पठानकोट से संदेश- जागे देश, जारी रहे पाक से गुफ्तुगू भी
अगर आप भारत-पाकिस्तान के बीच संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिशों से जुड़े पन्नों को खंगालेंगे तो आप पाएंगे कि अब तक उन पर पानी फेरने की हर मुमकिन कोशिश हुई है.
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पठानकोट एयरफोर्स बेस पर पाकिस्तानी घुसपैठियों के हमले ने कारगिल की यादें ताजा कर दीं. कारगिल की जंग से कुछ समय पहले ही अटल बिहारी वाजपेयी जी भी लाहौर गए थे. लाहौर में नवाज शरीफ ने ही उनका तहेदिल से स्वागत भी किया था. और उसके कुछ ही समय के बाद पता चला कि कारगित में पाकिस्तानी घुसपैठिए पहुंच चुके हैं. दरअसल वे घुसपैठिए न होकर पाकिस्तानी सेना के जवान ही थे. इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लाहौर यात्रा के चंद एक दिनों के बाद ही पठानकोट में एयरफोर्स एयरबेस पर हमला हुआ. यानी संदेश और संकेत साफ दे दिया है आईएसआई और पाकिस्तानी सेना ने, कि भारत-पाकिस्तान सेना के बीच अमन स्थापित करने को लेकर हो रही बातचीत को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा. और अब सरहद पार से होने वाले हमलों के निशाने पर पंजाब ही क्यों है, पठानकोट हमले के बाद ये सवाल भी अहम हो चुका है. पठानकोट हिमाचल, पंजाब और जम्मू-कश्मीर की सीमा पर है. यहां के एयरबेस में मिग-21 लड़ाकू विमानों और एमआई-35 लड़ाकू हेलीकॉप्टरों को रखा जाता है. भले ही पाकिस्तान के साथ बातचीत जारी रहे, पर सरहद के उस पार से होने वाले आत्मघाती हमले रोकने होंगे. ये बात फिलहाल समझ से परे हैं कि कुछ माह पहले जिन पाकिस्तानी आतंकियों ने गुरुदासपुर में हमला किया था, उन्होंने उसी रूट से घुसपैठ करते हुए पठानकोट में अपना काम करके कैसा दिखा दिया. सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ को और सतर्क होने की जरूरत है. इस तरह से तो बात नहीं बनेगी. पठानकोट हमले के तार पाकिस्तान सेना से जुड़े हैं. हमले पर रावलपिंडी में स्थित सेना के हेड क्वार्टर पर बैठे अफसरों की निगाहें थीं.
यूं तो कुछ हफ्ते पहले ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपने मंत्रियों और सहयोगियों को भारत के खिलाफ गैर-जिम्मेदराना और भड़काऊ टिप्पणी करने से बचने के निर्देश दिए थे. जाहिर है, नवाज शरीफ भारत से संबंध सुधराने को लेकर गंभीर हैं. पर बड़ा सवाल ये है कि क्या उनके देश की आर्मी भी इसी तरह की सोच रखती है. सच ये है कि आर्मी की कमान उनके पास है ही नहीं. पाकिस्तान सेना के चीफ जनरल राहील शरीफ भारत के खिलाफ लगातार भड़काऊ टिप्पणी करने से बाज नहीं आते. मोदी की हालिया यात्रा से कुछ पहले ही राहील शरीफ ने जंग की सूरत में भारत को अंजाम भुगतने की चेतावनी देते हुए कहा था,"हमारी सेना हर तरह के हमले के लिए तैयार है. अगर भारत ने छोटा या बड़ा किसी तरह का हमला कर जंग छेड़ने की कोशिश की तो हम मुंहतोड़ जवाब देंगे और उन्हें ऐसा नुकसान होगा जिसकी भरपाई मुश्किल होगी."
शायद, पाकिस्तान की आर्मी अब तक 1971 की करारी हार को भुला नहीं पाई है. आज पाकिस्तान आर्मी भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, स्मगलिंग और आतंकवाद में पूरी तरह लिप्त है और सभी सेना के अधिकारी छूटकर पैसे बनाने में ही लगे हुए हैं. बहुतों को शायद यह मालूम नहीं होगा कि पाकिस्तान की सारी संपत्ति का 56% सिर्फ पाकिस्तानी सेना के जनरलों और पूर्व जनरलों ने कब्जाया हुआ है. ऐसी हालत में पाकिस्तानी सेना का मनोबल कैसा होगा?
जिया से मुशर्ऱफ तक
पाकिस्तान के गुजरे दौर के जितने भी सेना चीफ रहे हैं, चाहें वे जिया उल हक हों या फिर परवेज मुशर्ऱफ, सभी घोर भारत विरोधी रहे हैं. राहील शरीफ उसी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं. उनके खुद के बड़े भाई 1971 की जंग में मारे गए थे. लगता है, वे इस कारण से भी भारत से खास खुंदक रखते हैं. दरअसल पाकिस्तान आर्मी का सारा इतिहास परायों को तो छोड़िए अपनों के खून से ही सना पड़ा है. हो सकता है कि इस पीढ़ी को पाकिस्तानी आर्मी के ईस्ट पाकिस्तान(अब बांग्लादेश) में रोल की पर्याप्त जानकारी न हो. 25 मार्च 1971 को पाकिस्तानी सेना ने अपने ही मुल्क के बंगाली भाषी लोगों पर जुल्म ढाहना शुरू किया. इस कार्रवाई को पाकिस्तानी सेना ने आपरेशन सर्च लाइट का नाम दिया. पाकिस्तानी सेना के दमन में मारे जाने वालों की तादाद हजारों में नहीं बल्कि 30 लाख थी. इतना ही नहीं पाकिस्तानी फौजी दरिंदों ने दो लाख से ज्यादा महिलाओं से बलात्कार भी किया था. ईस्ट पाकिस्तानी अवाम को इतनी भयानक सजा इसलिए मिली, क्योंकि उसने अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करना शुरू किया था. ईस्ट पाकिस्तान की जनता का आरोप था कि पाकिस्तान के रहनुमा उनके साथ सरकारी नौकरियों से लेकर उनकी मातृभाषा के साथ भेदभाव करते हैं. मैंने भारत-बांग्लादेश जंग को तत्कालीन शीर्षस्थ सम्ताहिक "धर्मयुग" और दैनिक हिंदुस्तान के लिए कवर किया था. मैं तब अनेक तत्कालीन ईस्ट पाकिस्तानियों(अब बंगलादेशी बंधुओं से) से मिला भी. सबका आरोप था कि पाकिस्तानी सेना ने उन पर जुल्मों की इँतिहा कर दी थी.
आर्मी या माफिया
भारत समेत विभिन्न देश अपनी आर्मी के रणभूमि से लेकर दैविक आपदाओं के वक्त किए शानदार कार्यों के चलते फख्र महसूस करते हैं. लेकिन, पाकिस्तानी सेना तो अपने आप में किसी माफिया गिरोह से कम नहीं है. माना जा रहा था कि भारत से 1971 के युद्ध में धूल में मिलने के बाद सेना सुधर जाएगी. लेकिन ये नहीं हुआ. पाकिस्तान आर्मी ने देश में चार बार निर्वाचित सरकारों का तख्तापलटा. अयूब खान, यहिया खान, जिया उल हक और परवेज मुशर्ऱफ ने पाकिस्तानी सेना को एक माफिया के रूप में विकसित किया. देश में निर्वाचितो सरकारों को कभी कायदे से काम करने का मौका ही नहीं दिया. जम्हूरियत की जड़ें जमने नहीं दीं. जिया के दौर में पाकिस्तान में कट्टर इस्लामिकरण का नारा बुलंद करने वाली तंजीमों को खाद-पानी दिया दिया गया. जिया पर ही भारत में सिख आतंकवाद को मदद देने के आरोप लगे. पुख्ता सुबूत भी मिले.
जारी रहे गुफ्तुगू
बेशक, पठानकोट के एयरफोर्स बेस पर हमला करने वाले पाकिस्तान से ही आए. अब इसके पर्याप्त साक्ष्य मिल चुके हैं. तो क्या भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत के सिलसिले को रोका जाए? नहीं. बातचीत का सिलसिला चलता रहना चाहिए. महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान में सत्ता के तीन केंद्र हैं. एक-सेना और आईएसआई. दो- कट्टरपंथी और आतंकवादी संगठन. तीन-जनता की चुनी हुई सरकार. सत्ता का यही तीसरा केंद्र वहां सबसे ज्यादा कमजोर है. भारत के मामलों में पाकिस्तानी सत्ता का पहला और दूसरा केंद्र हमेशा साथ-साथ रहता है. अत: इसकी ताकत और भी बढ़ जाती है. यदि भारत सत्ता के तीसरे केंद्र से बातचीत बंद कर देंगे, तो पहले और दूसरे केंद्रों की मंशा पूरी हो जाएगी.
पानी फेरने की कोशिशें
जाहिर है, भारत ये नहीं कर सकता. कम से कम, समझदारी तो इसी में है. हालांकि ये भी सच है अगर आप भारत-पाकिस्तान के बीच संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिशों से जुड़े पन्नों को खंगालेंगे तो आप पाएंगे कि अबतक उन पर पानी फेरने की हर मुमकिन कोशिश हुई है. याद कीजिए कि फरवरी 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर गए. वहां पर लाहौर संधि पर हस्ताक्षर किए. नतीजा- मई-जुलाई,1999 कारगिल की जंग. मई 2004, नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. उसमें नवाज शरीफ भी शामिल हुए. नतीजा-भारत सीमा पर पाकिस्तानी गोलीबारी में 30 लोग मारे गए. संपत्ति को भारी क्षति. सितंबर 2015- बीएसएफ और पाकिस्तान रेंजर्स के बीच बातचीत. उससे पहले ही गुरुदासपुर में घुसपैठियों का हमला. 25 दिसंबर, 2015- मोदी और शरीफ लाहौर में मिले. और हो गया पठानकोट पर हमला.
जागे सुरक्षा बल
अब कुछ सवाल बीएसएफ से. गुरुदासपुर, जम्मू के ऊधमपुर और अब पठानकोट में पाकिस्तानी घुसपैठिये के हमले. घुसपैठियों ने ऊधमपुर में बीएसएफ टुकड़ी पर ऊधमपुर से 10 किमी दूर सनरूली हाईवे पर किया. इस बार एयरफोर्स बेस पर हमला हुआ. यह समझ से बाहर की बात है कि सूचनाएं और आशंकाएं होने के बावजूद बार-बार हमारे सुरक्षाबल आतंकियों के आसान शिकार क्यों हो रहे हैं. ट्रेनिंग में कमी है या सर्तकता ही नहीं बरती जा रही. सुरक्षाबलों को प्रभावी कदम तो उठाने ही होंगे.
अब सरहद पार से निशाने कश्मीर की जगह पंजाब में हो रहे हैं. साफतौर पर आतंकियों का नया टारगेट पंजाब है. मुझे लगता है कि कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों का कंट्रोल बढ़िया है. वहां पर उनके लिए स्पेस खत्म होता जा रहा है. इसलिए उन्होंने पड़ोसी पंजाब में पैर जमाने शुरू कर दिए हैं. इस तरफ भी देखना होगा. बहरहाल, पठानकोट एयरफोर्स बेस पर हमला देश के सामने बहुत सारे सवाल छोड़ रहा है. सवाल गंभीर हैं. देश को इन सवालों के जवाब खोजने होंगे.
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