पेगासस जासूसी कांड: जानिए एमनेस्टी इंटरनेशनल पर क्यों उठ रहे सवाल
पेगासस जासूसी कांड (Pegasus snooping case) की रिपोर्ट को सामने लाने वाली एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दावा किया कि पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, नेताओं समेत अन्य लोगों की गैरकानूनी तरीके से जासूसी की जा रही है.
-
Total Shares
दुनिया के कई बड़े मीडिया संस्थानों ने एक रिपोर्ट साझा कर दावा किया था कि इजरायल की साइबर सुरक्षा कंपनी एनएसओ (NSO) के पेगासस स्पायवेयर (Pegasus Spyware) के जरिये कई देशों में 50,000 से ज्यादा लोगों के फोन हैक कर जासूसी को अंजाम दिया गया है. पेरिस की एक गैर-लाभकारी संस्थान और मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International) द्वारा साझा की गई इस रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया था कि भारत में कई नेताओं, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत करीब 300 लोगों की जासूसी की गई थी. भारत में इस रिपोर्ट के सामने आते ही बवाल मच गया था. पेगासस जासूसी कांड (Pegasus snooping case) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए विपक्षी दलों ने संसद से लेकर सड़क तक केंद्र की मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया. राजनीतिक दलों ने पेगासस जासूसी कांड की संसदीय समिति से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक से मामले की जांच कराने की मांग की गई है.
पेगासस जासूसी कांड की रिपोर्ट को सामने लाने वाली एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दावा किया कि पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, नेताओं समेत अन्य लोगों की गैरकानूनी तरीके से जासूसी की जा रही है. एमनेस्टी इंटरनेशनल की ओर से ये भी कहा गया था कि उसकी सिक्योरिटी लैब में इस लिस्ट में शामिल कई लोगों के मोबाइल की फॉरेंसिक विश्लेषण कर शोध किया गया, जिसमें ये बात निकल कर सामने आई है. एमनेस्टी इंटरनेशल का दावा था कि जांच में आधे से ज्यादा मामलों में पेगासस (Pegasus) स्पायवेयर के निशान मिले थे. हालांकि, भारत में इस पेगासस रिपोर्ट के साथ ही इसे साझा करने वाली एमनेस्टी इंटरनेशनल पर लगातार सवाल उठाए जा रहे थे. मोदी सरकार में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि मेरे एक संवाद को मजाकिया लहजे में इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन, इस रिपोर्ट के लिए मैं कह सकता हूं कि आप क्रोनोलॉजी समझिए.
पेगासस जासूसी कांड को लेकर भारत में मचे राजनीतिक बवाल के बीच अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस रिपोर्ट में किए गए अपने दावे से यू-टर्न ले लिया है. इजरायली मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि उसने इस लिस्ट को कभी भी एनएसओ पेगासस स्पायवेयर लिस्ट नहीं कहा. दुनिया के कुछ मीडिया संस्थानों ने ऐसा किया होगा. लेकिन, एमनेस्टी ने इस लिस्ट को लेकर साफ किया है कि ये उन लोगों के नाम हो सकते हैं, जिनकी जासूसी कराना एनएसओ के ग्राहक पसंद कर सकते हैं. ये उन लोगों की लिस्ट नहीं थी, जिनकी जासूसी की गई. एमनेस्टी इंटरनेशनल के हालिया दावे के बाद ऐसा लग रहा है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का क्रोनोलॉजी को लेकर दिया बयान सही साबित हुआ है. खैर, इस तमाम सियासी उठापटक से इतर आइए जानते हैं कि एमनेस्टी इंटरनेशनल क्या है और इसे लेकर भारत में सवाल क्यों उठाए जा रहे थे?
Amnesty says it never claimed list was NSO: "Amnesty International has never presented this list as a 'NSO Pegasus Spyware List', although some of the world's media may have done so..list indicative of the interests of the company's clients" https://t.co/51U72HI9yFh/t @ersincmt
— Kim Zetter (@KimZetter) July 21, 2021
क्या है एमनेस्टी इंटरनेशनल?
एमनेस्टी इंटरनेशनल लंदन स्थित एक अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन है, जो गैर-सरकारी संस्था है. इस संगठन की स्थापना 1961 में पीटर बेन्सन नाम के एक वकील ने की थी. जेलों में गलत आरोपों के चलते बंद लोगों की रिहाई के लिए इस संगठन को बनाया गया था. इस संगठन के सदस्य सीन मैकब्राइड को नोबेल पीस पुरस्कार भी मिल चुका है. संगठन का कहना है कि वो मानवाधिकारों की रक्षा के लिए शोध और जांच करती है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल लंदन स्थित एक अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन है, जो गैर-सरकारी संस्था है.
आतंकियों से लेकर दिल्ली दंगों तक मानवाधिकार की वकालत
बीते साल दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ लंबे समय से चल रहे धरनों के बाद हिंसा भड़क गई थी. दिल्ली में हुए दंगों को लेकर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दिल्ली पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे. आसान शब्दों में कहें, तो संगठन द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में एक तरह से दिल्ली पुलिस पर ही दंगों को भड़काने और उन्हें हवा देने के आरोप लगाए गए थे. रिपोर्ट में दावा किया गया था कि दिल्ली पुलिस ने शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे लोगों के साथ बर्बरता की थी, जो सीधे तौर पर मानवाधिकारों का उल्लंघन था. पूरी दुनिया में इस रिपोर्ट की वजह भारत की छवि को काफी धक्का लगा था. वैसे, ये इकलौता मामला नहीं है, जब एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ऐसी रिपोर्ट प्रकाशित की हों. जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद बवाल की आशंका के चलते नजरबंद किए गए लोगों के मानवाधिकार को लेकर भी एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दुनियाभर में भारत की किरकिरी कराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी. इसी रिपोर्ट के सहारे पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को घेरने की कोशिश करता रहा. इससे इतर आतंकी हमले के दोषी अजमल कसाब, संसद हमले के दोषी अफजल गुरु और 1993 मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए भी एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पूरी दुनिया में अभियान चलाए थे. भीमा कोरेगांव हिंसा को लेकर भी इस संगठन के बयानों से भारत की छवि काफी खराब हुई थी.
#NEWS: Amnesty International India Halts Its Work On Upholding Human Rights In India Due To Reprisal From Government Of Indiahttps://t.co/W7IbP4CKDq
— Amnesty India (@AIIndia) September 29, 2020
भारत से क्यों समेटना पड़ा बोरिया बिस्तर?
बीते साल सितंबर में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी भारत में स्थित इकाई को बंद कर दिया था. संगठन ने मोदी सरकार पर बदले की भावना से काम करने के आरोप लगाए थे. दरअसल, एमनेस्टी इंटरनेशनल पर अवैध रूप से विदेशी चंदा लेने के आरोप लगे थे. मामले की जांच कर रही एजेंसियों ने ये भी पाया था कि विदेशी धन को ये संगठन देश की अन्य एनजीओ को भी बांट रहा था. गृह मंत्रालय ने इसे लेकर बयान जारी करते हुए कहा था कि एमनेस्टी इंटरनेशनल को सिर्फ एक बार साल 2000 में फॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) एक्ट (FCRA) के तहत मंज़ूरी मिली थी. इसके बाद के सभी आवेदनों को मंज़ूरी नहीं मिली थी. FCRA नियमों दरकिनार करते हुए संगठन ने विदेशों से चंदा लिया. अवैध तरीकों से धन लेने की वजह से ही एमनेस्टी इंटरनेशनल के आवेदनों को खारिज किया जाता रहा है.
आसान शब्दों में कहें, तो एमनेस्टी इंटरनेशनल और सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर एक जैसे ही हैं.
एमनेस्टी और ट्विटर एक जैसे
साल 2016 में रूस ने भी एमनेस्टी इंटरनेशनल के कामों को लेकर उस पर रोक लगा दी थी. रूस, अमेरिका जैसे दर्जनों देशों में किसी भी विदेशी संस्था या संगठन को देश की राजनीति या आंतरिक मामलों में दखलंदाजी करने का अधिकार नहीं है. आसान शब्दों में कहें, तो एमनेस्टी इंटरनेशनल और सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर एक जैसे ही हैं. ये दोनों ही अपने कामों से लोगों के विचारों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं. यह संगठन अपने विचारों को देश के लोगों पर थोप कर सरकार विरोधी माहौल को बढ़ावा देती हैं और लोगों में असंतोष की भावना को भड़काती हैं. बीते साल ही भारत के गृह मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया था कि एमनेस्टी इंटरनेशनल को भारत में मानवीय काम जारी रखने की स्वतंत्रता है. लेकिन, विदेशी धन पाने वाले इन संगठनों को भारत की घरेलू राजनीतिक बहस में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं है.
आपकी राय