पीएम मोदी के 'मेगा इवेंट्स' ने विपक्षी दलों को रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण कर विपक्षी राजनीतिक दलों की लाइन-लेंथ बिगाड़ दी है. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की भाषा गड़बड़ा गई है. तो, कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को हिंदू और हिंदुत्ववादी में फर्क बताना पड़ रहा है.
-
Total Shares
वाराणसी पहुंचने के बाद सबसे पहले काल भैरव मंदिर में दर्शन, ललिता घाट में गंगा स्नान, बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनाने वाले कर्मचारियों के साथ भोजन, दशाश्वमेद्य घाट पर गंगा आरती, लाइट एंड साउंड शो के जरिये आसमान में सतरंगी छटा बिखेरती आतिशबाजी के बाद भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उप मुख्यमंत्रियों से उनके कामकाज को लेकर बातचीत. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी किसी कार्यक्रम में पहुंचते हैं, तो वह अपनेआप ही 'मेगा इवेंट' में तब्दील हो जाता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो वाराणसी में नरेंद्र मोदी का 30 घंटे का प्रवास 'भव्य काशी, दिव्य काशी' के सपने को साकार करता दिखा. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण से लेकर स्वर्वेद महामंदिर के कार्यक्रम शामिल होने तक सबकी नजरें पीएम मोदी पर ही टिकी रहीं.
केवल उत्तर प्रदेश की ही बात की जाए, तो इससे पहले पूर्वांचल एक्सप्रेस वे पर भारतीय वायु सेना के 'हरक्यूलिस' विमान से उतरे पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम को भाजपा और सूबे की योगी आदित्यनाथ सरकार ने मेगा इवेंट बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी. भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों का पूर्वांचल एक्सप्रेस पर किए गए 'टच एंड गो' से लेकर एयर शो तक पीएम मोदी के मेगा इवेंट का खुमार लोगों के सिर चढ़कर बोला. वहीं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जेवर एयरपोर्ट के शिलान्यास के समय भी कुछ ऐसा ही माहौल नजर आया था. नरेंद्र मोदी के सभी कार्यक्रमों पर नजर डालेंगे, तो साफ हो जाता है कि भाजपा विकास के साथ-साथ धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के मुद्दों, मंदिरों और विरासत को लेकर आगे बढ़ रही है.
प्रतीकों के महत्व को समझते हुए भाजपा और नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा वैचारिक प्रयोग किया है.
प्रतीकों के महत्व को समझते हुए भाजपा और नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा वैचारिक प्रयोग किया है. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सोमनाथ मंदिर को लेकर अप्रोच ने जो परंपरा डाली. वो 2014 से पहले तक कांग्रेस नेताओं की नई पीढ़ियों तक कायम रही. दरअसल, सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा गुजरात के सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार को हिंदूवाद के उभार के तौर पर देखने के बाद जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को भी इस कार्यक्रम में न जाने की सलाह दी थी. लेकिन, नरेंद्र मोदी और भाजपा ने इस जगह पर खुद को करेक्ट करते हुए बुद्ध सर्किट, रामायण सर्किट, केदारनाथ, अयोध्या जैसे धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों के कायाकल्प को महत्व दिया. पिछली तमाम सरकारों में उपेक्षा के शिकार रहे मंदिरों और धार्मिक स्थलों की विकास योजनाओं से नरेंद्र मोदी ने बहुसंख्यक हिंदू आबादी की भावनाओं को साधना बहुत पहले से ही शुरू कर दिया था.
इस बात में कोई दो राय नही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ये तमाम मेगा इवेंट्स आगामी चुनावों में प्रचार का एक हिस्सा हैं. लेकिन, ये भाजपा की इस सोची-समझी रणनीति का ही असर है कि विपक्षी राजनीतिक दलों (जो अब तक सेकुलर राजनीति के बड़े पक्षधर माने जाते थे) हिंदू धर्म की पिच पर सियासी बैटिंग करने को मजबूर हो गए हैं. हिंदू मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर भाजपा का राज्यों के चुनावों में बेहतर प्रदर्शन विपक्षी पार्टियों के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है. भाजपा विकास और हिंदुत्व को एकसाथ लेकर बढ़ रही है और पीएम नरेंद्र मोदी के मेगा इवेंट्स इसमें अलग ही तड़का लगाए दे रहे हैं. स्थिति कुछ ऐसी हो गई है कि पीएम मोदी के 'मेगा इवेंट्स' ने विपक्षी दलों को अपनी राजनीति बदलने पर मजबूर कर दिया.
अखिलेश यादव के दावे ही सपा के लिए सिरदर्द
बात काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की हो या जेवर एयरपोर्ट की या पूर्वांचल एक्सप्रेस की इन तमाम परियोजनाओं के पीछे एक बात कॉमन है. और, वो है सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का दावा. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण से पहले अखिलेश यादव ने दावा किया कि यह परियोजना समाजवादी पार्टी की सरकार के कार्यकाल में मंजूर की गई थी. पूर्वांचल एक्सप्रेस और जेवर एयरपोर्ट को लेकर भी समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के दावे कुछ ऐसे ही थे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अखिलेश यादव के दावे कुछ यूं है कि जो कुछ भाजपा कर रही है, सब सपा सरकार की देन है. वैसे, यहां सबसे बड़ी बात ये है कि अखिलेश यादव अपने इन दावों में अब खुलकर हिंदुत्व के समर्थन में आते दिखाई पड़ रहे हैं. दरअसल, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की परियोजना को लेकर अखिलेश यादव ने दावा ऐसा बताने का प्रयास था कि इस प्रोजेक्ट की शुरुआत किसी ने की थी, तो वह सपा सरकार ही थी.
खैर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अखिलेश यादव के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को लेकर किए गए दावे का अपनी ही शैली में जवाब देते हुए, उनके इस दावे का ही 'फैक्ट चेक' करा दिया. योगी सरकार के जनसंपर्क विभाग ने एक ट्वीट के जरिये काशी विश्वनाथ धाम के विकास को लेकर पूर्व की सपा सरकार के दावे को ही गलत साबित कर दिया. इससे पहले सरयू नहर परियोजना को लेकर किए गए अखिलेश यादव के दावे का भी ऐसा ही 'फैक्ट चेक' किया जा चुका है. अखिलेश यादव के चुनावी कैंपेन के थीम सॉन्ग 'मुरलीधर बदल कर वेश आ रहे हैं, अखिलेश आ रहे हैं' ने ही तय कर दिया था कि समाजवादी पार्टी हिंदुत्व की पिच पर नया दांव चल दिया था. लेकिन, सीएम योगी आदित्यनाथ ने कृष्णभक्तों पर पुष्पवर्षा और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने 'मथुरा की तैयारी है' के सहारे समाजवादी पार्टी के मुखिया की लाइन-लेंथ ही बिगाड़ दी है.
“आखिरी समय में वहीं रहा जाता है, बनारस में”, अखिलेश यादव का यह बयान शर्मनाक है।आज जब विश्वनाथ धाम के संवर्धन का इतना विशिष्ट काम हुआ, तब प्रधानमंत्री के लिए मृत्यु की इच्छा जताना उनकी विकृत मानसिकता को दर्शाता है।चुनाव में दिख रही हार से बौखलाए अखिलेश अपना संतुलन खो बैठे हैं। pic.twitter.com/56efCpG93O
— Amit Malviya (@amitmalviya) December 13, 2021
नरेंद्र मोदी के तमाम मेगा इवेंट्स से चकराए अखिलेश यादव काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के मामले पर इस कदर अलग-थलग पड़ते दिखाई दे रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उनकी भाषा ही बिगड़ गई है. अखिलेश यादव से काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण पर पीएम मोदी के वाराणसी प्रवास को लेकर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि 'एक महीना, दो महीना, तीन महीने वही रहें. बहुत अच्छी बात है. वह जगह रहने वाली है. आखिरी समय में वही रहा जाता है बनारस में.' वैसे, विकास योजनाओं के सहारे ही सही, लेकिन समाजवादी पार्टी के मुखिया अब भाजपा और नरेंद्र मोदी की ओर से सजाई गई हिंदुत्व की पिच पर बैटिंग करने उतर आए हैं. इसे भाजपा की एक बड़ी जीत कहा जा सकता है. क्योंकि, कुछ समय पहले तक एमवाई यानी मुस्लिम+यादव समीकरण के सहारे सत्ता पाने वाले अखिलेश अब एमवाई समीकरण में बदलाव कर इसे महिला+युवा का समीकरण बता रहे हैं.
राहुल गांधी को हिंदू और हिंदुत्व में बताना पड़ रहा है फर्क
पीएम नरेंद्र मोदी के मंदिरों, सांस्कृतिक विरासतों को सहेजने की रणनीति का असर एक दिन पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी की 'महंगाई हटाओ रैली' में भी दिखाई दिया. महंगाई को लेकर की गई रैली में राहुल गांधी ने 35 बार हिंदू और 25 बार हिंदुत्ववादी शब्द का इस्तेमाल किया. कहने की जरूरत नहीं है कि राहुल गांधी के निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहे. राहुल गांधी ने खुद को महात्मा गांधी वाला हिंदू और भाजपा को गोडसे जैसा हिंदुत्ववादी बताने की कोशिश की. सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर धीरे से कदम बढ़ा रही कांग्रेस अब हिंदू और हिंदुत्व शब्द के बीच का अंतर लोगों को बताने की कोशिश में लग गई है. हालांकि, हिंदू और हिंदुत्व को लेकर लोगों की आम धारणा यही है कि ये दोनों शब्द समान अर्थों वाले हैं. राहुल गांधी 2024 में हिंदुत्ववादियों नहीं, बल्कि हिंदुओं की सरकार लाने की बात कर रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो राहुल गांधी अब देश में असली हिंदू और नकली हिंदू का नैरेटिव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. जो कांग्रेस के लिए खतरा बढ़ाने वाला हो सकता है.
अरविंद केजरीवाल का भगवान राम के प्रति उमड़ा प्रेम
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान एक कार्यक्रम में अरविंद केजरीवाल ने अपनी नानी के विचारों का हवाला देते हुए कहा था कि मेरी नानी ने कहा था कि मेरा राम किसी की मस्जिद तोड़कर बनाए गए मंदिर में नहीं रह सकता है. लेकिन, दिल्ली के विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल ने खुद को हनुमान का भक्त साबित किया. इस क्रोनोलॉजी को समझें, तो हनुमान भक्त होने के साथ ही अरविंद केजरीवाल अपनेआप रामभक्त भी हो गए. कुछ समय पहले ही यूपी चुनाव 2022 के मद्देनजर अयोध्या में रामलला के दर्शन करने के लिए पहुंचे अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में दिल्ली के बुजुर्गों को सीएम तीर्थयात्रा योजना के तहत राम मंदिर के दर्शन करने के लिए भी भेजा था.
बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी बदला चुनावी नारा
बसपा सुप्रीमो मायावती उत्तर प्रदेश में दलित मतदाताओं और मुस्लिम वोटों के गठजोड़ के सहारे सत्ता सुख पाती रही हैं. लेकिन, 2014 के बाद बसपा का ग्राफ लगातार नीचे आया है. जिसकी वजह से मायावती को भी अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर होना पड़ा है. 'तिलक, तराजू और तलवार...' के नारे से किनारा करते हुए 'हाथी नहीं गणेश है...' तक पहुंचने में बसपा चीफ मायावती ने पार्टी में 360 डिग्री का बदलाव किया है. सतीश चंद्र मिश्रा को पार्टी के ब्राह्मण चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट कर मायावती ने कसम खाई है कि अब वह पार्कों और हाथियों की मूर्तियां नहीं बनाएंगी. उनका पूरा ध्यान सूबे के विकास पर केंद्रित होगा. मायावती भी सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर उतर चुकी हैं और बसपा को सर्वधर्म स्वीकार्य पार्टी साबित करने की कोशिश में जुटी हैं.
ममता बनर्जी की टीएमसी का नया नामकरण
तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी इन दिनों विपक्षी दलों के नेतृत्व का सपना लिए हुए कांग्रेस को दूसरे पायदान पर ढकेलने की कोशिश कर रही है. यही वजह है कि ममता बनर्जी ने अब तृणमूल कांग्रेस के विस्तार की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया है. हाल ही में गोवा पहुंची ममता बनर्जी ने ईसाई बहुल इलाके में एक रैली के दौरान कहा कि वो हर साल चर्च जाती हैं. इतना ही नहीं, तृणमूल कांग्रेस यानी टीएमसी का ममता बनर्जी ने 'टेंपल (मंदिर), मॉस्क (मस्जिद), चर्च' के तौर पर नया नामकरण कर दिया है.
आपकी राय