राजनीति, परिवारवाद मगर देश बर्बाद!
यादव परिवार से पहले गांधी परिवार, शिवसेना, इंडियन नेशनल लोकदल, अकाली दल और द्रमुक में परिवार के सदस्यों के बीच राजनीतिक वर्चस्व को लेकर समय-समय पर कलह छिड़ी, फलस्वरूप परिवारों में विभाजन हुआ.
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यादव परिवार
मुलायम सिंह के परिवार में तेज होता सत्ता संघर्ष परिवारवाद का नतीजा है. मुलायम परिवार अकेला कोई अपवाद नहीं है. इससे पहले भी परिवारवाद ने कई परिवारों को बांटा है मुलायम परिवार में भी यही हो रहा है, हाल फिलहाल के लिए शायद यह तूफान शांत हो भी जाए लेकिन विभाजन का बीज पड़ चुका है. बीज पौधे का रूप कब धारण करेगा यह तो समय ही बताएगा? वर्तमान में मुलायम सिंह यादव की तीसरी पीढ़ी राजनीति में है. परिवार के २० सदस्य राजनीति में हैं और यह देश का सबसे बड़ा राजनैतिक परिवार हैं.
यादव परिवार से पहले गांधी परिवार, शिवसेना, इंडियन नेशनल लोकदल, अकाली दल और द्रमुक में परिवार के सदस्यों के बीच राजनीतिक वर्चस्व को लेकर समय-समय पर कलह छिड़ी, फलस्वरूप परिवारों में विभाजन हुआ. वंशवाद के नाम पर गांधी परिवार को सबसे ज्यादा कोसा जाता रहा है, जबकि यह सच है कि दूसरे दलों में परिवारवाद- मुलायमसिंह परिवार-लालू यादव, करूणानिधि परिवार, शरद पवार का परिवार, प्रकाश सिंह बादल परिवार, राम विलास पासवान का परिवार, ठाकरे परिवार, इन परिवारों में कुछ ज्यादा ही फैल गया है. बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने जिस तरह शिवसेना से अलग होकर अपना अलग दल बनाया उसी तरह का काम अकाली दल से अलग होकर मनप्रीत बादल ने भी किया. एक समय एनटी रामाराव की ओर से स्थापित तेलुगु देशम में भी ऐसा हुआ था.
भारत में परिवारवाद की राजनीति के अहम चेहरे |
इन्होंने झेला है परिवारवाद का दंश
गांधी परिवार
गांधी परिवार में झगड़ों की शुरुआत 1974 में सोनिया गांधी और मेनका गांधी के आने के बाद शुरू हुई. 1980 में संजय गांधी की मृत्यु के बाद पारिवारिक लड़ाई बढ़ती ही चली गई और मार्च 1982 में अंततोगत्वा मेनका गांधी ने इंदिरा गांधी परिवार को छोड़ दिया. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या की बाद लोकसभा चुनाव में मेनका अपने जेठ के खिलाफ अमेठी से खड़ी हो गईं. तब से अब तक परिवार में दरार नहीं भर पाई है. सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष हैं, तो मेनका मोदी सरकार में मंत्री पद पर हैं, और उनका बेटा वरुण गांधी भी बीजेपी सांसद है.
ठाकरे परिवार
शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने चार दशक तक मुंबई पर राज किया, उनके एक इशारे पर पूरा मुंबई शहर थम जाता था. दरअसल जीवन के अंतिम दिनों मै वे भी पुत्रमोह से ग्रसित हो गए, नतीजा पार्टी का विभाजन. ऐसा कहा जाता है कि बाल ठाकरे की असली विरासत के हकदार उनके भतीजे राज ठाकरे थे, लेकिन उन्होंने शिवसेना की जिम्मेदारी अपने सबसे छोटे बेटे उद्धव ठाकरे को दे दी. बाल ठाकरे का यह कदम अप्रत्याशित था. इसके बाद 2005 में राज ठाकरे ने शिवसेना से इस्तीफा दे दिया और अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) बना ली. राज ठाकरे का काम करने का तरीका और उनकी भाषण शैली अपने चाचा बाल ठाकरे जैसी है, जबकि उद्धव शांत स्वभाव के हैं. हाल ही में बाल ठाकरे के वारिस उद्धव ठाकरे ने मातोश्री में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे के साथ लंच पर बातचीत की. चचेरे भाई के साथ शिवसेना प्रमुख की बैठक घंटे भर चली. माना जा रहा है कि आने वाले बीएमसी चुनावों में इस मुलाकात का रंग और उभर कर सामने आएगा.
यहां भी जारी है पारिवारिक क्लेश
करुणानिधि परिवार
पिछले कुछ सालों से करूणानिधि परिवार भी परिवारवाद के अवसाद से गुजर रहा है. झगड़ा करुणानिधि का राजनीतिक वारिस कौन हो इस को लेकर है. करुणानिधि और दयालु अम्मल के बेटे अलागिरि और स्टालिन के बीच तलवारें इस बात को लेकर खिंचीं हैं कि आने वाले दिनों में वही अपने पिता की गद्दी संभालेंगे. सत्ता की दूसरी डोर है रजाती अम्मल की बेटी कनिमोड़ी के पास. दयानिधि मारन डीएमके की राजनीति की तीसरी धुरी हैं. वो करुणानिधि के पोते और मुरासोली मारन के बेटे हैं. खानदान में सत्ता का संघर्ष इस कदर बढ़ गया है कि पिछले विधान सभा चुनावों में करूणानिधि ने अपने को ही मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करना पड़ा. करुणानिधि की मुसीबत यह है कि ना ही वो बेटी का त्याग कर सकते हैं और ना ही दोनों बेटों का.
बादल कुनबा
पंजाब की राजनीति में बादल कुनबा छाया हुआ है. प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री हैं, तो बेटा उपमुख्यमंत्री, बहू केंद्र में मंत्री है. दामाद राज्य मंत्री, बेटे का साला मंत्री है. देश में इतने मंत्री पद वाला दूसरा परिवार फिलहाल नहीं है. बादल कुनबे में भी जीजा-साले के बीच पिछले कुछ समय से तकरार चल रही है. आलम यह है कि मुख्यमंत्री बादल ने उन्हें पद छोड़ने के धमकी तक दे दी थी, विक्रम सिंह मजीठिया पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल के साले और केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर के भाई हैं.
एक अध्ययन की मुताबिक
न्यूयार्क यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस की प्रोफेसर डॉ कंचन चंद्रा ने मौजूदा लोकसभा के सदस्यों का अध्ययन किया. इसके मुताबिक, मौजूदा लोकसभा में 22 फीसदी सदस्य राजनीतिक परिवारों से हैं. इनमें भाजपा के 15 फीसदी, कांग्रेस के 48 फीसदी, समाजवादी पार्टी के 100 फीसदी लोकसभा सदस्य परिवादवाद से जुड़े हुए हैं. वर्तमान लोक सभा में 35 राजनीतिक दल संसद में हैं, जिनमें से 13 के लीडर पारिवारिक उत्तराधिकारी हैं. उपरोक्त आंकड़ों से सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि राजनीतिक परिवार के सदस्यों और एक आम नागरिक के लोकसभा या विधानसभा में चुन कर जाने का मौका मिल पाने की संभाव्यता में कितना अंतर हो सकता है. वह भी खास कर तब, जब इन 35 राजनीतिक दलों में 24 दल परिवार नियंत्रित हों.
पैट्रिक फ्रेंच ने 2009 की स्टडी
पैट्रिक फ्रेंच की स्टडी के मुताबिक, 2009 की लोकसभा में 29 फीसदी संसद सदस्य राजनीतिक परिवार से जुड़े हुए थे. करीब 70 फीसदी महिला सांसद राजनीतिक परिवारों की थीं. यही नहीं, इनमें से 27 लोकसभा सदस्य राजनीतिक परिवारों की तीसरी या चौथी पीढ़ी के थे.
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