मोदी का मिशन यूरोप
इन चार देशों का दौरा कूटनीतिक और आर्थिक तौर पर काफी अहम है. आर्थिक, रक्षा, विज्ञान, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, न्यूक्लियर एनर्जी, आतंकवाद आदि कई मुद्दे हैं जिसपर भारत और इन देशों के बीच सहमति बन सकती है.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज से 6 दिवसीय यूरोपीय देशों के दौरे पर रवाना हो गए हैं. प्रधानमंत्री मोदी की यूरोप यात्रा का पहला पड़ाव बर्लिन होगा, जहां वह चांसलर एंजेला मर्केल के साथ 30 मई को संयुक्त रूप से द्विवार्षिक अंतर-सरकारी विमर्श की अध्यक्षता करेंगे. इस साल जुलाई में जी-20 समिट में हिस्सा लेने के लिए मोदी फिर से जर्मनी जाएंगे. जर्मनी में इसी साल नवंबर में चुनाव हैं और उससे पहले मोदी और मर्केल की यह आखिरी मुलाकात होगी. जर्मनी दौरे के दौरान मोदी दोनों देशों के सामरिक संबंधों को नये स्तर पर ले जाने के साथ कारोबारी संबंधों को और मजबूत बनाने पर जोर देंगे. जर्मनी भारत में निवेश करने वाला एक बड़ा देश है. मोदी की ज्यादा से ज्यादा यही कोशिश रहेगी कि मेक इन इंडिया के तहत जर्मनी की बड़ी कंपनियां भारत आएं और निवेश करें.
प्रधानमंत्री मोदी 6 दिन के यूरोप दौरे पर
जर्मनी के राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद मोदी 30 मई को स्पेन के लिए रवाना होंगे. करीब 30 साल बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री स्पेन के दौरे पे जा रहा है. 1988 में राजीव गांधी स्पेन की यात्रा करने वाले भारत के आखिरी प्रधानमंत्री थे. मोदी 31 मई को स्पेन के प्रधानमंत्री के साथ द्विपक्षीय शिखर बैठक में हिस्सा लेंगे. वे स्पेन के राजा फेलिप-6 से भी मुलाकात करेंगे और भारत में निवेश तथा कारोबार को विस्तार देने की इच्छुक कंपनियों के टॉप बॉसेस से मुलाकात करेंगे. वहां से मोदी 31 मई को रूस के लिए रवाना होंगे.
1 जून को वो सेंट पीटर्सबर्ग में रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ 18वीं वार्षिक द्विपक्षीय शिखर बैठक करेंगे. अगले दिन सेंट पीटर्सबर्ग में ही आयोजित व्यापार सम्मेलन में शिरकत करेंगे. वो दो जून की शाम रूस से पेरिस के लिए रवाना होंगे और अगले दिन फ्रांस के नए राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से मुलाकात करेंगे. फ्रांस, जर्मनी और स्पेन की यात्रा के दौरान भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौता अहम मुद्दा रहेगा. भारत ने दिसंबर 2015 में पुराने द्विपक्षीय निवेश संरक्षण संधियों (बीआईटी) की जगह नया बीआईटी अपनाया, जिसमें यूरोप के कई देश शामिल हैं.
इन चार देशों का दौरा कूटनीतिक और आर्थिक तौर पर काफी अहम है. आर्थिक, रक्षा, विज्ञान, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, न्यूक्लियर एनर्जी, आतंकवाद आदि कई मुद्दे हैं जिसपर भारत और इन देशों के बीच सहमति बन सकती है. प्रधानमंत्री का दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान में यूरोपियन यूनियन और अमेरिका का रिश्ता सौहार्दपूर्ण नहीं है. ट्रम्प की आर्थिक नीतियों से भी कई यूरोपीय देश सहमत नहीं हैं. ‘वन बेल्ट वन रोड’ (ओबीओआर) फोरम के दौरान जो मसौदा तैयार हुआ था उसमें जर्मनी समेत कई अन्य यूरोपीय देशों ने अपनी सहमति नहीं जताई. भारत तो चीन में हुए इस सम्मलेन में शामिल ही नहीं हुआ था. इन परिस्थितियों में मोदी का दौरा काफी अहम है, अब भारत अपनी बातों से इन देशों को अवगत करवा सकता है. भारत कुछ वर्षो में विश्व पटल में अपनी उपस्थिति और प्रभाव को बढ़ाने में सफल हो पाया है. भारत एक बड़ा बाजार है और कोई भी देश उसको नजरअंदाज नहीं कर सकता है.
इस दौरे के दौरान मुख्यतः व्यापार, निवेश, आर्थिक समझौतों, आतंकवाद पर जोर ज्यादा रहेगा लेकिन साथ ही साथ रूस से बढ़ी दूरी को कम करना भी भारत के एजेंडे पर रहेगा. भारत द्विपक्षीय सम्बन्धों को मजबूत करने के साथ-साथ इन देशों के माध्यम से विश्व में अपनी पोजीशन को और अधिक मजबूत करना चाहता है. पीएम मोदी अब तक करीब 45 देशों की यात्रा कर चुके हैं और इसका फायदा यह हुआ है कि साल 2013-14 के करीब 36 बिलियन डॉलर के मुकाबले विदेशी निवेश भारत में बढ़कर करीब 60 बिलियन डॉलर पार कर चुका है.
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