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Updated: 15 सितम्बर, 2019 06:33 PM
गिरिजेश वशिष्ठ
गिरिजेश वशिष्ठ
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सरकार यानी जनता की जान की दुश्मन. सरकार का काम एक ही है जनता के सिर पर ठीकरा फोड़ो या फिर हर बुराई को दूर करने की जिम्मेदारी उसके सिर पर डाल दो. ट्रैफिक चालान के मामले में मैं सरकार की गैर जिम्मेदाराना हरकत पर पहले ही काफी लिख चुका हूं. इस बार हम पॉलीथीन की बात करते हैं. क्या प़ॉलीथीन की समस्या वो ही है जो दिखाई जा रही है या ये सरकार की अपनी काहिली, अपना निकम्मापन और अपनी कुव्यवस्था है जो जनता के सिर पर थोपी जा रही है.

आगे बढ़ने से पहले हम बताते हैं कि क्या वाकई पॉलीथीन मनुष्यता और पर्यावरण की दुश्मन है या वो इंसान की दोस्त है, जिसे बदनाम कर के दुश्मनों को फायदा पहुंचाया जा रहा है. सबसे पहले जानिए कि पॉलीथीन के खिलाफ माहौल बनाने से क्या नुकसान हो सकता है. पॉलीथीन पर रोक के बाद सबसे ज्यादा खपत किसकी बढ़ेगी? जाहिर सी बात है कागज़ की ही बढ़ेगी. आप कल्पना कर सकते हैं कि आपके छोटे से मोहल्ले में कितना कागज़ इस्तेमाल होना शुरू हो जाएगा? अब अपने शहर के बारे में सोचिए.

पॉलीथीन, मोदी सरकार, पर्यावरणसरकार अगर प्लास्टिक की रिसाइकिलिंग को व्यवस्थित कर दे, तो प्लास्टिक किसी वरदान से कम नहीं.

मैं जानबूझ कर आंकड़े नहीं दे रहा, क्योंकि लेख बोझिल हो जाएगा. सरलता बनी रहे इसलिए इतना जानना ज़रूरी है कि लिखने वाले कागज़ के 480 पन्ने यानी एक रीम को बनाने के लिए एक पेड़ की बलि देनी पड़ती है. एक रिम कागज़ एक पेड़ को काटकर बनता है. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि जंगल काटकर कागज़ बनाया जा रहा हो. अभी किसान कागज़ बनाने के लिए खेत की मेड़ पर पेड़ उगाते हैं, उन्हें दस साल के बाद पेपरमिल ले लेती है.

किसानों की ये सप्लाई कागज़ मिलों की ज़रूरत भी मुश्किल से पूरी कर पा रही है. अगर मांग दस गुनी से ज्यादा बढ़ जाती है तो इतने पेड़ जंगल काटकर ही आएंगे ना. और अगर आपको पेड़ चाहिए भी तो दस साल एडवांस में प्लानिंग करनी होगी. उतने पेड़ उगाने के लिए योजनाएं लानी होंगी. तब जाकर कागज़ की ज़रूरत पूरी होगी. अगर इतने पेड़ नहीं मिलते तो क्या होगा. जंगलों पर ही गाज़ गिरेगी ना. दस साल जंगल काटने का मतलब क्या मोदी जी के सलाहकार नहीं समझते, लेकिन आप आसानी से समझ गए होंगे.

आप सोच रहे होंगे कि इतनी पॉलीथीन धरती की मुसीबत नहीं तो और क्या है. जब भी बाढ़ आती है तो सीवर सिस्टम में पॉलीथीन फंस जाती है. बाढ़ आ जाती है. पॉलीथीन का क्षय नहीं होता. वो हज़ारों साल तक वैसी ही पड़ी रहेगी बगैरह बगैरह. कुछ लोग कहेंगे कि मोदी विरोध में इतना पागल हो गए हैं कि वो पॉलीथीन के ही पक्ष में खडे हो गए. लेकिन ये विरोध नहीं है और किसी व्यक्ति के खिलाफ होने का एक ही कारण होता है शत्रुता. शत्रुता के पीछे कुछ वजह होनी चाहिए. खैर...

इसमें कोई शक नहीं कि पॉलीथीन उससे भी बड़ी मुसीबत है जितनी आप समझ रहे हैं, लेकिन वो मुसीबत तभी है जब उसका अनियंत्रित इस्तेमाल हो. ठीक वैसे जैसे आग मानवजाति के लिए वरदान है, पेट्रोल उपयोगी है लेकिन आप दोनों को नियंत्रित करके रखते हैं, वरना तबाही पॉलीथीन से कहीं ज्यादा बड़ी हो जाए. यहीं सरकार की भूमिका आती है. उसकी अल्पदृष्टि की बात आती है. पॉलीथीन वरदान है. वो जंगल और पर्यावरण को बचाती है, लेकिन आपके कुप्रबंधन ने उसे मानवता का दुश्मन बना दिया. सब जानते हैं कि पॉलीथीन रिसाइकिल करना बेहद आसान है. एक गर्म कढ़ाई में पॉलीथीन डालिए पिघलते ही आप प्लास्टिक के छोटे-छोटे पुर्जे बल्ब के होल्डर बगैरह बना सकते हैं. बड़ी संख्या में ये काम हो भी रहा है और देश के कई बाज़ारों में ये प्लास्टिक इस्तेमाल हो रहा है.

बुधबाज़ार बगैरह की दुकानों में ये प्लास्टिक बिकता रहा है. पॉलीथीन को सड़कें बनाने में भी इस्तेमाल कर सकते हैं और बिजली बनाने में भी. लेकिन सरकार ने निकम्मेपन की सारी हदें पार कर दी हैं. पॉलीथीन की समस्या नई नहीं है. 2011 में ही देश में मॉल और स्टोर को आदेश दिए गए थे कि वो कैरीबैग मुफ्त में न दें, ताकि पॉलीथीन का इस्तेमाल कम हो जाए. आज आठ साल बाद सरकार जनता के सिर जिम्मेदारी डाल रही है. आप जवाब दो ना कि आपने क्यों कुछ नहीं किया. समस्या तो पॉलीथीन को ठिकाने लगाने की है. उसके इस्तेमाल से कोई समस्या नहीं है.

सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करना है तो पानी और कोक की बॉटल्स का इस्तेमाल रोकिए. शीतल पेय पहले की कांच की बोतलों में सप्लाई किया जाए तो रोज़गार बढ़ेगा बोतलों की ढुलाई में मज़दूरों को काम मिलेगा. कारखानों में उनकी धुलाई के लिए भी प्लांट लगाने होंगे और रोज़गार बढ़ेगा. कांच की बॉटल 100 बार तक इस्तेमाल हो सकती है और अगर टूट जाए तो दुबारा नई कांच की बोतल बनाई जा सकती है. लेकिन सरकार को इन बड़े कार्पोरेट्स से दोस्ती करनी है. पार्टियों को उनसे चंदा लेना है और इनकी प्लास्टिक को भी ठिकाने नहीं लगाना है. ऐसे कैसे चलेगा?

हमारा मकसद कुछ तथ्यों से अवगत कराने का है. जो वरदान है उसे अभिशाप बताकर जनता के लिए एक भूमिका तय कर दी गई है. अब जब भी समस्या बढ़ेगी कहा जाएगा कि लोग ही ऐसे हैं. भारत की जनता ही ऐसी है. और सरकार के सारे ऐब छिप जाएंगे वो जनता पर ठीकरा फोड़ती रहेगी. जो काम सरकार में बैठे लोग आसानी से कर सकते हैं वो काम करोड़ों लोगों के ऊपर डाल दिया गया. ये वो लोग हैं, जिनके ऊपर पहले ही आप सौ दबाव डाल चुके है. हज़ार चीज़ें आप जनता के सिर पर पहले ही डाल चुके हैं. उसे फिर दोषी ठहरा कर आप निकल जाना चाहते हैं.

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गिरिजेश वशिष्ठ गिरिजेश वशिष्ठ @girijeshv

लेखक दिल्ली आजतक से जुडे पत्रकार हैं

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