नीतीश पर हमले का लाभ PK को तो मिलने से रहा, किसे फायदा पहुंचाना चाहते हैं?
जनसुराज अभियान (Jan Suraj Abhiyan) के तहत बिहार में पदयात्रा कर रहे प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) धीरे धीरे आक्रामक होने लगे हैं. सवाल है कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) पर उनके हमलों का फायदा किसे मिलने जा रहा है - बीजेपी, आरजेडी या कांग्रेस को?
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प्रशांत किशोर भी बिहार में वैसे ही बदलाव का वादा करने लगे हैं, जैसे किसी दौर में ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में किया था. 2011 में ममता बनर्जी 'पोरिबोर्तन' के नारे के साथ ही सत्ता में आयी थीं - तब से लेकर अब तक बंगाल में कितना बदलाव हुआ है, ये अलग से बहस का विषय हो सकता है.
फिलहाल तो बिहार में राजनीतिक बदलाव की चर्चा है. जन सुराज अभियान के तहत पदयात्रा पर निकले प्रशांत किशोर घूम घूम कर कह रहे हैं कि वो राजनीतिक व्यवस्था बदलने पहुंचे हैं, महज भाषण देने नहीं - और एक दौर में जंगलराज से मुक्ति दिलाने के नाम पर सत्ता हासिल करने वाले नीतीश कुमार को दिल खोल कर भला बुरा कह रहे हैं.
हैरानी की बात तो ये है कि नीतीश कुमार को लेकर प्रशांत किशोर ऐसी बातें कर रहे हैं, जैसे वो पहली बार 2015 में भी बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. असल में, प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के लिए तब चुनाव रणनीति तैयार की थी जब वो महागठबंधन के नेता के रूप में केंद्र की सत्ता पर काबिज बीजेपी की सबसे ताकतवर जोड़ी मोदी-शाह से मुकाबला कर रहे थे.
अपनी यात्रा शुरू करने से कुछ दिन पहले ही प्रशांत किशोर, पूर्व जेडीयू सांसद पवन वर्मा के साथ नीतीश कुमार से मिलने गये थे, लेकिन मुलाकात को लेकर पहले जो कुछ कहा था, अब वो अलग तरह की बातें करने लगे हैं - और बेहद आक्रामक अंदाज में.
नीतीश कुमार और उनकी सरकार को लेकर प्रशांत किशोर पहले भी टिप्पणी कर चुके हैं. वो लालू यादव के सामाजिक बदलाव की भी बात कर चुके हैं, और नीतीश कुमार के योगदान की भी. एक बार जब राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार के साथ साथ प्रशांत किशोर पर भी हमलावर हो गये थे तो उनका एक ट्वीट आया था. तब प्रशांत किशोर ने लालू यादव को क्रिमिनल के तौर पर संबोधित किया था और उनके परिवार को मुंह न खुलवाने की चेतावनी दी थी. ये तब की बात है जब लालू यादव रांची जेल में थे. बाद में प्रशांत किशोर ने वो ट्वीट डिलीट भी कर दिया.
नीतीश कुमार के मामले में वो भ्रष्टाचार की तो बात नहीं कर रहे हैं, लेकिन उनके एक सहयोगी को दलाल जरूर कहने लगे हैं - और नीतीश कुमार के बारे में तमाम तरह के दावे करते हुए कटाक्ष करते हैं, ‘मुख्यमंत्री बनके बहुत होशियार बन रहे हैं.’
देखा जाये तो प्रशांत किशोर भी वही कर रहे हैं, जो कोई भी नेता राजनीतिक विरोधियों को नीचा साबित करने के लिए कहता है, लेकिन जो शख्स नीतीश कुमार के लिए 'बिहार में बहार हो, नीतीशे कुमार हो' जैसे नारे के साथ चुनाव प्रचार कर चुका हो, वो उसी नेता को बेकार बताने लगे तो उसकी कौन सी बात सही समझनी चाहिये?
प्रशांत किशोर की ताजा मुहिम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से काफी मिलती जुलती लगती है, हालांकि, प्रशांत किशोर के राजनीतिक इरादे आप नेता के मुकाबले जल्दी सामने आ गये हैं. अरविंद केजरीवाल ने अन्ना हजारे को सामने खड़ा कर पूरे देश के मन में भ्रष्टाचार खत्म होने की उम्मीद जगा दी थी - और यही वजह है कि आम आदमी पार्टी बनाने के बाद चुनाव मैदान में उतरे तो सीधे तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को चैलेंज कर दिया था.
कहीं प्रशांत किशोर को भी तो नहीं लगने लगा है कि वो भी नीतीश कुमार को चुनावी मुकाबले में शिकस्त दे सकते हैं?
अगर प्रशांत किशोर आत्मविश्वास से इतने लबालब हैं तो काफी हड़बड़ी में लगते हैं. अभी उनकी पदयात्रा भी इवेंट मैनेजमेंट की वजह से दिखायी पड़ रही है. चुनावी रैलियों में उमड़ने वाली भीड़ बड़े बड़े नेताओं को भी वोट नहीं देती. मायावती के बीते कुछ चुनाव अभियानों को कोई भी खंगाल सकता है.
नीतीश कुमार पर प्रशांत किशोर के हमले की वजह तो समझा में आती है, लेकिन अभी तो ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता कि इस तरीके से वो किसी तरह का फायदा उठा सकते हैं. अब अगर प्रशांत किशोर को उनकी मुहिम का लाभ नहीं मिलने वाला तो कौन फायदा उठा सकता है - बीजेपी ही या आरजेडी और कांग्रेस में से कोई पार्टी?
नीतीश कुमार पर हमलावर क्यों
जन सुराज यात्रा के दौरान जगह जगह प्रशांत किशोर के कैंप होते हैं, जहां वो लोगों से बातचीत करते हैं. लोगों से उनकी समस्याएं सुनते हैं और अपनी तरफ से भरोसा दिलाने की कोशिश करते हैं अब ज्यादा फिक्र करने की जरूरत नहीं है, सब ठीक हो जाएगा. बीच बीच में वो नीतीश कुमार को टारगेट भी करते रहते हैं.
प्रशांत किशोर की निगाह में तो नीतीश कुमार चढ़ गये हैं, निशाने पर कौन है?
जमुनिया इलाके मे पदयात्रा के दौरान एक कैंप में प्रशांत किशोर लोगों से बात कर रहे थे. बातों बातों में ही कहने लगे, 'दस-पंद्रह दिन पहले मीडिया में खबर आई थी... नीतीश कुमार ने मुझे घर बुलाया था... कहा था कि आप हमारे उत्तराधिकारी हैं... ये सब क्यों कर रहे हैं? आइये हमारे साथ, हमारे पार्टी के नेता बन जाइये... हमने उनकी बात सुनी... बहुत से लोगों ने मुझे गालियां दीं कि मैं उनसे मिलने ही क्यों गया?
और फिर समझाते हैं, मैं नीतीश कुमार से मिलने इसलिए गया था, ताकि ये बता सकूं कि वो कितना भी बड़ा प्रलोभन देंगे, लेकिन मैंने जनता से एक बार जो वादा कर दिया, उससे पीछे नहीं हटूंगा... अपना उत्तराधिकारी बनायें या कुर्सी खाली करें... कोई मतलब नहीं है.
नीतीश कुमार के साथ प्रशांत किशोर जिस मुलाकात का जिक्र कर रहे हैं, पूर्व जेडीयू सांसद पवन वर्मा भी उनके साथ थे. ये बात भी पक्की तभी मानी जाएगी जब पवन वर्मा भी प्रशांत किशोर की बातों को एनडोर्स करें - लेकिन प्रशांत किशोर को ज्वाइन करने के बाद वो ऐसा बोलते हैं तो किसी भी यकीन नहीं होगा.
नीतीश कुमार के साथ उस मीटिंग पर प्रशांत किशोर का पहले कहना रहा है, 'ये मुलाकात सामाजिक, राजनीतिक, शिष्टाचार की भेंट थी.'
तब प्रशांत किशोर ने बताया था - 'मैंने अपनी बात उनके सामने रखी... मैं पिछले तीन चार महीने से बिहार में जो देख रहा हूं... बिहार में विकास के जिन मुद्दों को देखा, वो बात मैंने उन्हें बताईं.'
लेकिन अब प्रशांत किशोर का बयान बदल गया है. 2014 के आम चुनाव का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘चुनाव हारने के बाद दिल्ली आकर... कहा था कि हमारी मदद कीजिये... महागठबंधन बनाकर हम लोगों ने उनको जिताने में कंधा लगाया... अब बैठकर हमें ज्ञान दे रहे हैं.
प्रशांत किशोर का ये भी दावा है कि वो नीतीश कुमार का ऑफर ठुकरा चुके हैं. न तो वो नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी बनना चाहते हैं, न ही जेडीयू का नेतृत्व करने का कोई इरादा है - लगे हाथ लोगों को प्रशांत किशोर ये भी बता देते हैं कि अगर जरूरत पड़ी तो वो खुद ही की पार्टी बना लेंगे.
राजनीति में सब चलता है, लेकिन शुरू में ही नहीं. अगर प्रशांत किशोर को लगता है कि नीतीश कुमार को वही मुख्यमंत्री बनाये हैं और अरविंद केजरीवाल का चुनाव कैंपेन कर उनके जैसे बन गये हैं तो वो अभी से बहुत बड़ी गलतफहमी के शिकार हो चुके हैं. जितना जल्दी संभल जाये, उतना ही अच्छा होगा.
सवाल ये भी है कि नीतीश कुमार को लेकर प्रशांत किशोर की किस बात पर यकीन किया जाये? जो बातें प्रशांत किशोर अपने इंटरव्यू में नीतीश कुमार को लेकर बताते रहे हैं, जैसे नीतीश कुमार 2015 में हुआ करते थे?
या कुछ दिन पहले जब मिलने गये थे और मुलाकात के बारे में मीडिया को बताये थे? या अब जो पदयात्रा के दौरान लोगों से कह रहे हैं - सारी बातों को एक साथ रख कर कोई भी समझने की कोशिश कर सकता है.
लेकिन सवाल यहीं खत्म नहीं हो जाते, अब ये समझना भी जरूरी हो जाता है कि प्रशांत किशोर जिस तरीके से नीतीश कुमार को टारगेट कर रहे हैं असली फायदा किसे मिल सकता है?
नीतीश के कमजोर होने का फायदा किसे मिलेगा?
नीतीश कुमार के कमजोर होने का चौतरफा फायदा मिलेगा. हो सकता है आखिरकार एक ऐसा दौर भी आये जब प्रशांत किशोर भी फायदे में रहें, लेकिन ये बहुत बाद की बात है. अभी तो सबसे ज्यादा फायदे में भारतीय जनता पार्टी रहेगी. और फायदा तो बिहार में वैसा ही आरजेडी को भी मिलेगा, राष्ट्रीय राजनीति की बात करें तो प्रशांत किशोर का कैंपेन कांग्रेस के पक्ष में भी जा सकता है.
1. बीजेपी को फायदा: बीजेपी तो चाहती ही है, जैसे भी संभव हो सके नीतीश कुमार की राजनीति खत्म हो और वो सत्ता पर काबिज हो सके. भले ही अमित शाह कह रहे हों कि 2025 में वो बीजेपी का अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार पेश करेंगे.
अब ऐसा तो है नहीं कि ऑपरेशन लोटस पर काम नहीं चल रहा होगा. बीच में भी मौका मिला तो विधायकों को तोड़ कर सरकार गिरा देगी - और मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की तरह ही सरकार बना लेगी.
बीजेपी को ये भी तो लग रहा होगा कि अगर टाइम बीत गया और नीतीश कुमार से सत्ता का ट्रांसफर तेजस्वी यादव को हो गया, तब तो काम और भी मुश्किल हो जाएगा.
2. आरजेडी को फायदा: नीतीश कुमार के बिहार में कमजोर होने का सबसे बड़ा फायदा तो तेजस्वी यादव को ही मिलेगा. उनके लिए जगह बनाना आसान हो जाएगा. अपने बूते नहीं संभव हुए तो तोड़ फोड़ से भी वो मुख्यमंत्री बनने की कोशिश तो करेंगे ही - और अभी तो लालू यादव भी बाहर ही है, थोड़ी बहुत कहीं कोई कमी लगी तो मैनेज हो ही जाएगा.
3. कांग्रेस को फायदा: कांग्रेस को बिहार में तो नीतीश कुमार के कमजोर होने से कोई फायदा मिलने से रहा, लेकिन एक चीज तो साफ है, प्रधानमंत्री पद पर नीतीश कुमार की दावेदारी जरूर कमजोर हो सकती है.
नीतीश कुमार के कमजोर पड़ने पर राहुल गांधी के रास्ते का कांटा तो निकल ही जाएगा - मंजिल भले ही कितनी ही दूर क्यों न हो!
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