अंजाम देने में कामयाब होते रहते हैं. आज हम ऐसे ही एक खतरनाक आतंकवादी संगठन के बारे में बात करते हैं जिसका नाम है - जमात उल अहरार जो पाकिस्तान के लिए अभी सिरदर्द बना हुआ है. यह संगठन लगातार पाकिस्तान में हमले कर आम नागरिकों के अलावा वहां की पुलिस फ़ोर्स को भी अपना शिकार बना रहा है. ये आतंकवादी स्कूली बच्चों और धार्मिक स्थलों को भी नहीं बख्श रहे हैं.
वाघा बॉर्डर के सुसाइड बॉम्बर की जानकारी जमात-उल-अहरार ने ऐसे एक वीडियो की तरह रिलीज की थी. आतंकवाद के खात्मे के लिए पाकिस्तानी सेना ने नया अभियान शुरू किया है जिसका नाम है - रद्द-उल-फ़साद. पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा की निगरानी में इनके ख़िलाफ़ ये पहला देशव्यापी अभियान है. लेकिन 22 फरवरी को किए गए अभियान के ऐलान के अगले ही दिन लाहौर में बम धमाका हुआ और जिसमें छह लोगों की मौत हुई है और 30 लोग घायल हो गए. वहां में तमाम कोशिशों के बावजूद आतंकवादी हमले रुकते नहीं दिख रहे हैं. लगता है कि हर तरह की सुरक्षा को भेद कर लोगों को निशाना बनाने का हुनर आतंकवादियों ने सीख लिया है.
पाकिस्तान में बहुत सारे आतंकवादी गुट पनप रहे हैं, जिनके अपने-अपने मकसद हैं. इनमें से कुछ ने तो पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ युद्ध का एलान तक कर दिया है. तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान और उससे टूटा ग्रुप जमात उल अहरार इन्हीं में शामिल हैं.
इनका उद्देश्य पाकिस्तान में मौजूदा सरकार को उखाड़ कर उसकी जगह देश भर में शरिया कानून लागू करना है. पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई से पड़े दबाव के कारण तहरीक ए तालिबान दर्जनों छोटे-छोटे गुटों में बंट गया है और ये सब, छोटे स्तर पर ही सही, लेकिन हमले कर रहे हैं.
पाकिस्तान तालिबान, तहरीक—ए—तालिबान (TTP) से अलग हुए गुट जमात उल अहरार जिसका मतलब होता है ‘आजाद लोगों का समूह’ पाकिस्तान के सबसे खतरनाक चरमपंथी गुटों में से एक है.
बॉम्ब ब्लास्ट के बाद कुछ ऐसा था हालसुरक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक नेतृत्व और समूह की कार्यप्रणाली को लेकर मतभेदों की वजह से ही पाकिस्तान तालिबान से टूटकर जमात-उल-अहरार बना था. 26 अगस्त 2014 को जारी डेढ़ घंटे के वीडियो में JUA ने अपने गठन का ऐलान किया था. इस समूह से जुड़े लोगों में अधिकतर पाकिस्तान तालिबान के पूर्व कमांडर हैं, जो अफगानिस्तान से सटे कबीलाई इलाके में सक्रिय हैं.
जमात- उल -अहरार ने कई बड़े हमले किए हैं-
हाल के वर्षों में इस समूह ने पाकिस्तान में कई बड़े हमले किए हैं. यह आतंकवादी संगठन पाकिस्तान में सेना और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाता रहा है. इनमें नवंबर 2014 में वाघा सीमा पर हुआ हमला भी है. जमात उल अहरार ने ही लाहौर में हुए धमाकों की जिम्मेदारी ली थी. लाहौर धमाकों की जिम्मेदारी लेते हुए इस संगठन ने कहा कि उसने ईसाइयों के ईस्टर पर्व पर हमला किया है.
मार्च 15, 2015 में लाहौर के एक चर्च पर भी इस संगठन ने हमला किया था, जिसमें 15 लोग मारे गए थे. यह धमाके उस समय हुए थे जब ईसाई समुदाय के लोग रविवार की प्रार्थना में हिस्सा लेने गिरजाघर गए थे. मार्च 2016 में भी इस संगठन ने ईस्टर के दिन एक पार्क में हमला कर 70 लोगों को मौत की नींद में सुला दिया था. इस समूह ने ही चारसद्दा जिले की अदालत में हमले की जिम्मेदारी ली थी और इसे पंजाब के पूर्व गवर्नर सलमान तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को फांसी की सजा का बदला बताया था. क्योंकि सलमान तासीर ने ईशनिंदा कानून के उल्लंघन में जेल भेजी गई ईसाई महिला का बचाव किया था.
पाकिस्तान ही इसका ज़िम्मेदार है ...
इस संगठन का सम्बंध अलकायदा और चीनी Uyghurs जैसे विदेशी आतंकवादियों के साथ भी है जिसके लिए खुद पाकिस्तान ही ज़िम्मेदार है. पाकिस्तान ने ही इन आतंकवादी संगठनों को स्वतंत्र रूप से धर्म प्रचार करने, सांप्रदायिक विचारों को पढ़ाने, तथाकथित पवित्र युद्ध के लिए धन जुटाने और कश्मीर और काबुल में अपनी विदेश नीति साधने के लिए इस्लामवादियों को अनुमति दी थी.
पाकिस्तान ने ही अफगान तालिबान का समर्थन किया था और विदेशी आतंकवादियों को अपने यहां पनाह लेने की अनुमति भी दी थी. और जब ये पाकिस्तान के हाथों से बाहर होने लगे तो पाकिस्तान आतंकवादियों को पाकिस्तान पर हमला करने के लिए अफगानिस्तान को दोषी ठहराने लगा.
लेकिन जब घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने लगे तो पाकिस्तानी सेना प्रमुख, बाजवा यह संकेत देना चालू किये कि संयम के दिन खत्म हो गए हैं और उनके खिलाफ अभियान शुरू किया है जिसका नाम है - रद्द-उल-फ़साद जिसका मक़सद देश से आतंकवादियों का ख़ात्मा करना है.
हालाँकि, पाकिस्तान में ये पहला आतंक विरोधी अभियान नहीं है. इसके पहले पाकिस्तानी सेना ने उत्तरी वज़ीरिस्तान में ऑपरेशन ज़र्ब-ए-अज़्ब चलाया था. ये अभियान जून 2015 में किया गया था. इससे पहले भी पाकिस्तानी सेना देश के क़बायली इलाक़ों और स्वात घाटी क्षेत्र में सैन्य अभियान चला चुकी है.
अब देखना है कि पाकिस्तान के लिए ये आखिरी आतंक विरोधी अभियान साबित होगा या फिर कोई दूसरे नाम से कोई और अभियान आएगा?
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