सार्वजनिक तौर पर धर्म का दिखावा क्यों पोर्न से भी ज्यादा खतरनाक है
अब क्या हम धर्म की बात कर सकते हैं? क्या इस बारे में बात की जा सकती है कि धर्म का भी सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शन किया जाना चाहिए या नहीं? क्या हम इसके लिए भी तैयार है अजान या भजन में लाउंडस्पीकर के इस्तेमाल को रोक दिया जाए?
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धर्म और पोर्न दोनों को छिपा कर रखा जाना चाहिए. दोनों मामलों में हम नियंत्रण इतना भी न खो दे कि किसी की निष्ठा या आनंद किसी और के लिए दर्द का कारण बन जाए. जब पोर्न की बात होती है तो हम सब में से ज्यादातर लोग नियम-कानून की बात करते हैं. लेकिन धर्म के मामले में ऐसी बात नहीं की जाती.
एक ओर जहां ज्यादातर सरकारें सार्वजनिक तौर पर धर्म से जुड़े कर्म-कांड की इजाजत देती हैं वहीं, उन्हें बंद कमरे में किसी के पोर्नोग्राफी देखने से भी समस्या है. इसमें फ्रांस या बेल्जियम जैसे देश अपवाद हो सकते हैं जहां के सरकारों ने किसी भी धर्म से जुड़े चिन्ह को सार्वजनिक तौर पर पहनने पर कानूनी तौर पर रोक लगा रखी है. लेकिन मजेदार बात यह कि इन्हीं देशों ने पोर्न पर भी बहुत खुला रवैया अपनाया हुआ है. साथ ही फ्रांस ने वैसे वेबसाइटों पर रोक लगा रखी है जहां आतंकवाद और रंगभेद को बढ़ावा दिया जाता है.
भारतीय सरकार ने पिछले हफ्ते कानून का हवाला देते हुए सैकड़ों वेबसाइट पर रोक लगा दी. फिर कहा गया कि यह केवल कुछ समय के लिए है और केवल बच्चों से जुड़े पोर्न साइट्स को बैन किया जाएगा. यह बात जायज लगती अगर सचमुच ऐसी ही छवि लोगों में जाती और ऐसा नहीं लगता कि सरकार ने सेक्स को लेकर अपने मोरल ग्राउंड पर इन साइटों को बंद किया है. दरअसल, यह मुख्य रूप से समाज में सेक्स को लेकर आ रहे खुलेपन पर चोट करने की कोशिश है. साथ ही हम पर फिर से उपनिवेशवाद की उस गुलामी को थोपा जा रहा है जो हमारे दिमाग में गहरे तक रच-बस गया है.
पोर्न के बारे में बहस एक तरह से सुलझ गई है. तकनीकी तौर पर भी आप इसे पूर्ण रूप से बैन नहीं कर सकते. हमारा समाज सनी लियोनी जैसी पोर्न स्टार को मुख्य फिल्म की एक्ट्रेस के तौर पर पहले ही अपना चुका है. और ऐसा लग रहा है कि हम धीरे-धीरे उस सोच की ओर बढ़ रहे हैं जहां हमारा समाज यह मानने लगा है कि निजी तौर पर प्रोनोग्राफी देखना बुरा नहीं है. यहां तक कि भारत के चीफ जस्टिस भी कह चुके हैं कि पोर्न को पूर्ण रूप से बैन करना संभव नहीं है. निजी तौर पर आप जो चाहे कीजिए.
अब क्या हम धर्म की बात कर सकते हैं? क्या इस बारे में बात की जा सकती है कि धर्म का भी सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शन किया जाना चाहिए या नहीं? हमारा संविधान हमें इसकी इजाजत देता है. पर सवाल है कि क्या हम इसके लिए भी तैयार है अजान या भजन में लाउंडस्पीकर के इस्तेमाल को रोक दिया जाए? उन गुरुओं और बाबाओं के लगने वाले बड़े-बड़े होर्डिंग और पोस्टर पर रोक लगाई जाए जिनके शिविरों से कई बार उत्पीड़न की खबरें आती रहती हैं? और क्या धर्म आधारित स्कूल या कॉलेज नहीं होने चाहिए?
यह अजीब बात है कि पिछले कुछ हफ्तों में खबरों के केंद्र में धर्म ही रहा है. हमारे घर और पड़ोस में भी यही विषय हावी रहा.
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भारत पर वैश्विक इस्लामिक आतंकवाद का खतरा, ईसाई मिशनरियों के बारे में धर्म परिवर्तन कराने की बात और हिंदू नेताओं की प्रतिक्रियाओं को देखते हुए, अब समय आ गया है कि हम धार्मिक स्वतंत्रता को सार्वजनिक या निजी रूप में अपनाए जाने पर बहस करें. सार्वजनिक तौर पर हम जिस प्रकार अपना लगाव प्रदर्शित करते हैं, कहीं न कहीं उस पर एक रोक लगाने का अब समय आ गया है. वैसे भी धर्म और पोर्न में कुछ समानताएं हैं. दोनों का दस्तूर एक ही है. और दोनों अपने चरम पर आकर खत्म हो जाते हैं.
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