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Updated: 01 अगस्त, 2015 02:10 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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तिरुअनंतपुरम से कोच्चि चार घंटे से ज्यादा दूर है. ग्रीन कॉरिडोर होने के बावजूद इससे कम वक्त में ये दूरी तय करना नामुमकिन सा है. मुमकिन तभी है जब सफर सड़क की जगह हवाई रास्ते से तय किया जाए.

केस1- एक ऑटोवाले की जान

कोच्चि के अस्पताल में भर्ती एक ऑटो ड्राइवर के लिए भी ये नामुमकिन जैसा ही होता. अगर मदद के हाथ लगातार आगे नहीं बढ़े होते. मदद के हाथ बढ़ते हैं, बस शर्त इतनी होती है कि एक शुरुआत हो, चाहे कहीं से भी. शुरुआत हुई. एर्नाकुलम के जिला कलेक्टर ने नेवी के पीआरओ को फोन किया और मदद मांगी. मदद भी एक ऑटो ड्राइवर के लिए. कलेक्टर चाहते थे कि नेवी एक एअर एंबुलेंस उपलब्ध करा दे तो काम बन जाए. 47 साल के ऑटो चालक मैथ्यू अचदन कोच्चि के लिसी अस्पताल में भर्ती थे. उधर, तिरुअनंतपुरम के श्रीचित्रा तिरुनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में 46 साल के नीलकंद शर्मा को डॉक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया. परिवारवालों ने शर्मा का दिल दान देने का फैसला किया. फिर तय हुआ कि ये दिल मैथ्यू को लगाया जाएगा. जैसे ही कलेक्टर ने मदद के हाथ बढ़ाए, नेवी के अफसरों ने भी इसे हाथों हाथ लिया. आपस में सलाह मशविरा के बाद कुछ अफसरों ने सीनियर अधिकारियों से संपर्क किया और फिर सिंपल एअर एंबुलेंस की जगह डॉर्नियर विमान देने का निर्णय लिया गया. ये पहला मौका रहा जब डॉर्नियर विमान का किसी आम नागरिक की खातिर मेडिकल इमरजेंसी के लिए इस्तेमाल किया गया. वैसे इसके पीछे एक खास वजह भी रही. नेवी अफसरों को मालूम था कि चॉपर से वो दूरी तय करने में 90 मिनट लग जाएंगे जबकि डॉर्नियर से ये दूरी महज 35 मिनट में कवर की जा सकती है. वाकई ऐसा तभी संभव है जब दिमाग और दिल दोनों खोलकर मदद की जाए.

मदद की मानव-श्रृंखला

ऐसा लग रहा था जैसे मैथ्यू की मदद के लिए होड़ मची हो. तिरुअनंतपुरम के डॉक्टरों को शर्मा का दिल निकालने में पांच घंटे लगे. तब तक शाम के 6.10 हो चुके थे. फिर उसे पूरे जतन से एयरपोर्ट पहुंचाया गया. 6.48 पर एयरफोर्स के डॉर्नियर विमान ने उड़ान भरी. 7.29 तक ये विमान कोच्चि के एयरफोर्स बेस पर उतर चुका था. पांच मिनट के भीतर पहले से तैयार एंबुलेंस 'दिल' लेकर अस्पताल के लिए चल पड़ी. फिर भी 10 किलोमीटर की दूरी बची हुई थी. डर ये था कि एंबुलेंस अगर शहर के जाम में फंस गई तो सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा. इसलिए इसका भी इंतजाम पहले ही कर लिया गया. शहर में पूरे रास्ते 200 पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगाई गई ताकि एक पल के लिए भी एंबुलेंस को कहीं रुकना न पड़े. पुलिसवालों ने भी पूरी इमानदारी और मुस्तैदी से ड्यूटी निभाई. शायद इसीलिए 10 किमी के इस शहरी सफर में महज 8 मिनट और 32 सेकंड लगे. 8 बजे ट्रांसप्लांट के लिए ऑपरेशन भी शुरू हो गया - और सफल रहा. ये मुमकिन इसलिए हो पाया कि मदद की मानव श्रृंखला बन चुकी थी.

ये थी केरल की एक छोटी सी कहानी, अब दिल्ली चलते हैं.

केस 2- दिल्ली इतनी पत्थरदिल क्यों

दो दिन बाद विनय जिंदल की बहन की शादी होने वाली थी. विनय अपनी बीमार मां के लिए दवा लेने निकले थे. दिल्ली के विवेक विहार इलाके में कस्तूरबा नगर रेड लाइट पर एक कार ने विनय की स्कूटी को धक्का दे दिया. इस टक्कर के कारण विनय करीब पांच मीटर दूर जा गिरे. उस कार ने एक और स्कूटी को भी टक्कर मारी और भाग गई.उस वक्त रात के 11.30 बज रहे थे. जिस जगह विनय गिरे थे उसके इर्द गिर्द से न जाने कितने बाइक, कार सवार और दूसरे मुसाफिर गुजरे, लेकिन किसी ने परवाह नहीं की. खून से लथपथ विनय काफी देर तक कराहते रहे होंगे. जब विनय तक मदद के हाथ पहुंचे, काफी देर हो चुकी थी. खून इतना बह गया कि विनय की जान बचाई नहीं जा सकी. हादसे की जगह से अस्पताल की दूरी 15-20 मिनट से ज्यादा नहीं थी. अगर वक्त रहते विनय को अस्पताल पहुंचा दिया गया होता तो विनय को बचाया जा सकता था. काश! ऐसा हो पाता, लेकिन नहीं हो सका. लोगों ने भले ही अपनी जिम्मेदारी न समझी हो, लेकिन परिवारवालों ने विनय की इच्छा के अनुसार उनकी आंखें दान कर अपना फर्ज जरूर निभाया.

क्या ऐसे ही भाईचारा कायम होगाएक दिन. दिल्ली में दिन दहाड़े सरेआम मीनाक्षी को चाकू से हमला कर मौत के घाट उतार दिया गया. हर कोई तमाशबीन बना रहा. जब जान बचाने के लिए उसने भाग कर छुपने की कोशिश की तो हमलावर मीनाक्षी को घर से बाहर घसीट लाए और फिर वॉर किया. "इंसान का इंसान से हो भाईचारा..." शपथ के ठीक बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यही गीत गाया था. केजरीवाल ने पहले ही कह दिया कि गाता बहुत बुरा हूं, फिर भी रामलीला मैदान में तालियां थमने का नाम नहीं ले रही थीं. ज्यादा दिन नहीं बीते थे कि एक रैली में एक किसान ने फांसी लगा ली. वो रैली भी केजरीवाल की ही थी. केजरीवाल की पार्टी की ओर से कहा गया कि पेड़ पर जो कुछ भी हो रहा था वो दूर होने के कारण केजरीवाल को दिखाई नहीं दिया. शुक्र है मीनाक्षी की आवाज खामोश होने के बाद ही सही दिल्ली सरकार तक पहुंच गई. मीनाक्षी के मामले में केजरीवाल की अपील बड़ी ही मार्मिक है - और मोटिवेशनल भी. लेकिन विनय की चीख न तो पास से गुजरने वालों को सुनाई दी और न ही सूबे की सरकार तक.

ऐसा नहीं है कि विनय का केस ऐसा पहला केस है. सड़क दुर्घटनाओं को लेकर तो सारे एक्सपर्ट मानते हैं कि हादसों के शिकार लोगों को अगर समय रहते इलाज मुहैया करा दी जाए तो बहुत सी जानें बचाई जा सकती हैं.

लेकिन, क्या ऐसे लोगों की मदद के लिए कभी कोई अपील की गई है?क्या इसलिए कि इसके लिए दिल्ली पुलिस को सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता था?क्या इसलिए कि दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के दायरे में लाने की डिमांड के लिए ये सटीक केस नहीं था? तो क्या विनय जैसे लोगों की जान इसलिए नहीं बचाई जा सकती क्योंकि दिल्ली में कोई और जंग चल रही है. क्या इसलिए कि दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के अंडर में नहीं बल्कि केंद्र सरकार को रिपोर्ट करती है?

ऐसे में तो भाईचारा कायम होने से रहा.

खैर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विनय के मामले को संज्ञान में लिया है. मन की बात में मोदी ने संकेत दिया है कि विनय जैसे हादसे के शिकार लोगों को हर मदद मिल सके जल्द ही ये सुनिश्चित किया जाएगा.

देश के अतिमहत्वपूर्ण ओहदों में तीन नाम चर्चित रहे हैं. एक पीएम, दूसरा सीएम और तीसरा डीएम. केरल और दिल्ली, दोनों मामलों में भी इन तीनों की भूमिका रही. सभी ने जैसा उचित समझा फैसला भी लिया.

हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एक पत्र लिखा था जिसकी एक लाइन खास तौर पर चर्चित रही, 'प्रधानमंत्री जी, आप जीते, हम हार गए.' उस दिन ये कटाक्ष लग रह था, धीरे धीरे वो बात इकबालिया बयान जैसा फील देने लगी है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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