मुस्लिम तुष्टिकरण : ओवैसी और ममता के मुकाबले कांग्रेस अब भी आगे है
लोकसभा के 145 सीटों पर लगभग 11 से 20 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय की आबादी है, लिहाजा हरेक दल ने अपने-अपने तरीके से मुस्लिम वोट को अपने पक्ष में करने के लिए ज़ोर आज़माइश शुरू कर दी है.
-
Total Shares
हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव की अभी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है लेकिन देश की विपक्षी पार्टियां अपने-अपने हिसाब से इसकी तैयारियों में जुट गई हैं. और हर चुनावों की तरह इस बार भी इन पार्टियों ने 'मुस्लिम तुष्टिकरण' का कार्ड भी खेलना शुरू कर दिया है. आखिर हो भी क्यों ना, लोकसभा के 145 सीटों पर लगभग 11 से 20 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय की आबादी जो है.
बात करते हैं ऐसे ही कुछ नेताओं की जो मुस्लिम वोट अपने पक्ष में करने के लिए सियासी दांव चल चुके हैं.
लोकसभा के 145 सीटों पर लगभग 11 से 20 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय की आबादी है
असदुद्दीन ओवैसी:
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन यानी AIMIM के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी महाराष्ट्र के बीड में मुसलमानों से अपील करते हुए कहा कि 'मैं आपके दरवाजे पर यह कहने आया हूं कि अगर आप धर्मनिरपेक्षता को बरकरार रखना चाहते हैं तो अपने अधिकारों के लिए लड़िए. राजनीतिक ताकत बढ़ाइए और अपने उम्मीदवारों को जिताने में मदद कीजिए'. लेकिन सवाल ये कि क्या कोई राजनीतिक पार्टी किसी धर्म विशेष से किसी एक पार्टी को वोट देने की अपील कर सकती है?
सैफुद्दीन सोज:
अभी हाल में ही वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सैफुद्दीन सोज पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के एक बयान का समर्थन करते हुए कहा था कि, 'मैं उनकी बातों से इत्तेफाक रखता हूं कि कश्मीर में रहने वालों को अगर मौका मिले तो वे भारत या पाकिस्तान का हिस्सा बनने की बजाय आजाद होना ज्यादा पंसद करेंगे.' इनका वक़्तव्य भी 'मुस्लिम तुष्टिकरण' की तरफ इशारे करते हैं.
दिग्विजय सिंह:
वरिष्ठ कोंग्रेसी नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने हिंदू आतंकवाद पर झाबुआ में बयान देते हुए कहा था कि 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) हिंसा और नफरत फैलाता है'. 'यह विचारधारा नफरत फैलाती है, नफरत से हिंसा होती है और वहीं से आतंकवाद की शुरुआत होती है'. 'अभियुक्त जो मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस और मक्का मस्जिद बॉम्ब ब्लास्ट में शामिल थे, वे संघ की विचारधारा से प्रेरित थे. हालांकि इससे पहले भी वो 'भगवा आतंकवाद' जैसे शब्द का इस्तेमाल कर चुके हैं.
ममता बनर्जी:
पिछले हफ्ते पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो भाजपा को आतंकवादी संगठन तक घोषित कर डाला. न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक ममता बनर्जी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं-
We are not a militant organisation like the BJP. They are creating fights not only among Christians, Muslims but also among Hindus: West Bengal CM Mamata Banerjee pic.twitter.com/UQgjsHnhbp
— ANI (@ANI) June 21, 2018
वेस्ट बंगाल में मुस्लिम वोट पारम्परिक रूप से लेफ्ट पार्टियों का हुआ करता था जो क्रमशः तृणमूल की तरफ आ गया. मुस्लिम वोटों के दम पर 2014 के लोकसभा के चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस वेस्ट बंगाल के 42 में से 34 सीटें जीती थी. ज़ाहिर है ममता बनर्जी के लिए मुस्लिमों के प्रति ममता होना वाज़िब है.
राहुल गांधी:
राहुल गांधी ने 6 मार्च 2014 को महाराष्ट्र के भिवंडी में एक चुनावी रैली में कहा था कि 'गांधी जी' को मारा इन्होंने. आरएसएस के लोगों ने गांधी जी को गोली मारी और आज उनके लोग गांधी जी की बात करते हैं.' लेकिन फिर से 12 जून, 2018 को राहुल गांधी भिवंडी की अदालत में हाज़िर हुए और कहा कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है और उन्होंने कहा कि मानहानि के मुक़दमे का सामना करेंगे, यह विचारधारा की लड़ाई है और वे पीछे नहीं हटेंगे. मतलब साफ़ है. राहुल गांधी इस मुद्दे को जीवित रखना चाहते हैं ताकि मुस्लिमों का वोट आने वाले चुनावों में कांग्रेस के पक्ष में लाया जा सके.
गुलाम नबी आजाद:
राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि जम्मू-कश्मीर में केंद्र सरकार की दमनकारी नीति का सबसे ज्यादा नुकसान आम जनता को भुगतना पड़ता है. चार आतंकियों को मारने के लिए 20 नागरिकों को मार दिया जाता है. जम्मू कश्मीर में 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी तथा विधान सभा के चुनाव में भी वह चौथे नम्बर पर चली गई थी. ऐसे में कांग्रेस का 'मुस्लिम तुष्टिकरण' का कार्ड खेलना इसकी मजबूरियों को दर्शाता है.
खैर, 'मुस्लिम तुष्टिकरण' का कार्ड इन दलों के लिए भाजपा के खिलाफ कितना असरदार होगा ये तो आगामी लोकसभा के चुनावों के बाद ही पता चल पाएगा लेकिन फिलहाल हरेक दल ने अपने-अपने तरीके से मुस्लिम वोट को अपने पक्ष में करने के लिए ज़ोर आज़माइश शुरू कर दी है.
ये भी पढ़ें-
2019 से पहले दलित-मुस्लिम का राज्यवार समीकरण बीजेपी-कांग्रेस दोनों के लिए डरावना है
हिंदू-मुस्लिम नफरत का यह दौर क्या सोशल मीडिया की मेहरबानी है ?
कांग्रेस को धार्मिक तुष्टिकरण पर कोसने वाली भाजपा अब स्वयं उस राह पर
आपकी राय