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 |  सुशांत सरीन  |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 25 दिसम्बर, 2017 02:25 PM
सुशांत सरीन
सुशांत सरीन
  @sushant.sareen.5
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भारत पाकिस्तान के बीच रिश्ते सुधारने के लिए दोनों देशों की जनता के बीच संबंधों को सुधारना एक गेम चेंजर साबित हो सकता है. लेकिन अगर ध्यान से देखा जाए तो लोगों को ये गलतफहमी है कि दोनों देशों की जनता के बीच रिश्ते सुधारने से भारत पाकिस्तान के राजनैतिक संबंध भी सुधर जाएंगे.

पिछले दो सालों में सरकार को ये एहसास हो गया है कि दोनों देशों की जनता के बीच संबंध की बात सिर्फ एक छलावा है. इसका सबूत पिछले दो सालों में पाकिस्तान से भारत की सीमा में आने वाले लोगों की घटती संख्या से मिलता है. 2015 तक जहां पाकिस्तान से भारत आने वाले लोगों की संख्या 1 लाख थी. वहीं 2016 में ये घटकर 50,000 और 2017 में खींच तानकर 35,000 तक पहुंची. मतलब रोजाना लगभग 100 लोग भारत की सीमा में प्रवेश कर रहे हैं.

हालांकि, सरकार कहती है कि पाकिस्तान से आने वाले पाकिस्तानी लोगों की पुष्टि करने के लिए उनका एक सिस्टम है. लेकिन इस मामले में भारत सरकार की संजीदगी सवालों के घेरे में है. भारत आने वाले लोगों को मॉनिटर करने की कोई व्यवस्था नहीं है और भारत में रहते हुए उनकी गतिविधियों पर न के बराबर निगरानी रखी जाती है. वहीं वेरिफिकेशन प्रोसेस इतना ढीला है कि कई पाकिस्तानी यात्रियों का वेरिफिकेशन उनके देश लौट जाने के बाद हुआ.

भारत ने पाकिस्तान से आने वाले लोगों को वीजा देने में कटौती तो की ही साथ ही मेडिकल वीजा के लिए कड़े कानून बनाए. जून में सरकार ने निर्णय लिया था कि पाकिस्तान के सिर्फ उन्हीं लोगों को मेडिकल वीजा जारी किया जाएगा, जिनके आवेदन पत्र को पाकिस्तान के विदेश मंत्री या उनके समकक्ष द्वारा सत्यापित किया गया होगा.

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अपने ट्विटर के जरिए पाकिस्तानियों को मेडिकल वीजा इश्यू कर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज दूतावास, पासपोर्ट और वीजा डिवीजन के ज्वाइंट सेक्रेटरी के रोल में नजर आ रही हैं. लेकिन ये कोई स्वागत योग्य कदम नहीं है. सुषमा स्वराज एक वरिष्ठ राजनेता हैं. उन्हें ये बात समझनी चाहिए थी कि पाकिस्तान जैसा देश जिसके विदेश मंत्री अपने ही नागरिकों के मेडिकल वीजा का सत्यापन करने से मना कर दे वो कभी भी भरोसे के लायक नहीं हो सकता.

पाकिस्तान के अधिकारी भारत से मेडिकल वीजा जारी कराने को अपना अधिकार समझने लगे हैं. लेकिन ये बात भी उतनी ही सच है कि भारत के मेडिकल वीजा पॉलिसी से भारत पाकिस्तान संबंधों में कोई खास फर्क नहीं पड़ा है. क्योंकि भारत में वही लोग इलाज कराने आते हैं जिनकी हैसियत पश्चिमी देशों में जाने की नहीं होती है. सीधा मतलब ये है कि अपने देश के नीति निर्धारण में इनकी कोई जगह नहीं है और न ही लोगों की राय बदलने की हैसियत. जिनके पास पैसे होते हैं और जिनकी आवाज सुनी जाती है वो इलाज के लिए यूके, यूएस या किसी और पश्चिमी देश जाते हैं. साथ ही भारत के प्रति इनकी राय भी निगेटिव होती है.

हर क्षेत्र में ऐसा ही है. पाकिस्तानी क्रिकेटर भारत में आकर आईपीएल खेलने के लिए मरे जाते हैं. लेकिन अपने देश वापस जाते ही भारत के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर देते हैं. गुलाम अली जैसे गायक जो भारत में अपनी पॉपुलैरिटी से फूले नहीं समाते और बार-बार भारत आते हैं. और पाकिस्तान वापस जाकर बयान देते हैं कि उन्हें काफिर के पैसे बहुत पसंद हैं.

भारत आने वाले पाकिस्तानी पत्रकार यहां आते हैं और शांति और सौहार्द की बात करते हैं, लेकिन अपने टीवी शो में हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकवादियों का समर्थन करते हैं. पाकिस्तान के लोगों के दोगले व्यवहार और बातों की पूरी लिस्ट बन सकती है. यहां तक कि खत्म न हो ये लिस्ट इतनी लंबी हो जाएगी. तो जब तक पाकिस्तान की नियत और काम एंटी इंडिया रहेगा तब तक कुछ भी सुधरने वाला नहीं.

मुद्दे की बात ये है कि अगर सदियों तक साथ रहने के बाद लोगों के बीच प्यार और भाईचारे की भावना नहीं रही तो अब उनसे उम्मीद करना बेकार है. 1947 के दंगे तो कोई नहीं भूला होगा, साथ ही लगातार पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों का शोषण करने की खबरें भी इस सच की तस्दीक करती हैं. तो इसलिए लोगों के आने-जाने, मिलने-जुलने से तस्वीर नहीं बदलने वाली.

(मेल टुडे से साभार)

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