मुलायम ने मोदी की तारीफ करके आखिर किसको आइना दिखाया
मुलायम जैसा अनुभवी नेता जब पीएम मोदी की दोबारा पीएम बनने की कामना करे तो उस बयान की गंभीरता को समझना जरूरी हो जाता है. क्योंकि इसका असर राष्ट्रीय स्तर पर तो है ही, यूपी के स्तर पर ज्यादा है.
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16वीं लोकसभा की आखिरी बैठक में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने अपने भाषण में कहा कि उनकी कामना है कि नरेंद्र मोदी एक बार फिर से देश के प्रधानमंत्री बनें. नेताजी के इस बयान से जहां बीजेपी की बांछें खिली हुई हैं, वहीं विपक्ष को मानो सांप सूंघ गया है. सोशल मीडिया पर मुलायम सिंह का यह बयान बड़ी तेजी से वायरल भी हो रहा है.
नेता जी यही नहीं रूके उन्होंने लोकसभा में अपनी पार्टी और विपक्ष की ओर इशारा करते हुए कहा कि हम लोग तो इतना बहुमत नहीं ला सकते हैं इसलिए आप (नरेंद्र मोदी) फिर से देश के प्रधानमंत्री बनें. कांग्रेस की टॉप लीडर सोनिया गांधी के बगल में खड़े होकर जब मुलायम सिंह ये बयान दे रहे थे, उस वक्त सोनिया गांधी की भाव भंगिमा देखने लायक थी.
मुलायम सिंह यादव ने अपने भाषण में कहा कि उनकी कामना है कि नरेंद्र मोदी एक बार फिर से देश के प्रधानमंत्री बनें
लोकसभा चुनाव से पहले मुलायम सिंह के बयान के गहरे राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं. अहम सवाल यह है कि क्या मुलायम सिंह ने बीजेपी और प्रधानमंत्री के प्रति सद्भावना दिखाते हुये ये बयान दिया है? क्या मुलायम सिंह ने अपने बेटे अखिलेश और महागठबंधन में शामिल दलों को असलियत का आइना दिखाया है? सवाल यह भी है कि मुलायम सिंह के बयान का सपा—बसपा गठबंधन और यूपी की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा ? क्या मुलायम सिंह ने लोकसभा चुनाव नतीजों को भांपते हुए ये बयान दिया है? सवाल यह भी है कि क्या बेटे की राजनीति और व्यवहार से क्षुब्ध और खुद को अपेक्षित महसूस कर रहे एक पिता का दर्द मुलायम सिंह की जुबान से निकला है?
मुलायम सिंह की गिनती चतुर राजनीतिज्ञों में होती है. उनके मुंह से कोई बात अनायास नहीं निकलती. समाजवादी पार्टी और परिवार में कई महीनों तक मची उठापटक और खींचतान में अखिलेश और शिवपाल ने मुलायम सिंह से अपने मन की बात कहलवाने की तमाम कोशिशें की, लेकिन नेताजी ने वही बोला जो उन्होंने बोलना चाहा. समाजवादी पार्टी दो हिस्सो में बंट चुकी है. एक तरफ लख्ते जिगर बेटा है तो दूसरी ओर सगा छोटा भाई. आज अखिलेश और शिवपाल की राजनीति दो अलग रास्तों पर चल रही है, लेकिन मुलायम सिंह की राजनीति और व्यक्तित्व का ऐसा जलवा है कि दोनों गुट मुलायम सिंह को ही अपना नेता मानते हैं.
परिवार और पार्टी में मची खींचतान में मुलायम सिंह सक्रिय राजनीति से दूरी बनायें हुये हैं. पार्टी में उनकी भूमिका संरक्षक की है. मुलायम सिंह की छत्रछाया में फली—फूली सपा पर आज अखिलेश का एकछत्र राज कायम है. अखिलेश ने अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिये मुलायम सिंह की मर्जी के खिलाफ जाकर कई फैसले लिये हैं. सूत्र बतातें हैं कि जिस वक्त अखिलेश ने बसपा की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, उस वक्त नेताजी अंदर ही अंदर खुश नहीं थे, लेकिन नेताजी जी जानते थे कि आज सपा का 'बॉस' अखिलेश है. उन्होंने इस दोस्ती पर कभी अपनी जुबान नहीं खोली. हां शिवपाल सिंह यादव ने कई बार ये बयान दिया है कि ''मायावती को कभी हमने और नेताजी ने अपनी बहन नहीं बनाया तो वह अखिलेश यादव की बुआ कैसे हुई.''
मुलायम जैसा अनुभवी नेता जब पीएम मोदी की दोबारा पीएम बनने की कामना करे तो उस बयान की गंभीरता को समझना जरूरी हो जाता है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि मुलायम ने अपनी बुद्धि, राजनीतिक कौशल और चतुराई के बलबूते देश की राजनीति में अपनी खास पहचान और जगह बनाई है. वर्तमान राजनीति का इतिहास मुलायम सिंह यादव के बिना अधूरा ही माना जाएगा. असल में मुलायम बखूबी जानते हैं कि विपक्ष और महागठबंधन में शामिल नेता भले ही मोदी को घेरने के सारे हथकण्डे अपना रहे हैं, लेकिन मोदी के सामने विपक्ष का कद बौना है. विपक्ष की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तमाम दल मिलकर अकेले मोदी को हटाने के लिये जोर लगा रहे हैं. ऐसे में विपक्ष बहुत दम लगाकर, जोड़-तोड़ और काफी खींचतान के बाद ही सरकार बनाने की पोजीशन में आ सकता है. इसलिए मुलायम सिंह ने भविष्य की राजनीति और गठबंधन को ध्यान में रखते हुये अपना पासा फेंक दिया है.
आज मुलायम सिंह की राजनीति ढलान पर है. उनके सामने बेटे अखिलेश का डांवाडोल राजनीतिक कैरियर है तो वहीं दूसरे बेटे की चिंताएं भी कम नहीं हैं. जिस भाई ने उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर पार्टी को खड़ा करने का काम किया, आज वो विरोध में सामने खड़ा है. शिवपाल के प्रति मुलायम का प्रेम जगजाहिर है. बेटे अखिलेश के अलावा चचेरे भाई रामोपाल और कई भतीजों के राजनीतिक कैरियर की जिम्मेदारी उनके बूढ़े कंधों पर सवार है. आय से अधिक संपत्ति के मामले उनके सिर का बोझ हैं. मुलायम ये भी जानते हैं कि राजनीति में न दोस्ती स्थायी होती है और न दुश्मनी. यादव कुनबे के मुखिया और एक अनुभवी राजनीतिज्ञ होने के नाते आज मुलायम सिंह जो कुछ भी बोल रहे है, उसके गहरे अर्थ और निहितार्थ हैं.
मुलायम सिंह के बयान का बीजेपी और विपक्ष अपने-अपने हिसाब और सुविधा के अनुसार मतलब निकालेंगे. लेकिन एक बात पूरी तरह साफ है कि मुलायम सिंह अति अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं, उनके मुंह से हल्के या सिर्फ सुर्खियां बटोरने वाले बयान की उम्मीद नहीं की जा सकती.
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